वॉशिंगटन। कोरोना की दूसरी लहर के बीच अमेरिकी कंपनी फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन को लेकर अच्छी खबर आई है। अमेरिका में की गई एक स्टडी में दावा किया गया है कि इन दोनों कंपनियों की वैक्सीन पहले डोज के बाद भी काफी असरदार हैं। इन वैक्सीन का पहला डोज लेने के दो हफ्ते बाद संक्रमण का खतरा 80% तक कम हो जाता है। जबकि दूसरा डोज लेने के दो हफ्ते बाद रिस्क 90% तक घट जाता है।
4000 लोगों पर की गई स्टडी
ये डेटा अमेरिका के उन 4000 लोगों पर की गई स्टडी से सामने आए हैं, जिन्हें वैक्सीन लग चुकी है। इनमें हेल्थकेयर वर्कर्स भी शामिल हैं। ये स्टडी यूएस सेंटरर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने की है। इसमें इवैल्यूशन किए गए कि संक्रमण से बचाने में वैक्सीन कितनी असरदार है। CDC के डायरेक्टर रोशेल वेलेंस्की का कहना है कि इस स्टडी से पता चलता है कि हमारी वैक्सीनेशन की कोशिशें कारगर साबित हो रही हैं।
यह स्टडी 14 दिसंबर 2020 से 13 मार्च 2021 के दौरान की गई। इसके रिजल्ट सोमवार को जारी किए गए हैं। इस स्टडी में दोनों कंपनियों के क्लीनिकल ट्रायल्स के डेटा का भी इस्तेमाल किया गया। बता दें भारत में भी फाइजर और मॉर्डना की वैक्सीन को अप्रूवल नहीं मिला है। यहां सीरम इंस्टीट्यूट की कोवीशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सिन यूज की जा रही है।
फाइजर की वैक्सीन के साइड इफेक्ट सामने आए थे
फाइजर की वैक्सीन पर करीब तीन महीने तब सवाल उठे थे, जब फिनलैंड और बुल्गारिया में वैक्सीन के साइड इफेक्ट के मामले सामने आए थे। ड्रग एजेंसी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बॉग्डन किरिलोव ने बताया था कि बुल्गारिया में जिन 4 लोगों में वैक्सीन के साइड इफेक्ट उनमें से दो ने दर्द की और दो ने सुस्ती और टेम्परेचर बढ़ने की शिकायत की। इससे पहले फिनलैंड में भी पांच लोगों में गंभीर साइड इफेक्ट देखने को मिले थे।
कनाडा में 55 साल से कम उम्र वालों को एस्ट्राजेनेका वैक्सीन लगाने पर रोक
कनाडा में 55 साल से कम उम्र के लोगों को एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन नहीं दी जाएगी। माना जा रहा है कि ब्लड क्लॉट जैसे साइड इफेक्ट की शिकायतें मिलने के बाद यह फैसला किया गया है। यहां वैक्सीनेशन के लिए बनी नेशनल एडवाइजरी कमेटी ने यह रोक लगाई है।
15 से ज्यादा देशों में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन पर लगी रोक हट चुकी
इससे पहले जर्मनी, इटली और फ्रांस समेत 15 से अधिक देशों ने एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन के इस्तेमाल पर अस्थायी रोक लगाई थी, जो अब हट चुकी है। वैक्सीन पर रोक लगाने के पीछे दावा था कि वैक्सीन लगावाने वाले कुछ लोगों के शरीर में ब्लड क्लॉटिंग (खून के थक्के) बन रहे थे। हालांकि, इस बात के पुख्ता सबूत नहीं हैं कि ऐसा वैक्सीन से हुआ है।