नई दिल्ली। पेट्रोल और डीजल फिलहाल GST के दायरे से बाहर है। लोकसभा में पूछे सवाल के जवाब में पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने कहा कि GST काउंसिल ने इसके लिए कोई सिफारिश नहीं की है। मार्च में आई एक रिसर्च रिपोर्ट कहती है कि अगर पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स GST के दायरे में आते हैं तो पूरे देश में पेट्रोल की कीमत 75 रुपए प्रति लीटर और डीजल 68 रुपए प्रति लीटर हो सकता है। पर GST काउंसिल में शामिल राज्यों को इस पर आपत्ति है और इसी वजह से यह मामला अटका हुआ है।
इस साल जुलाई तक देश में पेट्रोल की कीमतें 66 बार बढ़ीं हैं और केवल 6 बार कम की गई हैं। इसी तरह डीजल की कीमतें भी 63 बार बढ़ीं हैं और केवल 4 बार कम की गई हैं। देश में कई जगहों पर पेट्रोल का रेट 110 रुपए/लीटर से भी ज्यादा हो गया है।
पेट्रोल-डीजल की आसमान छूती कीमतों के बीच बार-बार ये मांग उठती है कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट को भी GST के दायरे में लाया जाए। आइए समझते हैं, अभी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कैसे निर्धारित होती हैं? क्या पेट्रोलियम प्रोडक्ट को GST के अंदर लाने से कीमतें कम हो जाएंगी? और क्या भारत के पड़ोसी देशों में भी पेट्रोल-डीजल की कीमतें इसी तरह बढ़ रही हैं…
सबसे पहले समझिए अभी पेट्रोल-डीजल की कीमतें कैसे तय होती हैं?
जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था, लेकिन 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण ऑयल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी, लेकिन 19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया।
यानी कि पेट्रोलियम प्रोडक्ट की कीमत निर्धारित करने में सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। ये काम ऑयल मार्केटिंग कंपनियां करती हैं। ऑयल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।
क्या पेट्रोलियम प्रोडक्ट को GST के दायरे में लाने से कीमतें कम हो जाएंगी?
इसी साल मार्च में जारी SBI की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, अगर सरकार पेट्रोलियम प्रोडक्ट को GST के दायरे में लाती है, तो देश में पेट्रोल की कीमत 75 और डीजल की 68 रुपए प्रति लीटर हो सकती है।
आर्थिक व कारोबारी पत्रकार शिशिर सिन्हा के मुताबिक, GST में पेट्रोल व डीजल को लाने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि पूरे देश में टैक्स की दर एक होगी। परिवहन लागत के आधार पर खुदरा कीमतें अलग-अलग होंगी, फिर भी इतना नहीं कि एक ही राज्य में दो शहरों में बहुत ज्यादा अंतर हो जाए।
अब यदि दिल्ली में पेट्रोल पर कुल टैक्स 137 फीसदी है और GST की दर 50 फीसदी रखी जाए तो कीमत 101.45 रुपए प्रति लीटर के बजाय 65.71 रुपए हो सकती है। इसी तरह डीजल पर 50 फीसदी की दर से GST लगाने पर कीमत 89.87 रुपए से घटकर 65.93 रुपए हो सकती है। इससे आम लोगों को तो काफी फायदा होगा, लेकिन सरकारों की कमाई काफी घट जाएगी। यही वजह है कि GST को लेकर सहमति नहीं बन पा रही है।
पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाने में सबसे बड़ी परेशानी क्या है?
किसी भी सामान या सेवा पर GST तय करने से पहले यह देखा जाता है कि GST के पहले की व्यवस्था में उस पर केंद्र और राज्य, कुल मिलाकर कितना कर लगा रहे थे, ताकि केंद्र और राज्यों व तीन केंद्र शासित प्रदेशों (दिल्ली, पुडुचेरी और जम्मू-कश्मीर) को किसी तरह का नुकसान नहीं उठाना पड़े। तकनीकी भाषा में इसे Revenue Neutral Rate (RNR) कहते हैं। पेट्रोल डीजल पर GST नहीं लागू करने में यह सबसे बड़ी बाधा है।
इसे आसान भाषा में ऐसे समझिए…
16 जुलाई को दिल्ली में एक लीटर पेट्रोल की बेस प्राइज 41 रुपए थी। इस पर केंद्र सरकार की ओर से 32.90 रुपए की दर से सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी (सेस समेत) और दिल्ली सरकार की ओर से 23.43 रुपए वैट लगाया गया। मतलब कुल टैक्स हुआ 56.33 रुपए। बेस प्राइस के प्रतिशत के हिसाब से देखें तो यह करीब 137 फीसदी होता है। डीजल के मामले में यह दर 107 फीसदी है।
अब RNR के हिसाब से चलें तो पेट्रोल व डीजल पर GST की दर क्रमश: 137 और 107 फीसदी के आसपास होना चाहिए। अभी GST की मौजूदा व्यवस्था में सबसे ऊंची दर 28 फीसदी है। अब इसमें सेस भी मिला दें तो यह हो जाएगा 50 फीसदी। एक रास्ता है अगर विशेष दर अपनाई जाए या फिर तंबाकू के समान विशेष सेस लगाया जाए तो कुछ हद तक GST दर मौजूदा दर के आसपास हो सकती है, लेकिन ऐसा फिलहाल होता दिख नहीं रहा। वहीं दूसरी ओर कमाई के आंकड़े को देखे तो समझ में आ जाएगा कि क्यों केंद्र और राज्य सरकारें पेट्रोल-डीजल पर GST लागू करने की सहमति नहीं बना रहीं।
इसी सप्ताह लोकसभा में एक सवाल के जवाब में वित्त मंत्रालय ने जानकारी दी कि पहले तीन महीने में पेट्रोल-डीजल पर सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी के जरिए 94 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई हुई। दूसरी ओर पीपीएसी (पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल) के आंकड़े बताते हैं कि 2018-19, 2019-20 और 2020-21 के दौरान राज्यों व सभी केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर दो लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई हुई है। स्पष्ट है कि केंद्र व राज्य सरकारें अपनी कमाई के इस स्रोत में कोई बदलाव नहीं चाहेंगी।
पेट्रोल-डीजल महंगा होने की वजह क्या है?
पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के पीछे सरकारी टैक्स ही सबसे बड़ी वजह है। अभी पेट्रोल-डीजल का बेस प्राइस करीब 40 रुपए ही है, लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से लगने वाले टैक्स से इनकी कीमतें देश के कई हिस्सों में 110 रुपए के पार पहुंच गई हैं।
केंद्र सरकार पेट्रोल पर 33 रुपए एक्साइज ड्यूटी वसूल रही है। इसके बाद राज्य सरकारें इस पर अपने हिसाब से वैट और सेस वसूलती हैं। इससे पेट्रोल-डीजल का दाम बेस प्राइज से 3 गुना तक बढ़ गया है। भारत में पेट्रोल पर 55 और डीजल पर 44 रुपए से भी ज्यादा टैक्स वसूला जाता है।
हर राज्य में कीमतें अलग-अलग क्यों होती हैं?
पेट्रोल-डीजल पर राज्य भी टैक्स लगाते हैं। हर राज्य में ये टैक्स अलग-अलग होता है। इसी वजह से हर राज्य में पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी अलग-अलग होती हैं। इसे एक उदाहरण से समझिए। दिल्ली पेट्रोल पर 30% वैट लगाता है और उत्तराखंड 25%। यानी की दिल्ली के मुकाबले उत्तराखंड में आपको पेट्रोल सस्ता मिलेगा। इसी तरह हर राज्य में पेट्रोल-डीजल पर लगने वाले टैक्स की रेट अलग-अलग होती है।
पेट्रोल-डीजल को GST में लाने से राज्यों को क्या नुकसान, क्या फायदा?
SBI की इकोनॉमिक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, अगर पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाया जाता है तो सबसे ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र को हो सकता है। महाराष्ट्र के राजस्व में 10,424 करोड़ रुपए की कमी आ सकती है। इसके अलावा राजस्थान की 6388 करोड़ और मध्य प्रदेश की 5489 करोड़ रुपए की कमाई कम हो सकती है।
वहीं, कुछ राज्यों को इससे फायदा भी हो सकता है। उत्तर प्रदेश के राजस्व में 2,419 करोड़, हरियाणा के राजस्व में 1,832 करोड़, पश्चिम बंगाल के राजस्व में 1,746 करोड़ और बिहार के राजस्व में 672 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हो सकती है।
सरकार की कमाई का बड़ा जरिया पेट्रोल-डीजल
2014 में मोदी सरकार आने के बाद वित्त वर्ष 2014-15 में पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स पर एक्साइज ड्यूटी से 1.72 लाख करोड़ रुपए की कमाई हुई थी। 2020-21 में यह आंकड़ा 4.54 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया। यानी सिर्फ 6 सालों में ही एक्साइज ड्यूटी से केंद्र सरकार की कमाई 3 गुना के करीब बढ़ गई।