महेन्द्र पांडे
आपदा में अवसर पर लंबे प्रवचन देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली चुनावों से ठीक पहले “आपदा” की परिभाषा को व्यापक कर दिया है। आश्चर्य यह है कि पिछले 2 वर्षों से मणिपुर में उन्मादी अशान्ति के बाद भी प्रधानमंत्री मोदी को वहाँ आपदा नजर नहीं आई, और ना ही बीजेपी नेताओं द्वारा महिलाओं पर लगातार किए जा रहे अश्लील प्रहारों में कहीं आपदा नजर आ रही है। प्रधानमंत्री मोदी एक तरफ आपदा के नए मायने खोज रहे हैं, तो दूसरी तरफ देश में प्राकृतिक आपदा का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है, और साथ ही इसमें मरने वालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। हरेक समस्या की तरह ही मोदी सरकार जमीनी स्तर पर नहीं बल्कि महज आँकड़े की बाजीगरी द्वारा इस समस्या का समाधान कर रही है।
लोक सभा में गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दिसम्बर 2024 में बताया था कि वर्ष 2024-2025 में यानि 1 अप्रैल 2024 से 27 नवंबर 2024 के बीच देश में 2803 व्यक्तियों की मृत्यु प्राकृतिक आपदाओं में दर्ज की गई, और 10.2 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की फसल चौपट हो गई। प्राकृतिक आपदाओं के कारण 58835 मवेशी भी मारे गए और 347770 घर प्रभावित हुए। प्राकृतिक आपदाओं से सर्वाधिक प्रभावित राज्य कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, असम और हिमाचल प्रदेश रहे।
मध्य प्रदेश में प्राकृतिक आपदाओं के कारण 373 नागरिकों की असामयिक मृत्यु दर्ज की गई और उत्तर प्रदेश में 3.95 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुई। मध्य प्रदेश के अतिरिक्त 8 ऐसे राज्य हैं, जहां आपदा ने 100 या अधिक लोगों को मार डाला। हिमाचल प्रदेश में 358, केरल में 322, गुजरात में 230, महाराष्ट्र में 203, कर्नाटक में 182, राजस्थान में 131, असम में 128 और छत्तीसगढ़ में 125 नागरिकों की मृत्यु प्राकृतिक आपदा के कारण हुई। आपदा से बचाव के लिए केंद सरकार के एनडीआरएफ ने 4043.37 करोड़ रुपये और तमाम राज्यों के एसडीआरएफ ने सम्मिलित तौर पर 10728 करोड़ रुपये खर्च किए।
प्राकृतिक आपदा से असामयिक मृत्यु के आंकड़ों में भयानक गर्मी से मरने वालों की संख्या शामिल नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी क्लाइमिट रिज़िलियेन्स की बातें तो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर खूब करते हैं, पर अत्यधिक गर्मी को देश प्राकृतिक आपदा मानता ही नहीं है। पिछले 2-3 वर्षों से देश में गर्मी के सारे रिकार्ड ध्वस्त होते जा रहे हैं, अत्यधिक गर्मी से स्कूलों को भी बंद कर दिया जाता है, पर सरकारी फ़ाइलों में यह आपदा नहीं है। भयानक गर्मी से मरने वालों की संख्या भी साल-दर-साल बढ़ जाती है।
तमाम विशेषज्ञ गर्मी से मरने वालों की सरकारी संख्या पर भी प्रश्न उठाते रहे हैं। वर्ष 2024 में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार अत्यधिक गर्मी से पूरे देश में 360 मौतें दर्ज की गईं। दूसरी तरफ हीटवाच नामक अंतर राष्ट्रीय संस्था के अनुसार मरने वालों वास्तविक संख्या दुगुनी से भी अधिक, 733, है। उत्तर प्रदेश में तो लोकसभा चुनावों के दौरान ही चुनाव से जुड़े 33 अधिकारियों की मृत्यु दो दिनों के भीतर ही दर्ज की गई थी। हेल्थवाच के अनुसार सबसे अधिक 205 मृत्यु उत्तर प्रदेश में, दिल्ली में 193 और ओडिसा में 110 लोगों की असामयिक मृत्यु हुई थी।
विशेषज्ञों के अनुसार जीतने लोगों को लू लगती है, उनमें से 20 से 30 प्रतिशत की असामयिक मृत्यु हो जाती है, पर सरकारी आंकड़ों में यह अनुपात महज 0.3 प्रतिशत का रहता है। जिस समय सरकारी आंकड़ों में गर्मी से मरने वालों का आंकड़ा 110 था, उस दौर में लू से प्रभावित लोगों की संख्या 40000 से भी अधिक थी।
एक ही दौर के अलग-अलग सरकारी विभागों के आँकड़े भी बिल्कुल अलग होते हैं। मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइन्सेज के अनुसार वर्ष 2009 से 2022 के बीच देश में गर्मी से मरने वालों की संख्या 6751 थी, जबकि नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने यह संख्या 11090 बताई थी। हरेक वर्ष प्रकाशित नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्युरो भी गर्मी से मरने वालों का वार्षिक आंकड़ा प्रकाशित करता है, इसके अनुसार वर्ष 2009 से 2022 के बीच देश में गर्मी से 15020 व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु दर्ज की गई।
गृह मंत्रालय की 2023-2024 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023-24 और वर्ष 2022-23 में आपदा में मरने वालों का आंकड़ा क्रमशः 2616 और 2104 है, यानि एक वर्ष के भीतर ही इस संख्या में 24 प्रतिशत की बृद्धि हो गई। इसी तरह इन दोनों वर्षों में मवेशियों के मरने का आंकड़ा क्रमशः 101253 और 14166 है, यानि गर्मी से मवेशियों की मृत्यु की संख्या में 614 प्रतिशत की बृद्धि दर्ज की गई। वर्ष 2023-2024 में आपदा से 116159 घर और 8.07 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि प्रभावित हुई।
देश में हरेक वर्ष आपदा से होने वाले नुकसान का पैमाना बढ़ता जा रहा है और मोदी सरकार इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है। आपदा के प्रबंधन के नाम पर बस मुवावजा का प्रावधान है, आपदा के प्रभावों को काम करने की कोई योजना नहीं है। जलवायु परिवर्तन पर तो प्रधानमंत्री मोदी खूब बोलते हैं, स्वयं को विश्वगुरु बताते हैं पर अत्यधिक गर्मी को प्राकृतिक आपदा स्वीकार नहीं करते। अत्यधिक गर्मी के साथ ही देश में आकाशीय बिजली गिरने से मरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है और प्रधानमंत्री आपदा में अवसर तलाश रहे हैं।