कोरोना के बढ़ते संक्रमण के कारण देश में पिछले 65 दिनों से लॉकडाउन है। बंद के कारण से देश के कोने-कोने में रह रहे प्रवासी मजदूरों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। देश के विभिन्न भागों में फंसे प्रवासी मजदूरों की दयनीय हालत और उनकी समस्या पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जहां केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए Solicitor General तुषार मेहता ने बताया कि अभी तक 91 लाख प्रवासियों को उनके घर भेजा जा चुका है। इनमें से 80 प्रतिशत के करीब बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बसों और ट्रेनों से सफर करने वाले प्रवासी मजदूरों से कोई किराया ना लिया जाए और राज्य सरकारों को ही यह खर्च उठाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि फंसे हुए मजदूरों को राज्य सरकारें तब तक खाना दें, जब तक वे अपने घर जाने के लिए बसों या ट्रेनों पर सवार नहीं हो जाते। उन्हें स्टेशन पर भी राज्य सरकारें खाना दें और यात्रा के दौरान रेलवे को उनके लिए यह व्यवस्था करनी चाहिए।
इससे पहले केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य सरकारों से को-ऑर्डिनेट कर प्रवासी मजदूरों को स्पेशल ट्रेनों और बसों से उनके राज्यों में पहुंचाया जा रहा है। 1 मई से 27 मई तक 91 लाख मजदूरों को घर पहुंचा दिया गया। लेकिन, कोर्ट ने पूछा- क्या यात्रा में उन्हें भरपेट खाना खिलाया गया?
अदालत ने कहा- प्रवासियों को खाना मिलना ही चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या प्रवासियों से किसी भी स्तर पर टिकट के पैसे मांगे गए? सवाल ये है कि राज्य सरकारें टिकटों के पैसे कैसे चुका रही हैं। अगर प्रवासियों से पैसे ले रहे हैं तो क्या उन्हें रिएंबर्स कर रहे हैं? ट्रेन के इंतजार के दौरान उन्हें खाना मिल रहा या नहीं? कोर्ट ने कहा- प्रवासियों को खाना मिलना ही चाहिए। सॉलिसिटर जनरल ने जवाब दिया कि खाना दिया जा रहा है।
कई जरूरतमंदों को फायदा नहीं मिला: सुप्रीम कोर्ट
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हर रोज करीब 3.36 लाख प्रवासियों को उनके राज्यों में पहुंचाया जा रहा है। सरकार ऐसे सभी प्रवासियों को उनके घर पहुंचाएगी। अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें प्रयास कर रही हैं, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन बहुत से जरूरतमंद लोगों को फायदा नहीं मिल पाया।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से 28 मई तक जवाब मांगा था
अदालत ने इस मामले में मंगलवार को स्वत: संज्ञान लिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मजदूरों की हालत खराब है। उनके लिए सरकार ने जो इंतजाम किए हैं वे नाकाफी हैं। कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।अदालत ने कहा था कि सरकारों को तुरंत प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है। प्रवासी मजदूरों को घर तक पहुंचाने के लिए यात्रा, ठहरने और खाने की व्यवस्था तुरंत होनी चाहिए। इस काम में एजेंसियों के बीच तालमेल जरूरी है।
जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह की बेंच ने मीडिया रिपोर्ट्स और मजदूरों की बदहाली पर मिल रही चिट्ठियों के आधार पर संज्ञान लिया था। कोर्ट ने कहा था कि पैदल घर लौट रहे प्रवासियों के लिए रास्ते में खाने-पीने के इंतजाम नहीं होने की शिकायतें मिल रही हैं।