नई दिल्ली। पिछले दो साल से राजस्थान में कांग्रेस के प्रभारी अजय माकन के इस्तीफे के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। माकन ने अपने इस्तीफे में राष्ट्रीय अध्यक्ष को जिस तरह से बागियों पर कार्रवाई नहीं होने की बात कहते हुए नाराजगी जताई, उससे ये साफ है कि वे आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में हैं। इस लड़ाई का मकसद प्रभारी की ताकत दिखाने के साथ हाईकमान के आदेशों की अवहेलना का मुद्दा जिंदा रखना भी माना जा रहा है।
25 सितंबर को जयपुर में हुए घटनाक्रम के बाद उन्हें गद्दार तक कह दिया गया था। खड़गे के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद गहलोत गुट के तीन बागी नेताओं पर एक्शन नहीं होने से नाराज माकन ने राजस्थान प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया।
राहुल गांधी के राजस्थान आने से 15 दिन पहले इस्तीफा महज संयोग है या जानबूझकर ऐसा किया गया?
· क्या राहुल की भारत जोड़ो यात्रा पर इसका असर पड़ेगा?
· क्या तीनों बागी नेताओं पर अब हाईकमान एक्शन लेगा?
· और सबसे महत्वपूर्ण…क्या इस इस्तीफे से राजस्थान में CM बदलने की मांग और मजबूत होगी?
सवाल 1. अजय माकन ने प्रभारी पद से इस्तीफा क्यों दिया?
जवाब: राजनीतिक विश्लेषक माकन के इस्तीफे के पीछे की असली वजह राजस्थान में CM बदलने की मांग को फिर से हवा देने को मान रहे हैं। पहली बार इतने लंबे समय तक प्रदेश प्रभारी सीन से गायब हैं। माकन 25 सितंबर के बाद राजस्थान नहीं आए हैं, लेकिन पार्टी नेतृत्व ने उन्हें सरदारशहर सीट पर स्टार प्रचारक बनाकर एक बार विवाद को शांत करने का प्रयास किया है।
पायलट गुट लगातार CM बदलने की मांग कर रहा है, लेकिन बीच में यह मुद्दा ठंडा पड़ गया। अब यह मुद्दा फिर चर्चा में आया है। गहलोत कैंप के विधायकों के इस्तीफे अब भी स्पीकर के पास रखे हैं। इन इस्तीफों को ही CM बदलने के रास्ते में ब्रेक माना जा रहा है।
सवाल 2. क्या इस्तीफे से गहलोत-पायलट गुट में खींचतान बढ़ेगी?
जवाब : अजय माकन के इस्तीफे के बाद अब कांग्रेस में खींचतान का नया चैप्टर शुरू हो गया है। अजय माकन ने इस्तीफा देकर राजस्थान कांग्रेस में सब कुछ ठीक नहीं होने का संकेत दे दिया है। पहली बार किसी प्रभारी ने इस तरह का रवैया अपनाया है।
25 सितंबर को गहलोत गुट के विधायकों के बागी तेवर अपनाते हुए स्पीकर को सौंपे थे, वे इस्तीफे अब तक वापस नहीं लिए गए हैं। अनुशासनहीनता के लिए जिम्मेदार तीनों नेताओं के खिलाफ एक्शन नहीं होने पर अब पायलट खेमा और गैर गहलोत गुट के नेता सवाल उठा रहे हैं।
सवाल 4. डेढ़ महीने बाद माकन के सब्र का बांध क्यों टूटा?
प्रदेश प्रभारी रहते हुए अजय माकन 25 सितंबर की बैठक के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ ऑब्जर्वर थे। माकन और खड़गे ने पूरी घटना की जॉइंट रिपोर्ट तैयार करके सोनिया गांधी को दी थी। इसके आधार पर तीनों नेताओं को नोटिस जारी हुए थे।
माकन पहले दिन से ही विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने के दोषी नेताओं के खिलाफ एक्शन लेने पर अड़े हुए थे। डेढ़ महीने बाद भी माकन की रिपोर्ट पर अनुशासन तोड़ने के दोषी 3 नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और न ही आगे होने के आसार दिख रहे थे। ऐसे में माकन का सब्र जवाब दे गया।
सवाल 5. क्या माकन-गहलोत में 25 सितंबर की घटना से बढ़ीं तल्खियां?
नहीं। दोनों के बीच पिछले 1 साल से सब-कुछ ठीक नहीं था। अजय माकन और CM अशोक गहलोत के बीच पार्टी और सरकार में नियुक्तियों को लेकर पहले से अनबन शुरू हो गई थी। 25 सितंबर की घटना के बाद अब तल्खियां और बढ़ गईं। गहलोत समर्थक शांति धारीवाल ने माकन पर पायलट का पक्ष लेने के आरोप लगाए। धारीवाल के बंगले पर ही पैरेलल विधायक दल की बैठक हुई थी।
सवाल 6. इस्तीफे से क्या हासिल करना चाहते हैं माकन?
1. गहलोत खेमे को घेरने की रणनीति : अजय माकन ने खड़गे को चिट्ठी लिखकर गहलोत कैंप को घेरा है। माकन ने राजस्थान का प्रभार छोड़ने की वजह गहलोत गुट के बागियों पर अब तक एक्शन नहीं लेने को बताकर प्रेशर बना दिया है। इससे अब गहलोत गुट के तीनों नेताओं पर एक्शन का दबाव बढ़ेगा।
2. राष्ट्रीय स्तर पर प्रेशर बनाने का प्रयास : अजय माकन की चिट्ठी के बाद राजस्थान में गहलोत-पायलट की खींचतान का नरेटिव फिर से राष्ट्रीय स्तर पर बहस का मुद्दा बन गया है।
3. गहलोत गुट की बगावत को फिर मुद्दा बनाया : माकन के इस्तीफे ने गहलोत गुट की बगावत को फिर से मुद्दा बना दिया है। CM अशोक गहलोत खेमे ने बीच में सब कुछ ठीक होने का दावा करते हुए बगावत का मुद्दा दबा दिया था, जिसे माकन ने फिर जिंदा कर दिया।
4. भारत जोड़ो यात्रा से पहले प्रेशर पॉलिटिक्स : अजय माकन ने भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में एंट्री करने के पखवाड़े भर पहले गहलोत गुट पर सवाल उठाए हैं। माकन हाईकमान की अथॉरिटी को मुद्दा बनाते हुए एक्शन की मांग कर रहे हैं।
सवाल 7 : क्या गहलोत गुट के नेताओं पर एक्शन होगा?
जवाब : सियासी बवाल के जिम्मेदार तीनों नेताओं शांति धारीवाल, महेश जोशी ओर धर्मेंद्र राठौड़ के खिलाफ अब आगे कार्रवाई होने के आसार बनते दिख रहे हैं। कांग्रेस अनुशासन कमेटी के पास तीनों नेताओं के नोटिस के जवाब हैं, अब केवल एक्शन लेना बाकी है।
कांग्रेस अनुशासन कमेटी के मेंबर तारिक अनवर कह चुके हैं कि एक्शन का फैसला पार्टी अध्यक्ष करेंगे। सचिन पायलट गुट और अजय माकन की अब सबसे बड़ी मांग तीनों नेताओं के खिलाफ एक्शन की है।
आगे विवाद और बढ़ने पर राहुल गांधी की यात्रा से पहले तीनों नेताओं के खिलाफ एक्शन हो सकता है। सरदारशहर उपचुनाव में तीनों नेताओं को स्टार प्रचारक भी नहीं बनाकर पार्टी ने उनसे दूरी बनाने के संकेत भी दे दिए हैं। यह हाईकमान पर निर्भर करेगा कि महेश जोशी और धारीवाल को सभी पदों से हटाया जाता है या केवल एक पद से। बीच का रास्ता निकाले जाने के भी आसार हैं।
सवाल 9 : उपचुनाव को प्रभावित करेगा ये सियासी विवाद?
जवाब : सरदारशहर उपचुनाव से पहले उठे विवाद की चर्चाएं खूब हैं, लेकिन ग्राउंड जीरो पर इस विवाद का असर होना और वोटिंग पैटर्न पर फर्क पड़ना संभव नहीं है। उपचुनाव में स्थानीय मुद्दे ही हावी हैं। सरदारशहर में कांग्रेस ने सहानुभूति लहर का फायदा उठाने का प्रयास किया है, यह फार्मूला पिछले उपचुनावों में भी कामयाब रहा था। सियासी बयानबाजी के अलावा ग्राउंड पर पायलट-गहलोत टकराव की खूब चर्चाएं हैं।
सवाल 10 : गहलोत गुट के विधायकों के इस्तीफे मंजूर हुए तो क्या होगा?
जवाब : गहलोत गुट के विधायकों ने 25 सितंबर को विधायक दल की बैठक का बहिष्कार करने के बाद स्पीकर सीपी जोशी को इस्तीफे दिए थे। ये इस्तीफे अब भी स्पीकर के पास हैं। गहलोत गुट ने उस वक्त कहा था कि सचिन पायलट और उनके साथ मानेसर जाने वाले विधायकों में से कोई भी CM नहीं बनना चाहिए, वे इसे मंजूर नहीं करेंगे।
गहलोत कैंप के रणनीतिकारों का तर्क है कि ये इस्तीफे ही CM बदलने की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इसी वजह से हाईकमान के हाथ बंधे हुए हैं। स्पीकर के पास रखे विधायकों के इस्तीफे मंजूर हुए तो सरकार गिर जाएगी, यह फैक्ट हाईकमान भी जानता है।
गहलोत गुट दे रहा था यात्रा का रूट बदलने का सुझाव, लेकिन रूट वही रहा
राजस्थान में राहुल गांधी की यात्रा के रूट में बदलाव को लेकर पहले चर्चाएं चलीं। गहलोत गुट के कई मंत्री और नेताओं ने यात्रा के रूट को बदलने का सुझाव दिया, लेकिन इसे नहीं माना गया। पहले से तय रूट के हिसाब से यात्रा झालावाड़ जिले से एंटर करके कोटा, बूंदी, सवाईमाधोपुर, दौसा,अलवर जिलों को कवर करेगी।
वाइल्ड लाइफ सेंचुरी का हवाला देते हुए यात्रा का रूट बदलने का सुझाव दिया गया। राहुल गांधी की यात्रा में रूट नहीं बदला गया है, यात्रा की केंद्रीय स्तर पर बनी कमेटी ही इस पर फैसला करेगी। राहुल गांधी की यात्रा के रूट को लेकर भी गहलोत और पायलट खेमों के बीच ठन गई थी, पायलट खेमे के नेताओं रूट बदलाव का विरोध किया था, लेकिन अब रूट पर तस्वीर साफ है, बदलाव नहीं होगा।
रूट बदलने के विरोध में पायलट खेमा
भारत जोड़ो यात्रा के रूट बदलाव ओर गुर्जर नेता विजय बैसला के विरोध के बाद सचिन पायलट समर्थक नेता और विधायक मुखर हो गए हैं। पायलट समर्थक विधायकों ने इसे असली मुद्दे से ध्यान हटाने का षड्यंत्र बता दिया। पायलट गुट के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा का विरोध हो या रूट बदलने की चर्चाएं, ये सब सचिन पायलट को बदनाम करने की साजिश के तहत किया जा रहा है।
पायलट खेमा CM बदलने की मांग पर अड़ा
माकन के इस्तीफे के पीछे राजस्थान में CM बदलने की मांग और इससे जुड़े विवाद को भी बड़ा कारण माना जा रहा है। सचिन पायलट खेमा लगातार राजस्थान में CM बदलने की मांग पर अड़ा हुआ है। गहलोत खेमा किसी कीमत पर पायलट को CM नहीं बनने देने की रणनीति में जुटा हुआ ह
25 सितंबर को विधायक दल की बैठक बुलाने का मकसद भी नए CM का चयन करने का फैसला हाईकमान पर छोड़ने का था। गहलोत गुट ने इसी वजह से विधायक दल की बैठक का बहिष्कार किया था। आगे भी यही मुद्दा और तेजी से उठेगा और कांग्रेस में टकराव का कारण बनेगा। राजस्थान में CM बदलने को लेकर अब भी गहलोत ओर पायलट खेमों के अपने अपने दावे हैं, लेकिन बदलाव पर फिलहाल तस्वीर साफ नहीं है।
विवाद नई बात नहीं
CM अशोक गहलोत का मौजूदा प्रभारी अजय माकन से विवाद नई बात नहीं है। पहले भी दो प्रदेश प्रभारियों के साथ गहलोत की ट्यूनिंग सही नहीं रही थी। सचिन पायलट के प्रदेशाध्यक्ष रहते हुए गुरदास कामत प्रदेश प्रभारी थे। कामत से भी गहलोत की टयूनिंग नहीं बैठी।
कामत का झुकाव पायलट की तरफ माना जाता था। गहलोत के पहले कार्यकाल के बाद हरियाणा के वरिष्ठ नेता चौधरी वीरेंद्र सिंह को राजस्थान का प्रभारी बनाया था, लेकिन वीरेंद्र सिंह और गहलोत के बीच कभी अच्छे संबंध नहीं रहे। वीरेंद्र सिंह ने कहा था कि मैं यहां टिकट बांटने आया हूं, घास खोदने नहीं। कुछ समय बाद ही वीरेंद्र सिंह का प्रभार बदल दिया गया था। वीरेंद्र सिंह बाद में बीजेपी में चले गए।