पेट्रोलियम के बढ़ते दाम और विपक्ष का भारत बंद

लेखक-डा. हिदायत अहमद खान

मोदी सरकार की योजनाओं के फेल होने और गलत फैसलों के परिणाम अब संपूर्ण देश में देखने को मिलने लगे हैं। इसी का नतीजा है कि महंगाई बढ़ती चली जा रही है, छोटे और मझौले व्यापारी रो रहे हैं तो वहीं अधिकांश बड़े व्यवसायी और कारोबारी भी बेतहाशा परेशान हैं। बाजार निचले स्तर पर आ गया है और विदेशी निवेशकों का कहीं कोई अता-पता नहीं है, जिनके दम पर पढ़े-लिखे नौजवानों को नौकरी दिलवाने और उन्हें खुद का कारोबार शुरु करवाने का दम भरते मोदी सरकार कभी थकती नहीं थी। कुल मिलाकर जहां देश में योग्यता दम तोड़ रही है तो वहीं किसान आत्महत्या करने को मजबूर है। रोजगार के अभाव में प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं और रही सही कसर अब पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों ने पूरी कर दी है। इसलिए कहना पड़ता है कि विकास के साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार पर ध्यान देने की बजाय सरकार तीन तलाक और मंदिर-मस्जिद मामले में देश को उलझाकर रखे रही। इससे हुआ यह कि जो नतीजे आने चाहिए थे वो आए नहीं और वो सब देश में होता चला गया गया जिसे होना नहीं चाहिए था।

मतलब भीड़ द्वारा निहत्थों की हत्या, नाबालिग मासूम बच्चियों के साथ सामूहिक बलात्कार की बढ़ती घटनाएं और उनकी निर्मम हत्याएं, जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों की बढ़ती गतिविधियां और विदेशों से हमारे अनसुलझे संबंध, मानों हमारी सरकार कुछ भी निश्चित करने की स्थिति में खुद को नहीं पाती है और जो जैसा हो रहा है होने दिया जाता है। यही एक बड़ी वजह है कि जहां अजा/जजा एक्ट को लेकर सवर्ण समाज ने भारत बंद का आव्हान किया और पूर्णत: सफल होने का दावा करते हुए भाजपा के खिलाफ ही प्रभावी विरोध दर्ज करा दिया तो वहीं अब पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों और आसमान छूती महंगाई के विरोध में कांग्रेस ने 10 सितंबर को भारत बंद का आव्हान कर दिया है।

इसके जरिए विपक्षी अब मोदी सरकार की घेराबंदी करने में लगे हुए हैं। एनडीए की सरकार पर आरोप है कि उसने जनता की गाढ़ी कमाई लूटने जैसा काम किया है। आरोप यदि सही हैं तो फिर मोदी सरकार ने महज चार साल में पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से साढे ग्यारह लाख करोड़ की वसूली की है। मुंबई में पेट्रोल 87.39 रुपये और डीजल 76.51 रुपये प्रति लीटर बिक रहा है, जो अभी तक की कीमतों में सबसे ज्यादा है। कहने वाले कह रहे हैं कि यदि यही हालात कांग्रेस शासनकाल में बने होते तो एनडीए खासतौर पर भाजपा ने देश में आग लगाने जैसी स्थिति उत्पन्न कर दी होती, लेकिन चूंकि विपक्ष में कांग्रेस है और लंबे समय तक देश में सरकार चलाने के कारण इसके अधिकांश नेता और कार्यकर्ता आरामतलब हो चुके हैं, इसलिए किसी भी मुद्दे पर ये आक्रामक रुख अख्तियार नहीं कर पाते हैं।

दूसरी तरफ कहने वाले यह भी कहते हैं कि चूंकि सरकार में रहते हुए कांग्रेसी नेताओं ने गले-गले तक खूब काला-पीला किया है, इसलिए अब वो भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की कौन बात करे यहां सामान्य मांगोंके समर्थन में भी प्रभावी ढंग से अपनी बात नहीं रख पाते हैं। इसके पीछे एक डर है जो उन्हें ऐसा करने से रोके रखता है और वह यह कि कहीं उनके काले कारनामों की किताबें सरकार और उसकी मातहत एजेंसियां खोलकर न बैठ जाएं। अगर पुराने पाप उजागर हो गए तो लालू जैसे हालात होने में देर नहीं लगेगी। बहरहाल यहां कहा तो यही जा रहा है कि पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस सिलेंडर के दामों में भारी वृद्धि के अलावा व्यापक महंगाई के मुद्दे को उठाने के लिए ही कांग्रेस ने भारत बंद बुलाया है। भारत बंद के दौरान पार्टीजन मोदी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरेंगे और विरोध प्रदर्शन करेंगे।

वैसे यहां यदि देखा जाए तो महंगाई और पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमत किसी राजनीतिक पार्टी का व्यक्तिगत मामला नहीं है। ये सामान्यजन से सीधे जुड़े हुए मामले हैं और इसके लिए किसी को प्रेरित करने या उन्हें आगे आकर विरोध दर्ज कराने के लिए कहने की भी आवश्यकता नहीं है। बावजूद इसके कांग्रेस ने सरकार पर दाम घटाने का दबाव बनाने के लिए तमाम विपक्षी पार्टियों से बंद को कामयाब बनाने में सहयोग करने को कहा है। यहां यदि हम कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टियों की बात नहीं भी करें तो देखेंगे कि मोदी सरकार को जो करना चाहिए था वह उसने अपने पूरे कार्यकाल में किया ही नहीं, यहां तक कि उसने अपने सहयोगी दलों से भी कोई सलाह करना ठीक नहीं समझा। गठबंधन में शामिल दल मानों मूक दर्शक बने रहे, जिसके चलते मोदी सरकार ने वो सारे काम तत्परता के साथ कर दिखाए जो विवादों को जन्म देने वाले थे या फिर समाज के कुछ लोगों को राहत पहुंचाने और बड़े वर्ग को दु:खी करने वाले थे।

ऐसे ही फैसलों में नोटबंदी और जीएसटी को प्रमुखता से उठाया जा सकता है। नोटबंदी का तो यह हाल रहा है कि गरीब व मध्यमवर्गीय लोग तो बैंको के सामने अपने ही पैसे निकालने की खातिर लाइन लगाए खड़े रहे, जबकि इसका बेजा लाभ चंद अमीरजादों ने कालेधन को गोरा करने में खूब उठाया। देश का आमजन रोता रहा, लेकिन बैंक के जरिए जनता की गाढ़ी कमाई लूटने वाले सरकार के करीबी होने का लाभ उठाते हुए विदेश तक भागने में सफल हो गए। इससे जनता में संदेश गया कि जिस कालेधन की उगाही कराने के लिए सरकार आई थी अब वही उस दलदल में गले तक धंस कर रह गई है, इसलिए उसे विदेश क्या देश में भी कहीं कोई कालाधन नजर ही नहीं आया है। इसके चलते विदेशों में जमा कालाधन वापस तो नहीं लाया जा सका, उल्टा हुआ यह कि नोटबंदी की आड़ में तमाम काले कारोबारियों ने अपना कालाधन सफेद कर लिया।

इसी प्रकार मोदी सरकार ने पहले कभी जीएसटी का खुलकर विरोध किया था, लेकिन ऐसा न जाने कौन सा सपना आया या न जाने किसने उनके सिर से पैर तक जादू की छड़ी घुमाई कि आधे-अधूरे जीएसटी को भी युद्ध स्तर पर लागू करने की घोषणा कर दी गई। अंतत: इस सरकार के त्वरित और हैरान करने वाले फैसलों के दुष्परिणाम तो आमजन को भुगतना पड़ ही रहा है, लेकिन कांग्रेस ने भारत बंद का आव्हान करके यह भी जतलाने की कोशिश कर दी है कि अभी ज्यादा कुछ बिगड़ा नहीं है, अब भी समय है जाग जाएं और ऐसे किसी फैसले या योजना के आप वाहक न बनें जिससे देश का अहित होता हो।

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