भ्रष्टाचार पर लगामः अब रिश्वत लेने-देने वालों की खैर नहीं, राष्ट्रपति की मंजूरी

नई दिल्ली। भ्रष्टाचार देश की महामारी के रूप में हर जगह नजर आता है। केन्द और राज्यों में कई सरकारें आयीं और चली गयीं लेकिन करप्शन पर लगाम लगा पाने में सभी सरकारें पूरी तरह से असफल ही हुई है। लेकिन मोदी सरकार ने आने के बाद करप्शन पर कड़ा रूख दिखाया है। अब रिश्वत लेने और देने वालों की खैर नहीं होगी उन्हे जेल और अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से नये भ्रष्टाचार निरोधक कानून को मंजूरी मिल जाने के बाद अब रिश्वत देने वालों को अधिकतम सात साल की कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा, इस कानून में जनसेवकों-नेताओं, नौकरशाहों और बैंकरों को अभियोजन से संरक्षण भी प्रदान किया गया है। अब, सीबीआई जैसी जांच एजेंसियों के लिए उनके विरुद्ध जांच करने से पहले सक्षम प्राधिकार से मंजूरी हासिल करना अनिवार्य होगा। एक सरकारी आदेश के अनुसार राष्ट्रपति ने हाल ही में भ्रष्टाचार रोकथाम (संशोधन) अधिनियम, 1988 को मंजूरी दी।

 

 

केंद्र सरकार ने 26 जुलाई, 2018 की तारीख तय की है जब इस अधिनियम के प्रावधान प्रभाव में आ जायेंगे। आदेश में कहा गया है, इस कानून के तहत कोई भी पुलिस अधिकारी किसी भी जनसेवक द्वारा किये गये किसी ऐसे अपराध की पूर्वानुमति बगैर के जांच नहीं कर सकता है जिसका संबंध ऐसे जनसेवक द्वारा अपनी सरकारी जिम्मेदारियों के निर्वहन के संबंध में की गयी सिफारिश या लिये गये निर्णय से हो। वैसे यह कानून यह भी कहता है कि जब किसी व्यक्ति को अपने या अन्य किसी के अनुचित लाभ के लिए (रिश्वत) लेने या लेने का प्रयास करने के आरोप में मौके पर ही गिरफ्तार किया जाता है तो ऐसे मामलों में मंजूरी लेना जरुरी नहीं होगा। कानून के अनुसार यह संरक्षण सेवानिवृत जनसेवकों को भी मिलेगा।

 

 

केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने हाल ही में कहा था कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम में संशोधन से सुनिश्चित होगा कि जनसेवकों के नेक कार्यों की जांच नहीं होगी। उन्होंने कहा कि पहले इस कानून में अस्पष्ट व्याख्या के चलते जांच एजेंसियां पेशेवरपन छोड़ देती थीं और जांचकर्ता बस संदेह के आधार पर आरोपपत्र दायर कर देते थे। फलस्वरुप कई ईमानदार व्यक्तियों को परेशान किया गया लेकिन उनका दोष साबित नहीं हुआ। निर्णय लेने वाले नौकरशाहों की छवि खराब हुई और उनके अंदर डर बैठ गया। ऐसे में नौकरशाह जोखिम लेने के बजाय फैसला टाल देते थे और उसे अपने उत्तरवर्ती पर छोड़ देते थे। संशोधित कानून के अनुसार जनसेवक को अनुचित लाभ देने या देने का वादा करने वाले व्यक्ति को सात साल तक कैद या जुर्माना हो सकता है या फिर दोनों हो सकते हैं। जिन व्यक्तियों को जबरन रिश्वत देनी पड़ती है उसे सात दिन के अंदर कानून प्रवर्तन प्राधिकार या जांच एजेंसी को मामले की रिपोर्ट करनी होगी। रिश्वत लेने वाले के लिए संशोधित कानून में न्यूनतम तीन साल और अधिकतम सात साल की कैद और जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून ने वाणिज्यिक संगठन को अपने दायरे में शामिल किया है।

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