बीते 10 साल में तो नहीं आए अच्छे दिन, सूचकांक तक नीचे गिरा है भारत

मैंने 2021 में प्राइस ऑफ द मोदी ईयर्स शीर्षक से एक किताब लिखी थी। इसके एक अध्याय में मैंने ऐसे विभिन्न वैश्विक संकेतकों के आधार पर भारत की स्थिति का तुलनात्मक विवरण दिया है जिन्हें मैं बरसों से देख रहा हूँ ताकि यह पता चल सके कि उनमें क्या सुधार हुआ है, वे वैसे ही रहे हैं या फिर 2014 के बाद से उनमें गिरावट आई है। समय-समय पर मैं यह देखने के लिए इन्हीं संकेतकों को फिर से देखता हूं कि इन पर भारत की स्थिति में क्या बदलाव आया है। आज के इस लेख के आखिर में मैं कुछ अहम बिंदुओं पर नजर डालूंगा।

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संयुक्त राष्ट्र का मानवविकास कार्यक्रम का संकेतक जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और राष्ट्रीय आय पर नज़र रखता है। इस मोर्चे पर 2014 में हमारी रैंकिंग 130 थी, और आज यह 134 है, यानी चार पायदान नीचे पहुंच गई है।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट का लोकतंत्र सूचकांक देशों में नागरिक स्वतंत्रता, बहुलवाद, राजनीतिक संस्कृति और भागीदारी और चुनावी प्रक्रिया पर नज़र रखता है। इस संकेतक पर 2014 में हमारी रैंकिंग 27 थी और ताजा रैंकिंग 47 है, जो 20 पायदान नीचे है। इस संकेतक में भारत को ‘त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र’ के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।

सिविकस (CIVICUS) मॉनिटर की राष्ट्रीय नागरिक स्थान रेटिंग संघ, शांतिपूर्ण सभा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का आकलन करती है। 2017 में, इसने भारत को एक ऐसा स्थान माना जहां ये स्वतंत्रताएं ‘बाधित’ थीं। भारत की मौजूदा रेटिंग इस मानक में गिरकर ‘दमित’ वर्ग में हो गई है और इसका कारण यह है कि ‘भारत के नागरिक स्थान में गिरावट की स्थिति चिंताजनक है।’

लोवी इंस्टीट्यूट एशिया पावर एशिया पावर इंडेक्स अर्थव्यवस्था, कूटनीति, सैन्य क्षमता, लचीलापन, व्यापार, भविष्य के रुझान, सांस्कृतिक प्रभाव के आधार पर राष्ट्रीय शक्ति और प्रभाव की निगरानी करता है। विदेश मंत्री जयशंकर ने नवंबर में सिडनी में लोवी इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञों से मुलाकात की थी। लोवी इंस्टीट्यूट के मुताबिक, भारत की स्थिति 2020 में 40 अंक की सीमा से नीचे गिरकर और फिर 2021 और 2022 में और नीचे गिरकर अपना ‘प्रमुख शक्ति’ का दर्जा खो दिया है। अभी 2024 और अभी भी भारत की स्थिति 40 से नीचे ही बनी रहेगी।

फ्रीडम हाउस की फ्रीडम इन द वर्ल्ड-1 में कानून के शासन, राजनीतिक बहुलवाद और चुनाव, सरकार के कामकाज, नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संघ और संगठन और व्यक्तिगत अधिकारों पर नज़र डाली गई है। यह 100 के पैमाने पर देशों की रेटिंग करता है और 2014 में भारत को 100 में से  77 रेटिंग दी गई थी और इसे ‘स्वतंत्र’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था। अब भारत को 100 में से 66 रेटिंग दी गई है और विभिन्न कारणों से इसे ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

विश्व न्याय परियोजना के कानून के शासन सूचकांक में आपराधिक और नागरिक न्याय प्रणाली, मौलिक अधिकार, सरकारी शक्तियों पर अंकुश, भ्रष्टाचार की गैरमौजूदगी, पारदर्शी सरकार, व्यवस्था और सुरक्षा तथा नियमों को लागू करने के आधार पर देशों की रेटिंग की जाती है। 2014 में भारत 66वें स्थान पर था, लेकिन 2022 में गिरकर 77वें और 2024 में 79वें स्थान पर आ गया। अन्य बातों के अलावा मौलिक अधिकारों और आपराधिक न्याय प्रणाली के मामले में भारत की स्थिति कमजोर आंकी गई है।

संयुक्त राष्ट्र सतत विकास समाधान नेटवर्क विश्व खुशहाली रिपोर्ट प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (पर कैपिटा जीडीपी), सामाजिक सहायता, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, जीवन के विकल्प चुनने की स्वतंत्रता, उदारता, भ्रष्टाचार और बरबाद होते देश (डिस्टोपिया) की धारणाओं को देखती है। इसमें भारत 2014 की 111वीं रैंकिंग से गिरकर 126वें स्थान पर आ गया है। इसके लिए दिए गए कारणों में ‘जीवन मूल्यांकन में बड़ी और लगातार गिरावट’, नागरिकों का कम आशावादी दृष्टिकोण (2020) और ‘भारतीय जीवन मूल्यांकन में दीर्घकालिक गिरावट’ (2021) शामिल हैं।

फ्रेजर इंस्टीट्यूट का वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक सरकार के आकार, कानूनी ढांचे, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने की स्वतंत्रता, कर्ज, श्रम और व्यापार से जुड़े नियमों को देखता है। भारत की रैंकिंग इसमें 2014 में 112 से बढ़कर 84 हो गई है।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स का विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक मीडिया की स्वतंत्रता, बहुलवाद, स्व-सेंसरशिप, दुर्व्यवहार और पारदर्शिता पर नज़र रखता है। भारत 2014 में इस सूचकांक पर 140वें स्थान से (जो पहले से ही अच्छा नहीं था) गिरकर 159वें स्थान पर आ गया है।

विश्व बैंक का महिला, व्यवसाय और कानून सूचकांक उन कानूनों और नियमों की निगरानी करता है जो गतिशीलता, कार्यस्थल, वेतन, विवाह, पितृत्व, उद्यमिता, संपत्ति और पेंशन जैसे संकेतकों पर महिलाओं के आर्थिक अवसरों को तय या निर्धारित करते हैं। भारत 2014 की अपनी 111वीं रैंकिंग से गिरकर 113वें स्थान पर आ गया है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ग्लोबल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स देशों के सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार को देखता है। भारत 2014 में 85वें स्थान से गिरकर 93वें स्थान पर आ गया है।

हेरिटेज फाउंडेशन वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक कानून के शासन, सरकार के आकार, नियामक दक्षता और खुले बाजारों पर नज़र रखता है। वर्ष 2014 में भारत 120वें स्थान पर था और तब से गिरकर 126वें स्थान पर आ गया है। इसके लिए दिए गए कारणों में ‘बड़े पैमाने पर राजनीतिक भ्रष्टाचार’; ‘भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के प्रभावी होने के कम सबूत’; ‘कुशलतापूर्वक काम करने वाले कानूनी ढांचे के बिना दीर्घकालिक आर्थिक विकास की कमजोर नींव का बना रहना’; ‘भारत में समग्र रूप से कानून का कमजोर शासन’ आदि शामिल हैं।

अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान का वैश्विक भूख सूचकांक भूख, बच्चों में बौनेपन और कुपोषण पर नज़र रखता है। 2014 में भारत 76 देशों में से 55वें स्थान पर था और अब 127 देशों में से 105वें स्थान पर है। 13 फीसदी से ज़्यादा भारतीय कुपोषित हैं, पांच साल से कम उम्र के 37 फीसदी बच्चे बौनेपन (उम्र के हिसाब से कम लंबाई) और 18 फीसदी कमज़ोर (लंबाई के हिसाब से कम वज़न) के शिकार हैं।

भारत ने भूख सूचकांक के निष्कर्षों को दोषपूर्ण बताते हुए खारिज कर दिया है और कहा है कि यह देश की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाता है। लेकिन वास्तविक स्थिति यह भी है कि सरकार खुद मानती है कि 60 फीसदी भारतीयों को हर महीने मुफ्त राशन की जरूरत है।

इसी तरह सरकार ने अन्य सूचकांकों में गिरावट को भी प्रेरित या पक्षपातपूर्ण या त्रुटिपूर्ण डेटा या किसी और कारण से खारिज कर दिया है। कुछ सूचकांकों पर तो इसने पूरी तरह से प्रतिक्रिया देना बंद कर दिया है। लेकिन जब मौजूदा सरकार ने पहली बार सत्ता संभाली थी तब तो माना था और कहा था कि हालात सुधरेंगे।

मोदी के पहले कार्यकाल में जब भारत विश्व बैंक के व्यापार सुगमता सूचकांक (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) में ऊपर आया तो इसे सुशासन की उपलब्धि के रूप में जश्न के तौर पर मनाया गया। लेकिन जैसे ही पता चला कि सूचकांक में ऊपर आने के लिए देश खेल कर रहे हैं तो इस रैंकिंग को 2018 में बंद कर दिया गया।

मेरा व्यापक दृष्टिकोण यह है: जो लोग एक दशक या उससे अधिक समय से आंकड़ों पर नजर रख रहे हैं, वे केवल यही निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि शासन से जुड़े प्रमुख संकेतकों में गिरावट ही आई है।

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