शिमला। बारिश इस वर्ष हिमाचल प्रदेश में आफ़त का दूसरा नाम बन चुकी है। कुल्लू, शिमला, मंडी और सोलन में रह- रहकर भारी बारिश हो रही है। अगले दो दिन के लिए फिर रेड अलर्ट जारी किया गया है। कुल्लू ज़िले में मात्र तीस सेकेंड में सात इमारतें गिर गईं।
पिछले चौबीस घंटों में हिमाचल में बारह लोगों की मौत हो चुकी है। ज़्यादातर हिमाचल प्रदेश, पर्यटन पर ही निर्भर है जो कि इस बार भारी बारिश के कारण लगभग चौपट हो चुका है।
कम से कम अब तो लोग और प्रशासन और सरकार यह समझेंगे कि नदी किनारे घर बनाना ठीक नहीं है। नदी का रास्ता रोकना या बदलना भी ठीक नहीं है। आख़िर इन आफ़तों को हम ही न्योता देते हैं। फिर इनको या उनको दोष देते फिरते हैं। लगभग एक-डेढ़ महीना होने को आया।
हिमाचल को इस आफ़त की बारिश के कारण साँस तक लेने की फ़ुरसत नहीं है। हिमाचल ही क्यों, पहाड़ इस आफ़त से कहीं भी मुक्त नहीं हैं। अब उत्तराखंड में भी भारी बारिश का अलर्ट है। वहाँ पहले से ज़मीन खिसकने और दरारों का मामला चल रहा है।
पहाड़ों के नीचे जो टनल बनाए जा रहे हैं, उनका असर अलग है और पहाड़ों को खोदकर सड़कें बनाई जा रही हैं या चौड़ी की जा रही हैं, उनका प्रभाव अलग। फिर वैसे भी उत्तराखंड के पहाड़ तो हिमाचल के पहाड़ों की तुलना में काफ़ी कच्चे हैं। हिमाचल जैसी बारिश उत्तराखंड में भी हुई तो वहाँ क्या होगा?
अब सवाल यह उठ सकता है कि क्या विकास कार्य नहीं किए जाएँ? या जो विकास चल रहा है, उसे रोक दिया जाए? नहीं। विकास करना एक बात है और ऐसे दुरुह क्षेत्रों में वैज्ञानिक सलाह के अनुसार विकास करना अलग बात। ख़तरों की चेतावनियों को ठुकराते हुए विकास किए जाएँगे तो ऐसे विकास को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा।
सावधानी हर हाल में ज़रूरी है। अभी तो जोशी मठ के आस-पास आई दरारों के कारण बेघर हुए लोगों की समस्याओं का भी पूरी तरह निदान नहीं हो पाया है। आगे क्या होगा, यह तो बारिश की विकरालता ही बता सकती है। हर जगह बाबा केदार का मंदिर तो है नहीं कि कहीं से कोई एक बड़ा पत्थर आकर पीछे टिक जाए और तमाम आफ़तों से हर किसी को मुक्त कर दे।
लोगों को, प्रशासन को और सरकार को सावधानी बरतनी ही होगी। विकास अवश्य कीजिए, लेकिन अंधा विकास नहीं। अंधा विकास हमेशा विनाश को ही आमंत्रण देता है और आगे भी देता रहेगा।