नई दिल्ली। सीरिया और तुर्की के भीषण भूकंपों के बाद जैनब एक ढह चुके मकान के मलबे में 100 घंटे से भी ज्यादा गुजार चुकी थीं। उन्हें बचावकर्मियों ने खोज निकाला। सहायता संगठन आईएसएआर (इंटरनेशनल सर्च एंड रेस्क्यू) जर्मनी ने 10 फरवरी को एक प्रेस रिलीज में बताया, “सूरतेहाल को देखते हुए महिला अच्छी स्थिति में है।” लेकिन बचाए जाने के कुछ ही देर बाद जैनब की मौत हो गई।
उन्हें मलबे से निकालने के अभियान में शामिल और सहायता संगठन से जुड़े इमरजेंसी डॉक्टर बास्टियान हैर्ब्स्ट ने बताया, “वो अस्पताल ले जाते हुए हंस रही थीं।” वे कहते हैं कि महिला की मौत की 120000 वजहें हो सकती हैं। शायद उन्हें अंदरूनी चोटें आई थीं जिनका पता फौरन नहीं चल पाया या कथित रूप से उनकी “रेस्क्यू” मौत हुई।
एक ठंडी मौत
हैर्ब्स्ट कहते हैं “रेस्क्यू यानी बचाव मृत्यु के कई कारण होते हैं।” उनमें से एक है हाइपोथर्मिया। भूकंपग्रस्त इलाकों के बर्फीले तापमान की वजह से मलबे में फंसे लगों की रक्त नलिकाएं सिकुड़ जाती हैं। सिकुड़ी हुई नसें सुनिश्चित करती हैं कि त्वचा या हाथ-पैर के जरिए बेशकीमती शारीरिक ऊष्मा बाहर बिल्कुल न निकल पाए। लिहाजा शरीर के इन हिस्सों में खून का तापमान गिर जाता है, जबकि शरीर के केंद्रीय भाग में बहते गरम खून से महत्वपूर्ण अंगों में हरकत बनी रहती है।
जैनब की हालत में सुधार इसीलिए पेचीदा था। हैर्ब्स्ट कहते हैं, “हमें उनके शरीर के कसाव को ढीला करने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा हिलाना डुलाना पड़ा।” इस हरकत के जरिए, डॉक्टर के मुताबिक, जैनब की रक्त नलिकाएं खुल गई होंगी और वहां जम चुका ठंडा खून उसके शरीर के केंद्रीय भाग की ओर बहने लगा होगा। वही बेकाबू और असामान्य हृदय गति का कारण बना होगा, जिससे उनकी मौत हो गई।
गुर्दे का नुकसान और वेंट्रिकुलर फिब्रिलेशन
या हो सकता है कि दिल की असामान्य धड़कन के साथ उनके गुर्दे फेल हो गए हों। वो अपने पांव हिलाने में सक्षम तो थीं, लेकिन हैर्ब्स्ट के मुताबिक, “उनके पांव पत्थरों और मलबे में दबे हुए थे।” ये संभव है कि उनके पांव के टिश्यू नष्ट हो जाने से मायोग्लोबिन प्रोटीन बनना बंद हो गया हो। ये प्रोटीन ऊतक के जख्मी होने की स्थिति में मांसपेशियों की कोशिकाओं के भीतर ऑक्सीजन की सप्लाई करता है।
एकबारगी पीड़ितों को बचा लेने के बाद खून अचानक निर्बाध बहने लगता है तो शरीर में मायोग्लोबिन की बाढ़ सी आ जाती है जिससे गुर्दे फेल हो सकते हैं और पोटेशियम का लेवल भी बढ़ सकता है। शरीर में पोटेशियम की अत्यधिक मात्रा से वेंट्रीकुलर फिब्रिलेशन हो सकता है। यानी अनियमित, असामान्य गति, हृदय को शरीर के दूसरे हिस्सों में खून पहुंचाने से रोक सकती है। जिन लोगों को दिल की पुरानी समस्या है उनके लिए ये स्थिति खासतौर पर खतरनाक हो जाती है।
तनाव कम हो जाने से भी जाती है जान
डॉक्टर हैर्ब्स्ट कहते हैं, “जहाज दुर्घटनाओं के पीड़ितों में ये देखा जाता है, वे जैसे ही बचावकर्मियों को आता देखते हैं तो खुद को डूबने से रोकने की कोशिश करने लगते हैं।” इस तरह स्ट्रेस हॉर्मोन शरीर की हरकतों को बनाए रख सकता है। बचाव हो जाने के बाद, जैसे ही ये हॉर्मोन नीचे चले जाते हैं, संचार प्रणाली ढह सकती है। जैनब के पति और बच्चे भूकंप में मारे गए थे। बास्टियान हैर्ब्स्ट कहते हैं, “शायद उन्हें इसका पता चल गया था, जिससे उनकी जीने की रही-सही इच्छा भी चली गई. हमें नहीं पता।”