मप्र की सियासत में गद्दार, खुद्दार और बंटाधार जैसे शब्दों की एंट्री

भोपाल। मध्य प्रदेश में सियासी पारा धीरे-धीरे चढ़ रहा है और सियासी तरकश से शब्दों के बाण चलाए जाने का दौर भी तेजी पर है। अब तो गद्दार, खुद्दार और बंटाधार जैसे शब्द बाण के जरिए निशाने साधे जा रहे हैं।

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राज्य में डेढ़ दशक बाद सत्ता की कुर्सी कांग्रेस के हाथ में आई थी, मगर वह 15 माह में ही हाथ से फिसल गई। सत्ता जाने का मलाल अब भी कांग्रेस को रह रह कर सता रहा है। यही कारण है कि सत्ता छिनने के सबसे बड़े किरदार केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हमेशा कांग्रेस के निशाने पर रहते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लगातार सिंधिया को गद्दार बताने में पीछे नहीं रहते और उन्होंने बीते दिनों तो बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में यहां तक कह दिया, हे प्रभु, हे महाकाल, दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में पैदा न हो।

दिग्विजय सिंह के इस बयान के बाद सिंधिया भी आक्रामक हो गए और उन्होंने दिग्विजय सिंह को आड़े हाथों लिया और उनके बयान के जवाब में कहा कि, हे प्रभु महाकाल, कृपया दिग्विजय सिंह जैसे देश-विरोधी और मध्य प्रदेश के बंटाधार, भारत में पैदा न हो।

सियासी तरकश से शब्दों के बाण निकलने का दौर जारी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने खुले तौर पर सिंधिया का बचाव किया और कहा, दिग्विजय सिंह, सिंधिया और जो कांग्रेस छोड़कर साथी भाजपा में आये हैं, उन्हें गद्दार बता रहे हैं लेकिन वह याद रखें कि वह गद्दार नहीं, खुद्दार हैं। आखिर वो कांग्रेस में कितना अपमान सहते।

ज्ञात हो कि वर्ष 2018 में हुए विधानसभा के चुनाव में 230 सीटों में से कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटों पर जीत मिली थी। बढ़त और निर्दलीय व सपा, बसपा के समर्थन के चलते कांग्रेस ने सरकार बनाई थी। कांग्रेस की 15 माह सरकार चली और सिंधिया के बागी तेवरों के चलते कांग्रेस की सरकार गिर गई।

उसके बाद से ही सिंधिया कांग्रेस के निशाने पर हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सिंधिया परिवार की अदावत किसी से छुपी नहीं है, अब तो एक दूसरे के खिलाफ खुलकर ही बयान दे रहे हैं।

राजनीति के जानकारों का कहना है कि चुनाव में अभी छह माह से ज्यादा का वक्त है, यह तो अभी हमलों की शुरूआत है। आने वाले दिनों में व्यक्तिगत हमलों की भी बारी आ जाए तो अचरज नहीं होगा, इसके पीछे दोनों प्रमुख नेता सिंह और सिंधिया के सामने अपने सियासी अस्तित्व को बचाए रखने की चुनौती जो है।

यह दोनों नेता ही एक ही क्षेत्र से आते हैं, दोनों की खास नजर ग्वालियर-चंबल इलाके पर है और दोनों ही यह जानते है कि यहां की हार जीत ही इन नेताओं के भावी भविष्य को तय करने वाली होगी।
–आईएएनएस

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