नई दिल्ली। अमेरिका और अन्य देशों में सरकारी संगठनों और कारोबार पर हुए रैंसमवेयर अटैक के बाद वॉशिंगटन और मॉस्को में आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। दोनों एक-दूसरे पर साइबर अटैक के आरोप लगा रहे हैं। विदेशी एक्सपर्ट इसे हाइब्रिड वॉरफेयर का एक हिस्सा कह रहे हैं, जिसका मकसद दुश्मन देश को अंदर से खोखला करना है।
इस दौरान, भारत समेत कई देशों में पेगासस से जासूसी का मामला भी मीडिया की सुर्खियां बना हुआ है। यह भी स्पायवेयर अटैक ही है, जो एक तरह का हाइब्रिड वॉरफेयर है।
आइए समझते हैं, हाइब्रिड वॉरफेयर क्या होता है? किन देशों पर इसका इस्तेमाल करने के आरोप हैं? भारत समेत अन्य देश इससे निपटने के लिए क्या तैयारी कर रहे हैं…
सबसे पहले समझिए हाइब्रिड वॉरफेयर होता क्या है?
हाइब्रिड यानी मिक्सचर। अलग-अलग चीजों का अचार। इसी तरह हाइब्रिड वॉरफेयर भी अलग-अलग तरीकों से युद्ध लड़ने की स्ट्रैटजी है। इसका मतलब है कि आप दुश्मन देश के साथ खुले तौर पर जंग नहीं करते, बल्कि इनडायरेक्ट तरीकों से उसे नुकसान पहुंचाकर कमजोर करते हैं।
इसे आप एक उदाहरण से समझिए। मान लीजिए आपके दुश्मन देश में किसी तरह का विद्रोह चल रहा है। प्रदर्शनकारी सड़कों पर सरकार के खिलाफ उतरे हुए हैं। अब आप उन प्रदर्शनकारियों को गलत जानकारी देकर और भड़का सकते हैं। इससे प्रदर्शन बढ़ता जाएगा और हो सकता है कि ये स्थिति गृहयुद्ध तक पहुंच जाए। इसका फायदा ये हुआ कि आपके दुश्मन देश में गृहयुद्ध की शुरुआत हो गई और किसी को पता भी नहीं चला कि इस गृहयुद्ध के पीछे आप जिम्मेदार हैं।
इसी तरह सोशल मीडिया, साइबर अटैक, फेक न्यूज, ट्रेड रेस्ट्रिक्शंस और बाकी तरीकों से दुश्मन देशों में अशांति फैलाना, अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाना, दंगे भड़काना जैसे तमाम तरीके हाइब्रिड वॉरफेयर का हिस्सा माने जाते हैं।
हाइब्रिड वॉरफेयर का जवाब देने में सबसे बड़ी समस्या क्या आती है?
अपराधियों को पहचानना। हाइब्रिड वॉरफेयर में सरकारें आम तौर पर प्राइवेट लोगों की मदद लेती हैं। पर पिछले दो दशक से पश्चिमी देशों में हुए साइबर अटैक इतने सोफिस्टिकेटेड थे कि उनके लिए किसी एक व्यक्ति या छोटे संस्थानों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। बड़ी कंपनियां सरकारों की मदद से यह काम कर रही हैं। साइबर वॉरफेयर स्ट्रैटजी में रूस एक इंटरनेशनल एक्टर के तौर पर उभरा है।
रूस की साइबर वॉरफेयर डॉक्ट्रिन या ‘गिब्रिडन्या वोयना’ (हाइब्रिड वॉर) को आकार दिया था एलेक्जेंडर डुगिन जैसे पॉलिटिकल साइंटिस्ट ने। डुगिन एक रूसी फिलोसॉफर हैं, जिन्हें अक्सर पुतिन का दिमाग कहा जाता है। वे मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी के प्रोफेसर हैं और 2014 में क्रीमिया पर रूस के टेकओवर के बाद उन पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए थे।
किन-किन देशों पर हाइब्रिड वॉरफेयर के आरोप हैं?
रूस: रूस के ऊपर यूक्रेन, क्रीमिया, जॉर्जिया और अमेरिका समेत कई देशों के खिलाफ हाइब्रिड वॉरफेयर का इस्तेमाल करने का आरोप है। रूस ने इन देशों में साइबर अटैक और राजनीतिक परिस्थितियों का इस्तेमाल कर हाइब्रिड वॉरफेयर को अंजाम दिया था।
चीन: सितंबर 2020 में खबरें आईं कि चीनी कंपनियां भारत के कई VVIP लोगों पर डिजिटल निगरानी रख रही है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर कई बड़े अफसरों के नाम शामिल थे, जिनका डिजिटल डेटा चीन द्वारा रिकॉर्ड किया जा रहा है। इस खुलासे के कुछ महीनों पहले से भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर विवाद चल रहा था। चीन इस डेटा को एनालाइज कर इसका इस्तेमाल भारत के खिलाफ कर सकता था। इसके बाद भारत ने कई चीनी ऐप्स को बैन किया था।
ईरानः 2006 में इजराइल और हिजबुल्ला के लड़ाकों के बीच हुए युद्ध को हाइब्रिड वॉरफेयर का एक उदाहरण माना जाता है। हिजबुल्ला लड़ाकों को ईरान हर तरह की सहायता देकर इजराइल के खिलाफ युद्ध करने में इस्तेमाल करता है, लेकिन दुनिया के सामने हिजबुल्ला से अपने संबंधों को कभी स्वीकार नहीं करता है। यानी हिजबुल्ला राईन की ही एक छद्म सेना की तरह काम करता है।
क्या सिर्फ साइबर अटैक को ही हाइब्रिड वॉरफेयर कहना सही होगा?
नहीं। चीन पर अक्सर आरोप लगते रहे हैं कि वह कर्ज या अन्य उपायों से भी स्ट्रैटजिक रूप से महत्वपूर्ण गरीब देशों को अपना बनाता है। धीरे-धीरे इतना कर्ज दे देता है कि वह देश पूरी तरह उस पर निर्भर हो जाता है। हम पाकिस्तान में ऐसा होता देख रहे हैं। ये भी हाइब्रिड वॉरफेयर ही है।
कर्ज न चुकाने पर चीन इन देशों की रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा कर लेता है। पहले यह काम अमेरिका और रूस ने भी बड़े पैमाने पर किया है। मुस्लिम देशों में अगर अमेरिका का विरोध है तो इसकी एक बड़ी वजह उसकी यह स्ट्रैटजी भी है।
हाइब्रिड वॉरफेयर से निपटने के लिए देशों की क्या तैयारी है?
- हाइब्रिड वॉरफेयर के बढ़ते खतरों के बीच अलग-अलग देशों ने इससे निपटने की तैयारियां भी की हैं। यूरोपियन यूनियन ने ‘हाइब्रिड फ्यूजन सेल’ बनाया है। इसका काम साइबर हमलों से निपटने के लिए देशों के बीच रणनीति तैयार करना है। साथ ही अलग-अलग इंटेलिजेंस रिपोर्ट के आधार पर ये ग्रुप देशों को उनकी डोमेस्टिक पॉलिसी पर सलाह भी देता है।
- यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ वेल्स के इंटरनेशनल सेंटर फॉर पुलिसिंग एंड सिक्योरिटी ने EUCTER रिसर्च नेटवर्क बनाया है। इजराइल और यूरोप के 13 देशों के साथ बनाए गए इस नेटवर्क के जरिए आतंकवाद विरोधी, सुरक्षा और न्याय के क्षेत्र में देशों को रिसर्च आधारित नीतियों को बनाने में मदद करता है।
- नॉर्थ अटलांटिक ट्रिटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) भी हाइब्रिड वॉरफेयर से निपटने के लिए देशों को अलग-अलग सुविधाएं मुहैया कराता है। इनमें हाइब्रिड वॉरफेयर के तरीकों की पहचान से लेकर उनको रोकने की पूरी प्रक्रिया शामिल है।
- चीन भले ही खुद इस तरीके का इस्तेमाल दूसरे देशों के खिलाफ करता है, लेकिन चीन ने खुद बेहद सख्त सोशल मीडिया पॉलिसी लागू कर रखी है। दुनियाभर में पॉपुलर कई सोशल मीडिया ऐप्स और साइट्स चीन में बैन हैं। चीन ने मीडिया पर भी कब्जा कर रखा है। साथ ही उसने अपने महत्वपूर्ण दस्तावेज स्थानीय भाषा मैंडरिन में रखा है, जिससे विदेशियों के लिए उसकी गतिविधियों को समझ पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है।
हाइब्रिड वॉरफेयर को लेकर भारत की क्या तैयारी है?
यह काम खुफिया एजेंसियों से लेकर सुरक्षा एजेंसियों का है। वह इस पर काम कर भी रही हैं। पर लद्दाख की सिचुएशन देखें तो हम चीन से पीछे ही हैं। उसने तो 2013 में ही थ्री वॉरफेयर स्ट्रैटजी (TWS) पर काम शुरू कर दिया था।
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट की पूर्व डायरेक्टर तारा कारथा का कहना है कि चीन की स्ट्रैटजी साफ है- देश और बाहर लोगों की राय बनाना, साइकोलॉजिकल वॉरफेयर के जरिए दुश्मन को यकीन दिलाना कि ताकतवर चीनी सेना के सामने वह टिकेगा नहीं और लीगल वॉरफेयर की मदद से वह अपने दावों को मजबूती देता है। फिर चाहे मामला दक्षिण चीन सागर का हो या लद्दाख का।
पर इसका मतलब यह नहीं है कि भारत कुछ नहीं कर रहा। भारतीय सुरक्षा प्रतिष्ठान भी हाइब्रिड वॉरफेयर के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम कर रहे हैं। तारा कहती हैं कि इसके लिए और भी आगे बढ़ने की जरूरत है। सरकार के पास अपना सिस्टम तो है, अब उसका इस्तेमाल कर ताकत बढ़ाने की जरूरत है।