वृंदावन। हरिद्वार में होने वाले कुंभ से पहले आज वृंदावन में वैष्णव कुंभ का शुभारंभ हुआ। यमुना तट पर यह 12 बरस में एक बार बसंत पंचमी से आयोजित किया जाता है। मान्यता है कि वृंदावन राधा-कृष्ण के प्रेम की भूमि है। यहां रसिक भाव से वैष्णव मत के साधु संत अपने अराध्य की पूजा अर्चना करते हैं। वृंदावन में इस वैष्णव कुंभ में शैव (नागा) संन्यासी नहीं आते हैं। केवल वैष्णव संतों का आगमन होता है। इस कुंभ मेले का समापन 28 मार्च को होगा। इसके बाद संत हरिद्वार कुंभ के लिए कूच कर जाएंगे।
11 मीटर ऊंचा धर्म ध्वज फहराया गया
धार्मिक नगरी वृंदावन के यमुना तट पर मंगलवार को वैष्णव संतों के आध्यात्मिक संगम के साथ बसंत पंचमी पर्व से वैष्णव कुंभ का शुभारंभ हो गया है। इस दौरान तीनों अनि अखाड़ों निर्मोही, दिगंबर, निर्वाणी के श्री महंतो की अगुवाई में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ ध्वजारोहण विधि विधान पूर्वक किया गया।
पुरोहित सुभाष गौड़ सरदार के आचार्यत्व में श्री महंत धर्मदास ने संतों के साथ पूजा अर्चना कर धर्म ध्वजा स्थापित की। इसी के साथ अन्य अखाड़ों व शिविरों में भी ध्वजारोहण का क्रम शुरू हो गया। सर्वप्रथम निर्वाणी अखाड़े में 11 मीटर ऊंची ध्वजा को लगाया गया। उसके बाद अन्य अखाड़ों में ध्वजा लहराई गईं।
ध्वजारोहण के समय ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, सांसद हेमा मालिनी, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह भी मौजूद रहे। ध्वजारोहण के समय संतों ने शस्त्रों का प्रदर्शन करते हुए करतब दिखाए। बैंड और ढोल की धुन के बीच संत कभी तलवार तो कभी फरसा से करतब दिखा रहे थे। इस कुंभ में करीब 50 हजार साधु संतों के एकत्रित होने की संभावना है।
तीनों अनि अखाड़ों ने जमाया डेरा
वैष्णव मत का प्रमुख केंद्र ब्रज वृंदावन और अयोध्या है। लेकिन बड़ी संख्या में देश के अलग अलग तीर्थों में भी प्रमुख वैष्णव संत निवास करते हैं। वैष्णव संतों के निर्मोही, निर्वाणी और दिगंबर अनि अखाड़े के प्रमुख संत राजेन्द्र दास, धर्मदास और कृष्ण दास अपने-अपने अखाड़ों के साथ वृंदावन कुंभ में पहुंच गए हैं।
सुरक्षा के कड़े इंतजाम
कुंभ को लेकर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। मेले में अस्थायी पुलिस लाइन का निर्माण किया गया है। वहीं तीन थाने, 12 पुलिस चौकी, 12 वॉच टॉवर बनाए गए हैं। वहीं जल पुलिस और SDRF को भी तैनात किया गया है।
इन तिथियों में होगा शाही स्नान
तिथि | स्नान |
27 फरवरी | माघ पूर्णिमा |
09 मार्च | फाल्गुन एकादशी |
13 मार्च | फाल्गुन अमावस्या |
25 मार्च | रंगभरनी एकादशी (शाही परिक्रमा) |
ये है मान्यता
कुंभ के आयोजन का नाम जेहन में आने पर 4 स्थान हरिद्वार, नासिक, प्रयागराज और उज्जैन का नाम सामने आता है। लेकिन वृंदावन में होने वाले इस वैष्णव कुंभ की प्राचीनता के बारे में कोई सटीक प्रमाण नहीं है। हालांकि कहा जाता है कि इसका आयोजन औरंगजेब के शासनकाल में होता था।
मान्यता है कि जब समुद्र मंथन हुआ, तब उसमें से निकले अमृत कलश को लेकर गरुड़ भगवान चले। गरुड़ भगवान अमृत कलश को लेकर जब वृंदावन पहुंचे, तब उन्होंने कदंब वृक्ष पर उस अमृत कलश को रख दिया और विश्राम करने लगे। यहां विश्राम करने के बाद गरुड़ भगवान उस कलश को लेकर नासिक, उज्जैन, प्रयागराज, हरिद्वार गए। जहां अमृत कलश से बूंद छलकने के कारण वहां कुंभ लगने लगा।