मंदी की आहट से क्यों सहमा है IT सेक्टर? कर्मचारियों पर दिख रहा सबसे ज्यादा असर

नई दिल्ली। अमेरिका समेत दुनियाभर में मंदी को लेकर बहस छिड़ी हुई है। मंदी पर बहस से इतर ऐसे अर्थशास्त्रियों की सूची लंबी है जो मान रहे हैं कि दुनिया मंदी की चपेट में आ चुकी है। बीते कुछ समय भारत समेत वैश्विक स्तर पर टेक कंपनियों में छंटनी और हायरिंग फ्रीज होने की वजह से यह डर गहरा होता जा रहा है।

मंदी का मतलब: आमतौर पर मंदी को परिभाषित देश की जीडीपी से किया जाता है। किसी देश की जीडीपी लगातार दो या तीन तिमाही तक दबाव में रहती है या सिकुड़न होता है तो उसे ‘तकनीकी मंदी’ कहा जाता है। अर्थव्यवस्था में सिकुड़न की वजह से ना सिर्फ निवेश का माहौल गड़बड़ होता है बल्कि उपभोक्ताओं के खर्च करने का मिजाज भी संकुचित हो जाता है। इस वजह से उपभोक्ता की डिमांड कमजोर होती है। डिमांड कमजोर होने की वजह से कंपनियां प्रोडक्शन पर कंट्रोल कर देती हैं।

प्रोडक्शन कम या नहीं होने का मतलब है कि कंपनियों को ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत नहीं है। कई कंपनियां बंद होने की कगार पर पहुंच सकती हैं। ऐसी स्थिति में कंपनियां छंटनी या हायरिंग फ्रीज करने पर जोर देती हैं।

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