नई दिल्ली। अमृतसर के बलजीत सिंह अपने साथियों के साथ 24 अप्रैल को केदारनाथ पहुंचे। उन्हें पता था कि इस साल से तीर्थयात्रियों के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन जरूरी कर दिया गया है और उन्होंने अपने और अपने साथियों का रजिस्ट्रेशन करा लिया। लेकिन बलजीत सिंह और उनकी तरह के तमाम ‘रजिस्टर्ड’ श्रद्धालु बाहर ही रह गए क्योंकि बिना ‘टोकन’ वाले हजारों लोग मंदिर में घुस गए थे।
उत्तराखंड के लोगों को रजिस्ट्रेशन से छूट है लेकिन यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं था कि कौन राज्य का है और कौन बाहरी। इसके अलावा, तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ का एक असर यह भी हुआ कि केदारनाथ में होटल की दरें आसमान पर पहुंच गईं। एक-एक रात के लिए 15,000 रुपये तक वसूले गए।
बलजीत सिंह ने वहां की अव्यवस्था को बताने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। उन्होंने कहा, ‘कहां है उत्तराखंड पुलिस जिसे भीड़ को नियंत्रित करने के लिए यहां होना चाहिए था? गरीब तीर्थयात्री भला इतने पैसे कैसे देंगे? उनके पास एक ही रास्ता बचता है- शून्य से नीचे तापमान में खुले आसमान के नीचे रात गुजारते हुए ठंड में कुल्फी बनें। बलजीत कहते हैं, ‘इससे तो अच्छे हमारे गुरुद्वारे हैं। वहां इस तरह की लूट नहीं होती।’
रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित कहते हैं कि ‘22 अप्रैल को चार धाम यात्रा शुरू होने के बाद रोजाना 15,000 लोग केदारनाथ पहुंच रहे हैं जबकि यहां केवल 7.5 हजार के रहने का इंतजाम है।’
इसके अलावा, मौसम ने भी लोगों की मुसीबतों को बढ़ा रखी है। चारों धाम में भारी हिमपात हुआ है। उत्तराखंड मौसम विभाग के निदेशक बिक्रम सिंह ने हाल ही में लोगों को सुझाव दिया कि फिलहाल वे यात्रा स्थगित कर दें, क्योंकि ऊपरी हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी का अनुमान है। स्थानीय प्रशासन भी श्रद्धालुओं से यात्रा स्थगित करने की अपील कर रहा है, लेकिन तीर्थ यात्रा को लेकर जिस तरह से प्रचार किया गया है, उसका नतीजा है कि 1 मई को 30,000 तीर्थयात्रियों ने केदारनाथ जाने के लिए पंजीकरण कराया। स्थिति यह है कि 28 अप्रैल तक 22 लाख से ज्यादा लोगों ने चारधाम यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया।
तमाम लोगों ने शिकायत की कि खराब मौसम के बारे में उन्हें कोई पूर्व चेतावनी नहीं मिली जबकि जिलाधिकारी दीक्षित का दावा है कि वह तीर्थयात्रियों से लगातार अपील कर रहे हैं कि अगर उनके पास होटल की कन्फर्म बुकिंग है, तभी यात्रा पर आएं, वर्ना नहीं। इस साल यात्रा शुरू होने के बाद से केदारनाथ में हृदय गति रुक जाने से अब तक तीन लोगों की मृत्यु हो चुकी है जबकि एक अन्य तीर्थयात्री की फिसलकर गौरीकुंड में गिर जाने से मौत हो गई।
एक तीर्थयात्री ने बताया कि गौरीकुंड से केदारनाथ का रास्ता बेहद संकरा है और उसी रास्ते से चलने वाले घोड़े से चोट लग जाने का खतरा होता है। अगर इस घुमावदार रास्ते को छोड़कर शॉर्टकट लें तो सीधी चढ़ाई वाले रास्तों पर चलना और भी मुश्किल होता है। यात्रा के अंतिम 8-10 किलोमीटर कम ऑक्सीजन और तापमान में अचानक गिरावट बुजुर्गों, बीमार और हाई बीपी से पीड़ित लोगों के लिए घातक साबित हो रहे हैं।
चारधाम यात्रा उत्तराखंड के लिए मोटी कमाई और रोजगार का बड़ा मौका होता है। सालाना इससे 7,500 करोड़ की कमाई होती है। पिछले साल लगभग 45 लाख लोगों ने चार धाम की यात्रा की जबकि 1.4 लाख अन्य लोगों ने केदारनाथ यात्रा के लिए हेलीकॉप्टर सेवा का लाभ उठाया।
लेकिन यह सब राज्य के प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम दोहन की कीमत पर हो रहा है। 24 अप्रैल को देहरादून की पर्यावरणविद रीनू पॉल ने देहरादून से केदारनाथ तक 65 हेलीकॉप्टरों की उड़ानें गिनाईं। पॉल ने बताया, ‘बार-बार हेलीकॉप्टर के उड़ने से कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन होता है, जो ग्लेशियरों के पिघलने की गति को तेज कर देता है। ध्वनि प्रदूषण होता है, वह अलग।’
पर्यावरण विशेषज्ञ और चार धाम परियोजना पर सर्वोच्च न्यायालय की उच्चस्तरीय समिति के पूर्व सदस्य हेमंत ध्यानी ने चेताया था कि राज्य सरकार नाजुक हिमालय का उसकी वहन क्षमता से अधिक दोहन कर रही है। इस व्यावसायिक शोषण का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल बड़े पैमाने पर पेटीएम क्यूआर कोड केदारनाथ और बद्रीनाथ मंदिरों के बाहर लगाए गए हैं।
10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित बदरीनाथ धाम में भी स्थिति बेहतर नहीं है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चाहते हैं कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर और उसके आसपास किए गए पुनर्विकास की तर्ज पर केदारनाथ और बदरीनाथ का पुनर्विकास हो। काशी विश्वनाथ विकास परियोजना अहमदाबाद स्थित आर्किटेक्चरल फर्म आईएनआई डिजाइन स्टूडियो को सौंपी गई थी। उन्हें केदारनाथ और बदरीनाथ- दोनों का भी मेकओवर करने को कहा गया है।
पुनर्निर्माण के लिए 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि उपलब्ध कराई गई है और इसका इंतजाम मुख्य रूप से सार्वजनिक उपक्रमों से किया गया है। आईएनआई डिजाइन स्टूडियो ने 2022 में केदारनाथ मंदिर के पीछे आदि शंकराचार्य की बड़ी प्रतिमा की परिकल्पना करने में मदद की जिसका उद्घाटन पीएम मोदी ने किया था।
पुनर्निर्माण में केदारनाथ मंदिर को सीधे केदारपुरी उपनगर से जोड़ने वाली 70 फीट चौड़ी और 840 फीट लंबी कंक्रीट की सड़क का निर्माण शामिल है। चूंकि 2013 की बाढ़ शहर के साथ बहती सरस्वती और मंदाकिनी नदियों के कारण आई थी, सरस्वती नदी के साथ 850 फुट लंबी तीन स्तरीय रिटेनिंग वॉल और मंदाकिनी के किनारे 350 फुट के सुरक्षा कवर का निर्माण किया गया है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी और जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के विशेषज्ञ नदियों के किनारे दीवार बनाने को गलत बताया है। जाने-माने भूविज्ञानी डॉ. एस सती ने कहा, ‘इन दीवारों पर सैकड़ों करोड़ खर्च किए जा रहे हैं लेकिन इस क्षेत्र को तबाह कर सकने वाले भूस्खलन या बाढ़ का सामना भला कौन दीवार कर सकती है?’ 21 सितंबर, 2022 को प्रधानमंत्री के दर्शन के बाद बद्रीनाथ में पुनर्निर्माण कार्य तेजी से हो रहा है।
आवास, पार्कों, होटलों के लिए जगह और वाहनों की पार्किंग के लिए भूमिगत सुरंगों के निर्माण पर जोर दिया जा रहा है। इन साइटों पर काम की निगरानी पीएमओ द्वारा बिना किसी स्थानीय इनपुट के की जा रही है।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के प्रमुख अतुल सती बताते हैं कि बदरीनाथ में पुनर्निर्माण कार्य के तहत पुरानी धर्मशालाओं को तोड़ दिया गया है। इससे कई हजार गरीब यात्री फंसे हुए हैं। उन्होंने कहा, ‘जब मैं दर्शन के लिए कतार में खड़ा हुआ, तो बद्रीनाथ मंदिर के बाहर 30,000 लोगों की कतार थी। घंटों इंतजार के बावजूद कई लोग दर्शन नहीं कर पाए।’ सती ने बताया कि ‘पहले लोगों को जोशीमठ के होटलों में ठहराया जाता था।
इस वर्ष प्रशासन लोगों को जोशीमठ में ठहरने नहीं दे रहा। देर रात तक बद्रीनाथ तक सड़क यातायात जारी रहता है जो अपने आप में जोखिम भरा है। दोनों शहरों को जोड़ने वाला गोबिंद घाट मार्ग मरम्मत के लिए अक्सर बंद रहता है।’
भारी बारिश के कारण भूस्खलन बढ़ गया है जिससे तीर्थयात्रियों और स्थानीय लोगों को भारी असुविधा हुई है। सरकार पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील इन पहाड़ों पर अचानक इतनी संख्या में लोगों के आने को लेकर बेफिक्र रहती है। इससे भी बुरी बात यह है कि तीर्थयात्री पहाड़ों के किनारों और नदियों में धड़ल्ले से कूड़ा-कचरा फेंकते हैं।
मुख्यमंत्री धामी बुनियादी सेवाओं और सुविधाओं में सुधार के प्रकृति अनुकूल उपाय की बजाय केदारनाथ और बदरीनाथ की तर्ज पर और मंदिर बनाने की योजना बना रहे हैं ताकि बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित किया जा सके। सरकार समझ नहीं रही कि पर्यावरण अनुकूल आचरण का पालन करना उसके दीर्घकालिक हित में है। इस पवित्र देवभूमि का हो रहा राक्षसी दोहन ही इसे नष्ट करने का काम करेगा।