बैडमिंटन में विश्व पटल पर बढ़ा भारत का गौरव

थॉमस कप: 14 बार के चैम्पियन को हराकर भारत बना विश्व विजेता

योगेश कुमार गोयल

खेलों के क्षेत्र में भारत अब लगातार शानदार प्रदर्शन कर रहा है। पिछले साल ओलम्पिक खेलों में सुखद प्रदर्शन के बाद अलग-अलग खेलों में भारतीय खिलाड़ी कमाल का प्रदर्शन करते हुए नित नए-नए रिकॉर्ड बना रहे हैं। 15 मई को थाईलैंड की राजधानी बैंकाक में खेले गए बैडमिंटन के सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के फाइनल मुकाबले में भारत ने ऐतिहासिक जीत दर्जकर विश्व पटल पर भारत का गौरव बढ़ाया है।

भारतीय खिलाड़ियों ने ऐसी टीम को पटखनी देकर थॉमस कप भारत के नाम किया, जो विश्व की अपराजेय टीम मानी जाती रही है। हालांकि भारत को ग्रुप स्टेज में चीनी ताइपे ने हरा दिया था, जिसके बाद तमाम खेल विश्लेषक मान बैठे थे कि भारत क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाएगा लेकिन टीम इंडिया ने मलेशिया, डेनमार्क तथा इंडोनेशिया को मात देकर स्वर्णिम सफलता हासिल की।

फाइनल मुकाबले में 14 बार की चैम्पियन इंडोनेशियाई टीम को ही जीत का दावेदार माना जा रहा था लेकिन भारतीय खिलाड़ियों ने इंडोनेशिया को 3-0 से मात देते हुए सारे अनुमानों को गलत साबित कर दिया। भारत के लिए यह जीत इसलिए खास है क्योंकि भारत ने थॉमस कप के 73 वर्षों के इतिहास में कुल 13 बार इस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और कामयाबी 13वें प्रयास में हासिल हुई है। यह जीत वैसी ही है, जैसी 1983 में कपिलदेव की कप्तानी में विश्वकप क्रिकेट में भारत को मिली थी।

बैडमिंटन में प्रकाश पादुकोण, पी. गोपीचंद, पीवी सिंधु, साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा, किदांबी श्रीकांत जैसे कई खिलाड़ी ओलम्पिक, एशियाई खेलों, राष्ट्रमंडल खेलों, विश्व चैम्पियनशिप इत्यादि विभिन्न टूर्नामेंटों में शानदार प्रदर्शन करते हुए अनेक उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं लेकिन थॉमस कप में भारतीय प्रतिभाएं लगातार विफल होती रही।

थॉमस कप टूर्नामेंट में भारत की जीत ऐतिहासिक और यादगार इसलिए भी है क्योंकि 2014, 2016 और 2018 की स्पर्धाओं में जो भारतीय टीम नॉकआउट तक नहीं पहुंच सकी थी और 2020 में भारत क्वार्टर फाइनल में हारकर बाहर हो गई थी, उसके लिए इस बार भी मलेशिया तथा डेनमार्क जैसी टीमों को शिकस्त देकर फाइनल तक पहुंचना और फाइनल में इंडोनेशिया जैसी बेहद सशक्त टीम को हराना आसान नहीं था। फाइनल में भारत से हारने वाली इंडोनेशिया टीम पूरे टूर्नामेंट में इससे पहले एक भी मैच नहीं हारी थी।

भारत ने 1952 तथा 1955 की स्पर्धाओं में अंतिम राउंड तक का सफर तय किया था और उसके बाद बेहतरीन प्रदर्शन 1979 में रहा था, जब प्रकाश पादुकोण की अगुवाई में टीम सेमीफाइनल तक पहुंचने में सफल रही थी। उसके बाद से भारतीय टीम कभी भी सेमीफाइनल से आगे नहीं बढ़ सकी और सेमीफाइनल से फाइनल तक का सफर तय करने में भारत को 43 साल लग गए।

इस बार भारतीय खिलाड़ियों के जज्बे ने 2016 के चैम्पियन डेनमार्क को हराकर टीम को फाइनल में जगह दिलाई और अंततः भारत 14 बार के चैम्पियन इंडोनेशिया को हराकर नया इतिहास रचते हुए विश्व विजेता बन गया।

थॉमस कप टूर्नामेंट वर्ष 1949 से नियमित खेला जा रहा है, जिसके आयोजन का विचार सबसे पहले बेहतरीन खिलाड़ी माने जाने वाले सर जॉर्ज एलन थॉमस के दिमाग में आया था। वह चाहते थे कि फुटबॉल विश्वकप तथा टेनिस के डेविड विश्वकप की ही भांति बैडमिंटन का भी टूर्नामेंट होना चाहिए। शुरुआत में यह टूर्नामेंट हर तीन साल के अंतराल पर आयोजित किया जाता था लेकिन 1982 के बाद इसका आयोजन दो वर्षों में एक बार किया जाने लगा।

1949 से अभी तक यह टूर्नामेंट अब तक कुल 32 बार आयोजित किया जा चुका है। दुनिया के इस प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में बैडमिंटन वर्ल्ड फेडरेशन के कुल 16 सदस्य देश हिस्सा लेते हैं। इस टूर्नामेंट में इंडोनेशिया, चीन, डेनमार्क, मलेशिया तथा जापान जैसी टीमों का ही दबदबा रहा था और भारत अब इस दबदबे को खत्म करते हुए टूर्नामेंट जीतने वाला छठा देश बन गया है।

इंडोनेशिया ने कुल 21 बार इस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया है और 14 बार खिताब जीत चुका है जबकि 1982 से इसमें हिस्सा ले रहे चीन ने 10, मलेशिया ने 5 और डेनमार्क, जापान तथा भारत ने एक-एक बार थॉमस कप जीता है। वैसे तो थॉमस कप खिताब पर एशियाई देशों का ही कब्जा रहा है लेकिन 2016 में इंडोनेशिया को हराकर डेनमार्क यह खिताब जीतने वाला पहला गैर एशियाई देश बना था।

हालांकि थॉमस कप टूर्नामेंट में इंडोनेशिया, मलेशिया, डेनमार्क जैसी टीमों में शीर्ष रैंकिंग के खिलाड़ी थे लेकिन दबाव में आए बिना भारतीय खिलाड़ियों सात्विक-चिराग, लक्ष्य सेन, किदांबी श्रीकांत, एचएस प्रणय ने जीत का ऐसा इतिहास रच दिया, जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। फाइनल में लक्ष्य सेन ने पहले और सात्विक-चिराग की जोड़ी ने दूसरे मैच में भारत को जीत दिलाई।

उसके बाद किदांबी श्रीकांत ने तीसरा मैच जीतकर भारतीय टीम को पहली बार थॉमस कप का चैंपियन बनाया। लक्ष्य सेन ने पहले मैच में डिफेंडिंग चैंपियन इंडोनेशिया के एंतोनी सिनिसुका को 8-21, 21-17, 21-16 से मात दी। दूसरे मैच में सात्विक साईराज रैंकी रेड्डी और चिराग शेट्टी की जोड़ी ने 18-21, 23-21, 21-19 से जीत हासिल की और तीसरे मैच में किदांबी श्रीकांत ने क्रिस्टी को 21-15, 23-21 से हराकर इतिहास रच दिया। भारत की इस गौरवमयी उपलब्धि से पूरे देश का उत्साहित होना स्वाभाविक है।

थॉमस कप टूर्नामेंट में भारत की जीत ने यह प्रमाणित कर दिया है कि भारत अब बैडमिंटन में भी एक बड़ी शक्ति के रूप में उभर रहा है। वैसे तो भारतीय खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत तौर पर बैडमिंटन में अनेक उपलब्धियां हासिल की हैं किन्तु टीम के रूप में थॉमस कप जैसे बेहद प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में जीत हासिल करना भारतीय बैडमिंटन के स्वर्णिम दौर की शुरुआत का संकेत है लेकिन जरूरत इस बात की भी है कि कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई-लिखाई के कारण खेल मैदानों से दूर हुई युवा पीढ़ी में खेलों के प्रति आकर्षण और जज्बा पैदा किया जाए।

देशभर में नए-नए स्कूल-कॉलेज तो धड़ाधड़ खुल रहे हैं लेकिन दूसरी ओर पर्याप्त जगह की कमी के कारण खेल के मैदान सिमट रहे हैं।

भारत का डंका न केवल बैडमिंटन में बल्कि अन्य सभी खेलों में भी पूरी दुनिया में बजता रहे, इसके लिए जरूरी है कि युवा प्रतिभाओं को खेल उपकरणों से लेकर कोचिंग तक की तमाम सुविधाएं मिलना सुनिश्चित किया जाए। बहरहाल, बैडमिंटन कौशल का खेल है और आज भारतीय खिलाड़ियों के पास भी कौशल की कमी नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए कि थॉमस कप टूर्नामेंट में भारत की स्वर्णिम जीत बैडमिंटन के लिए नए युग का सृजन करते हुए निर्विवाद रूप से भारत को बैडमिंटन में और आगे ले जाएगी तथा उभरते खिलाड़ियों को प्रेरित करते हुए उनके लिए मील का पत्थर साबित होगी।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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