लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में अपने तंज, व्यंग्य और राजनीतिक बयानों से भाजपा को लहूलुहान करने वाले सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बहुत खामोश चल रहे हैं। पार्टी के नेता आजम खां के करीबियों का बयान आया, चाचा शिवपाल यादव ने भी लखनऊ से दिल्ली तक दौड़ लगाई, लेकिन अखिलेश यादव शांत हैं।
खबर है कि पार्टी में चल रही गतिविधियों पर सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव चिंतित हैं, लेकिन अभी अखिलेश पार्टी के नेताओं के बगावती सुर पर भी कुछ नहीं बोल रहे हैं। यहां तक कि पार्टी की चुनाव में हार पर समीक्षा को लेकर भी वह खामोश हैं। अखिलेश के करीबियों की मानें तो राष्ट्रीय अध्यक्ष नई तैयारी में लग चुके हैं। जल्द ही मीडिया के सामने भी आएंगे और उत्तर प्रदेश सरकार तथा केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ बयान भी देंगे।
अभी अखिलेश यादव की निगाह एक बार फिर उत्तर प्रदेश में पार्टी संगठन पर टिक गई है। इसके अलावा वह सही समय का भी इंतजार कर रहे हैं। 2012-17 में अखिलेश की कैबिनेट में मंत्री रहे सूत्र की मानें तो 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में सपा एक बार फिर कमाल करेगी। बस देखते जाइए।
क्या करेंगी वसुंधरा राजे?
राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे क्या करेंगी? 2023 में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के बाबत सवाल छोटा है। लेकिन भांपने में जयपुर से दिल्ली तक भाजपा के दर्जनभर नेता लगे हैं। भाजपा छोडि़ए, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी की निगाहें भी पूर्व सीएम का अंदाज पकड़ने में लगी हैं। वसुंधरा दिल्ली में थीं। अवसर था केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के बेटे अरुणोदय के विवाह समारोह का। तमाम केंद्रीय नेता वहां थे।
भाजपा के संस्थापकों में एक डा. मुरली मनोहर जोशी भी थे। वसुंधरा बेटे दुष्यंत के साथ सबसे अपने अंदाज में मिलीं। इससे पहले वह प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समेत अन्य से मिल चुकी हैं। केंद्र भरोसा देता है कि वसुंधरा सहयोग में आएं, उनका रखा जाएगा। जबकि वसुंधरा हैं कि उन्हें दांत से लगाम पकड़ना आता है। इसे राजस्थान के सीएम गहलोत भलीभांति जानते हैं।
सचिन पायलट को भी पता है। वसुंधरा के भतीजे और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी अच्छी तरह से मालूम है कि राजस्थान में बुआ ने गजब का पैर जमा रखा है। भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व केंद्रीय राज्यवर्धन सिंह राठौड़ और यहां तक कि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव भी सबकुछ भांपने में लगे हैं।
सिद्धू बाबा रस्सी तो जल गई लेकिन ऐंठन …..
पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू कांग्रेस की अनसुलझी पहेली बनते जा रहे हैं। पार्टी की भी हालत देखिए, न निगल पा रही है और न उगल पा रही है। सिद्धू के सलाहकार जहां पंजाब में पार्टी के इस हाल के लिए कांग्रेस हाईकमान को जिम्मेदार मानकर कोस रहे हैं, वहीं पंजाब कांग्रेस के बड़े नेता कांग्रेस हाईकमान से सिद्धू को मिले वीटो को कोस रहे हैं।
बात इसी गिले-शिकवे तक खत्म हो जाती तो ठीक था। लेकिन करारी हार के बाद भी नेताओं की ऐंठन कम होने का नाम नहीं ले रही है। कांग्रेस के सांसद मनीष तिवारी, पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ समेत तमाम नेता पार्टी की जड़ खोदने में लगे हैं। कांग्रेस के गुट-23 के नेता भी अपने अभियान में जुटे हैं।
इस बीच कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने अपनी पसंद के अमरिंदर सिंह बराड़ (राजा वाडिंग) को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कराकर पार्टी के नेताओं को संदेश दे दिया है। राजा वाडिंग सबको साथ लेकर चलने की कसरत कर रहे हैं और यहां उनके भी सामने सबसे बड़ी चुनौती पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू को मनाना है।
क्या बसपा के दिन बहुरेंगे?
बसपा के पुराने नेता, मायावती की कैबिनेट में मंत्री रहे सुधीर गोयल को फिलहाल अब 2007 के विधानसभा चुनाव जैसी स्थिति आती नहीं दिखाई दे रही है। उन्होंने बसपा प्रमुख मायावती का मौजूदा बहुजन मिशन भी कम समझ में आ रहा है। बसपा के संस्थापक कांशीराम के मिशन से भी वह तारतम्य मिलाने में लगे हैं।
दूसरी तरफ बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती 2022 के विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद काफी सक्रिय हैं। उन्हें बसपा के प्रदर्शन से कोई बहुत शिकायत नहीं है। फिलहाल बसपा प्रमुख ने पार्टी में नंबर दो के नेता सतीश चंद्र मिश्रा के करीबी नकुल दूबे को बाहर का रास्ता दिखा दिया है।
वह विधानसभा चुनाव में सपा को मिले बड़े झटके से भी काफी खुश बताई जा रही हैं। बहन जी को उम्मीद है कि उनकी पार्टी के दिन फिर से बहुरेंगे।