कानपुर। 14 फरवरी 1981 को कानपुर देहात के बेहमई गांव में डकैत फूलन देवी और उसकी गैंग ने 26 लोगों को गोलियों से भून दिया था। इस कांड में 20 लोगों की मौत हुई थी। आज इस कांड के 40 साल पूरे हो गए हैं। मामला चार दशक से कोर्ट में है। कोर्ट 20 साल तक फूलन की हाजिरी के लिए इंतजार करती रही। 2001 में फूलन की हत्या के बाद कोर्ट का यह इंतजार भी खत्म हो गया।
लेकिन, 39 साल बाद यानी 2020 में इस मामले में कोई फैसला आने की उम्मीद थी। लेकिन, पता चला कि केस डायरी ही गायब हो गई है। तब से अदालत में तारीख पर तारीख मिल रही है। इस केस में कुल 35 आरोपी बनाए गए थे जिसमें अब केवल 4 जिंदा हैं। 15 लोगों की गवाही हुई है।
बेहमई कांड में कब-कब क्या हुआ? क्या घटनाक्रम घटे? अदालती कार्रवाई में इतनी देरी क्यों हुई? इन बातों को समझने के लिए केस से जुड़े बचाव पक्ष के वकील गिरीश नारायण दुबे से बात की। उन्होंने कहा कि पहले फूलन की कोर्ट में हाजिरी और उसके बाद अभियोजन पक्ष की लेटलतीफी के कारण इस केस का फैसला आने में देरी हो रही है। गिरीश नारायण दुबे ने सिलसिलेवार घटनाक्रम को बताया। एक रिपोर्ट…
औरतों और बच्चों के रोने की आवाज गूंज रही थी
14 फरवरी 1981: दोपहर के दो से ढाई बजे का समय था। फूलन और उसके साथ डकैत मुस्तकीम, रामप्रकाश और लल्लू गैंग के तकरीबन 35-36 लोगों ने बेहमई गांव को घेर लिया। घरों में लूटपाट शुरू कर दी। मर्दों को घर से बाहर खींचकर लाया गया। सभी गांव में एक टीले के पास 26 लोगों को इकट्ठा किया गया। इसके बाद फूलन और उसके साथियों ने उन (26 लोगों) पर ताबड़तोड़ 4 से 5 मिनट तक गोलियां बरसाईं। जिसमें से 20 लोगों की मौत हो गई जबकि 6 लोग घायल हो गए।
इसके बाद फूलन व उसके साथ आए डकैत गांव से निकल गए। गांव के ठाकुर राजाराम ने पुलिस को सूचना दी थी। तकरीबन 3 से 4 घंटे बाद पुलिस वहां पहुंची। गांव से सिर्फ औरतों और बच्चों की रोने की दूर दूर तक आवाजें आ रही थी। गांव के ऊपर कौए मंडरा रहे थे। ठाकुर राजाराम ने तब फूलन, मुस्तकीम, रामप्रकाश और लल्लू के खिलाफ नामजद FIR दर्ज कराई थी।
छत पर मिली चिट्ठी से खुले थे डकैतों के नाम
- 15 फरवरी 1981: अगले दिन बेहमई गांव के मरजाद सिंह को अपने घर की छत पर तीन पत्र मिले थे। उस पत्र में रामावतार, विश्राम सिंह मस्ताना, लालाराम, बृजलाल, विश्वनाथ निषाद, श्यामू उर्फ श्याम बाबू, मोती उर्फ काटू, रामकेश , रतिराम, बालादीन निषाद, राम सिंह, छोटेलाल निषाद समेत 12 डकैतों के नाम लिखे थे। इसी पत्र के आधार पर पुलिस ने अपनी तफ्तीश आगे शुरू की। 3 मार्च को पहली गिरफ्तारी रामकेश की हुई थी। उसने अन्य 10 डकैतों के नाम बताए थे।
- 03 मार्च 1981 से 06 अप्रैल 1981: फूलन पुलिस के हाथ नहीं लग रही थी। इससे सरकार की किरकरी हो रही थी। तत्कालीन UP के मुख्यमंत्री ने डकैतों पर सख्त रुख अपना रखा था। रामकेश के पकडे जाने के बाद पुलिस ने डकैतों के खात्मे का अभियान छेड़ दिया। 7 अप्रैल 1981 तक 11 डकैतों को पुलिस ने अलग-अलग मुठभेड़ में मार गिराया। इनमें मुस्तकीम, लल्लू, बलवान, मोती, ललतु, रामशंकर, बलराम सिंह चौहान, श्याम, वृंदावन, रामप्रकाश और रामपाल शामिल थे।
- 07 अप्रैल 1981: बेहमई कांड में सबसे पहले पकड़े गए आरोपी डकैत रामकेश के खिलाफ कोर्ट में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की।
- 24 नवंबर 1982: अब तक 15 आरोपी गिरफ्तार किए जा चुके थे। सबके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी थी। जिंदा आरोपियों में जो जानकारी में थी, वह सिर्फ फूलन देवी बची थी।
विक्रम मल्लाह का भाई भी आरोपियों में शामिल था
एडवोकेट गिरीश नारायण दुबे बताते हैं कि विक्रम मल्लाह जिसे लालाराम और श्रीराम ने मिलकर मार दिया था। उसका एक परिवार था। उसके परिवार में उसके अलावा तीन भाई शिवपाल, रामपाल और जयराम थे। बेहमई कांड के बाद जब पुलिस ने एनकाउंटर अभियान चलाया, तब रामपाल को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया था। इन सब घटनाओं से तब विक्रम के पिता कन्हैया परेशान थे।
उन्होंने सबसे छोटे बेटे जयराम की शादी विक्रम की असली पत्नी से करा दी और वह गांव छोड़ कर चला गया। बाद में शिवपाल बेहमई मामले में अरेस्ट हो गया। जयराम की भी बाद में बीमारी से मौत हो गयी। अब उसकी पत्नी और एक बच्चा बचा है, जोकि कहीं मेहनत मजदूरी से अपना जीवन यापन कर रहे हैं।
तत्कालीन CM वीपी सिंह के भाई की हत्या डकैतों ने की थी
- 28 जून 1982: UP के तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बीहड़ों से डकैतों का सफाया करने का दावा कर सत्ता हासिल की थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उस पर बेहमई कांड ने कानून व्यवस्था को खुली चुनौती दी थी। 20 ठाकुरों की हत्या से पूरा सिस्टम हिल गया था। पुलिस ने हर कोशिश की, लेकिन फूलन जिंदा या मुर्दा हाथ नहीं आई। इसी बीच डकैतों के एक गैंग ने मुख्यमंत्री के न्यायाधीश भाई की भी हत्या कर दी थी। जिसके बाद 28 जून 1982 को विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
- 13 फरवरी 1983: मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कहने पर फूलन ने अपने गैंग के 10 लोगों के साथ सरेंडर कर दिया। तब बेहमई कांड को दो साल पूरे हो चुके थे। फूलन 11 साल के लिए जेल भेजी गई थी।
ग्वालियर जेल में वारंट तामील नहीं कराते थे अफसर
एडवोकेट गिरीश नरायण दुबे कहते हैं कि फूलन चूंकि ग्वालियर जेल में थी। वहां उसके खिलाफ वारंट भेजा जाता तो वहां के अधिकारी उसे तामील नहीं करवाते। कारण फूलन न तो गिरफ्तार हुई थी न ही हाजिर हुई थी। प्रक्रिया यह होनी चाहिए थी कि उनकी फाइल अलग कर दी जाती। ताकि अन्य लोगों का मामला ट्रायल में चला जाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यदि ऐसा हुआ होता तो मामले में फैसला 1986 तक आ जाता।
मुलायम सिंह यादव की पार्टी से दो बार सांसद बनी फूलन
- 1994 में जेल से बाहर आई फूलन: सरेंडर के समय जो शर्ते तय हुई थीं, उसमें फूलन को 8 साल तक जेल में रहना था। लेकिन बिना किसी मुकदमे के फूलन 11 साल तक जेल में रही। 1994 में जब मुलायम सिंह यादव की UP में सरकार बनी तो उनके हस्तक्षेप से फूलन बाहर आई।
- 1996 से 1998 और 1999 से 2001 तक रही सांसद: मुलायम ने फूलन को राजनीती में उतारा और मिर्जापुर से वह सांसद बन गई। लगातार वह दो बार सांसद रही। इस दौरान भी बेहमई मामले में कोर्ट ने कोई कार्रवाई नहीं की।
- 25 जुलाई 2001: फूलन के जन्मदिन के दिन ही बेहमई के ठाकुरों की हत्या का बदला लेने के इरादे से शेर सिंह राणा ने फूलन को दिल्ली स्थित उनके आवास पर गोली मार दी। जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गयी।
- 24 अगस्त 2012: 1982 तक 15 आरोपियों की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हुई थी। जिसमें से 2012 में सिर्फ 5 आरोपियों पर आरोप तय किए गए। जिसमें श्याम बाबू, भीखा, पौशा उर्फ पोशे, विश्वनाथ उर्फ पुतानी और राम सिंह शामिल थे। राम सिंह की 13 फरवरी 2019 को जिला कारागार में मौत हो गई थी।
- 24 सितंबर 2012: इस तारीख को पहली गवाही वादी राजाराम की हुई थी। इसके बाद फरवरी 2015 तक 15 गवाहियां हुई।
39 साल बाद आना था फैसला, मगर क्यों लटका?
- 18 जनवरी 2020: 39 साल बाद बेहमई कांड का फैसला आने की उम्मीद थी। लेकिन आर्गुमेंट के लिए केस डायरी मंगाई गई तो पता चला कि केस डायरी गायब है। कोर्ट में केस डायरी ना होने के चलते अदालत ने सरकारी वकील को फटकार लगाते हुए 6 अप्रैल 2020 को केस डायरी के साथ पेश होने को कहा। लेकिन तब तक UP समेत पूरे देश में कोविड का असर हो चुका था। लॉकडाउन लगने से कोर्ट बंद हो गई। बीच-बीच में सामान्य तारीख पड़ती गई, लेकिन कोई काम नहीं हुआ।
- 14 दिसंबर 2020: बेहमई कांड के मुख्य वादी ठाकुर राजाराम की 85 साल की उम्र में निधन हो गया। 39 साल से ज्यादा समय तक उन्होंने कोर्ट में बेहमई कांड की लड़ाई लड़ी, लेकिन वह पीड़ितों को इंसाफ नहीं दिला पाए।
साल भर से केस डायरी गायब लेकिन जांच नहीं हुई
केस डायरी के गायब होने की सूचना 18 जनवरी 2020 को पता चली थी। साल भर बाद भी इस संबंध में कोई जांच नहीं हुई। हालांकि पुलिस सूत्रों के मुताबिक पुलिस का कहना है कि कोर्ट में हमने चार्जशीट के साथ ही केस डायरी सब्मिट की थी।
कुछ के खिलाफ सबूत नहीं मिले तो कई की शिनाख्त नहीं हो सकी
एडवोकेट गिरीश नारायण दुबे बताते हैं कि पूरे मामले में कुल 35 आरोपी सामने आए थे। जिनमें से 11 का एनकाउंटर हुआ था। फूलन देवी की हत्या हो गई थी। बाकी 8 आरोपियों में किसी के खिलाफ फाइनल रिपोर्ट लग गयी तो किसी के खिलाफ सबूत नहीं मिले तो किसी की शिनाख्त नहीं हुई। इस वजह से केस से वह बरी होते गए।
2012 में जिन 15 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल होनी थी, उनमें से केवल 5 ही कोर्ट में उपस्थित हुए। बाकी 10 आरोपियों में कई की मौत हो चुकी थी तो कुछ फरार चल रहे थे। ऐसे में जो कोर्ट में उपस्थित हुआ, उस पर ट्रायल शुरू किया गया।
एक आरोपी पोशा को कभी जमानत नहीं मिली
एडवोकेट गिरीश नारायण दुबे बताते हैं कि मुकदमे में केस डायरी के ना होने के चलते फैसला लटक गया है। बड़ा मामला होने के चलते इसमें फैसला कब आएगा? अभी कह पाना मुश्किल है। उन्होंने बताया कि पूरे घटनाक्रम में जितने भी आरोपी थे, उसमें से मात्र अब 4 ही जीवित हैं। जिसमें विश्वनाथ, भीखा, श्याम बाबू जमानत पर बाहर हैं। इन सभी की उम्र 60 के करीब है। वहीं पोशा, जिनकी उम्र 60 साल से अधिक है। इन्हें कभी जमानत मिली नहीं है।