कोलकाता। टाटा संस के मानद चैयरमेन रतन टाटा को ताउम्र बंगाल के सिंगुर की कसक रही। तत्कालीन विपक्ष की नेता ममता बनर्जी के विरोध के कारण टाटा को काफी दुखी मन से यहां से अपनी इस महत्वाकांक्षी नैनो कार परियोजना को समेटना पड़ा था। कई मौकों पर रतन टाटा को इसके बारे में चर्चा करते सुना गया है।
बंगाल के हुगली में लगना था नैनो कार प्लांट
रतन टाटा ने 18 मई 2006 को बंगाल के हुगली जिले के सिंगुर में नैनो कार परियोजना लगाने का एलान किया था। तब बुद्धदेव भट्टाचार्य राज्य के मुख्यमंत्री थे। तत्कालीन वाममोर्चा सरकार ने उस समय इस परियोजना से राज्य में औद्योगीकरण की तस्वीर बदलने का दावा किया था।
इस परियोजना के लिए करीब एक हजार एकड़ जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई, लेकिन विपक्ष की नेता के रूप में ममता बनर्जी ने तीन दिसंबर 2006 से कोलकाता में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आमरण अनशन शुरू किया।
ममता बनर्जी ने किया था विरोध प्रदर्शन
24 अगस्त 2008 को ममता बनर्जी ने सिंगुर में परियोजना के लिए अधिगृहित 1,000 एकड़ में 400 एकड़ जमीन वापसी की मांग करते हुए दुर्गापुर एक्सप्रेस हाईवे पर विरोध-प्रदर्शन शुरू कर दिया। आखिर तीन अक्टूबर 2008 को राज्य के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा से ठीक दो दिन पहले रतन टाटा ने कोलकाता में अपनी प्रेस कांफ्रेंस में लखटकिया कार परियोजना को सिंगुर से बाहर ले जाने का ऐलान किया।
उन्होंने इसके लिए ममता बनर्जी के नेतृत्व में जारी तृणमूल कांग्रेस के आंदोलन को जिम्मेदार ठहराया था। इसके बाद नैनो फैक्ट्री को गुजरात के साणंद में स्थानांतरित कर दिया गया। लंबे समय तक चली अदालती कार्यवाही के बाद 31 अगस्त, 2016 को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वह जमीन किसानों को लौटा दी गई। वहां थोड़ी जमीन पर कुछ समय बाद खेती शुरू हुई। हाल में मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने सिंगुर में नैनो कार परियोजना ठप होने के कारण हुए नुकसान के लिए टाटा मोटर्स को मुआवजे के तौर पर करीब 766 करोड़ रुपये देने का निर्देश दिया है।