मोदी सरकार दिखा रही अर्थव्यवस्था के रंगीन सपने, पर हकीकत…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन, केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल और हरदीप पुरी के साथ ही मेनस्ट्रीम मीडिया वर्ष 2014 से ही पहले की अर्थव्यवस्था के काल्पनिक भयानक हादसे और भविष्य की अर्थव्यवस्था के रंगीन सपने दिखाता रहा है। बीच-बीच में आईएमएफ और विश्व बैंक के साथ ही तमाम अंतराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भी मोदी सरकार के अर्थव्यवस्था की तारीफ करने लगती हैं। इन सभी सपनों के बीच देश में अरबपतियों और करोड़पतियों की संख्या बढ़ती जा रही है तो दूसरी तरफ गरीबों की संख्या और गरीबी भी बढ़ रही है।

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मार्च 2023 में सरकारी स्तर पर बड़े जोर शोर से प्रचारित किया गया था कि वर्ष 2014-2015 से लेकर 2022-2023 के बीच देश में प्रति व्यक्ति आय लगभग दोगुनी बढ़ गई। इसके अगले ही वर्ष, यानि 2024 में, देश की बड़बोली वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने ऐलान कर दिया कि अगले 5 वर्षों के दौरान ही देश में प्रति व्यक्ति आय फिर से दोगुना बढ़ जाएगी और सामान्य आबादी के जीवन स्तर में अप्रत्याशित उछाल आएगा। यह सारे वक्तव्य सुनने में बड़े अच्छे लगते हैं और मीडिया इन्हें खूब प्रचारित करता है- पर वास्तविकता से कोसों दूर हैं। यदि इन वक्तव्यों को सही मान भी लिया जाए तो वास्तविकता यह है कि प्रति व्यक्ति आय के दुगुना होने के बाद से 80 करोड़ से अधिक आबादी को जिंदा रखने के लिए सरकार को 5 किलो मुफ़्त अनाज देना पड़ रहा है जबकि जब आय आधी थी तब इसकी जरूरत नहीं थी। दूसरी तरफ, अगले 5 वर्षों के दौरान जब प्रति व्यक्ति आय दुगुनी हो जाएगी, तब भी 80 करोड़ से अधिक आबादी को मुफ़्त अनाज देने की जरूरत पड़ेगी। सवाल यह उठता है कि, आय दुगुना होने का फायदा किसे मिल रहा है – काम से काम 80 करोड़ से अधिक आबादी को तो बिल्कुल नहीं मिल रहा है, यह तो सरकार स्वयं उजागर कर रही है।

विशेषज्ञों के अनुसार प्रति व्यक्ति आय के सरकारी दावे महज एक छलावा है, जुमला है। वर्ष 2014 से 2022 के बीच प्रतिव्यक्ति आय के दुगुना होने के दावों में डॉलर की तुलना में रुपये के अवमूल्यन और बेतहाशा बढ़ती महंगाई दर को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया गया था। विशेषज्ञों के अनुसार इस पूरी अवधि में प्रति व्यक्ति आय में वास्तविक वृद्धि महज 35 प्रतिशत ही रही थी, और यह वृद्धि भी देश की सबसे समृद्ध 10 प्रतिशत आबादी के हिस्से ही रही थी। हाल में ही नाइट फ्रैंकस ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट प्रकाशित की गई है, इसके अनुसार हमारे देश में डॉलर के संदर्भ में 191 अरबपति और 85698 करोड़पति हैं।

अरबपतियों की संख्या वर्ष 2023 की तुलना में 12 प्रतिशत अधिक है और 26 व्यक्ति पहली बार अरबपति की सूची मे शामिल हुए हैं। हमारे देश के अरबपतियों की सम्मिलित संपत्ति लगभग 950 अरब डॉलर है, यानि देश की कुल जीडीपी का 25 प्रतिशत हिस्सा महज 191 लोगों के पास है। करोड़पतियों की संख्या में वैश्विक स्तर पर वृद्धि 4.4 प्रतिशत है, पर 80 करोड़ से अधिक आबादी को मुफ़्त राशन पर जिंदा रखने वाले हमारे देश में यह वृद्धि 6 प्रतिशत है। वैश्विक स्तर पर जीतने करोड़पति है, उनमें से 3.7 प्रतिशत हमारे देश में हैं और अनुमान है कि वर्ष 2028 तक इनकी संख्या बढ़कर 93753 तक पहुँच जाएगी। ये सभी आँकड़े बताते हैं कि देश की सबसे समृद्ध आबादी ही लगातार अधिक अमीर हो रही है।

हमारे देश में गरीबों की संख्या कितनी है, यह किसी को नहीं मालूम। प्रधानमंत्री मोदी 81 करोड़ जनता को गरीब बता कर मुफ़्त अनाज बाँट रहे हैं, दूसरी तरफ यह भी दावा करते रहे हैं कि इनमें से 25 करोड़ जनता अब गरीब नहीं है और मध्यम वर्ग में पहुँच चुकी है। आश्चर्य यह है कि 81 करोड़ जनता को अब भी मुफ़्त अनाज दिया जा रहा है – यानि मोदी राज के विकसित भारत में मध्यम वर्ग और गरीबों के बीच का अंतर भी समाप्त हो गया है।

फरवरी 2024 में नीति आयोग के बड़बोले सीईओ ने मीडिया को बताया था कि देश में 5 प्रतिशत से भी कम आबादी गरीब है – यानि गरीबों की संख्या 7 करोड़ से भी कम है। इन तमाम दावों के बीच हाल में ही ब्लूम वेंचर्स नामक संस्था ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश में लगभग 100 करोड़ आबादी के पास उपभोक्ता उत्पाद खरीदने के लिए आर्थिक संसाधन नहीं है – जाहिर है इस रिपोर्ट के अनुसार देश की 100 करोड़ आबादी गरीब है। पिछले संसद सत्र में श्रीमती सोनिया गांधी ने कहा था कि देश में जनगणना नहीं होने के कारण देश के 16 करोड़ लोगों को गरीब होने के बाद भी सरकारी मुफ़्त राशन नहीं मिल पा रहा है। फिलहाल 81 करोड़ लोगों को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है – यदि इस संख्या में 16 करोड़ और जोड़ दें जैसा सोनिया गांधी का दावा है – तब गरीबों की संख्या 97 करोड़ पहुंचती है और यह संख्या ब्लूम वेंचर्स द्वारा बताई गई 100 करोड़ की संख्या के करीब है।

वर्ष 2021 से 81 करोड़ से भी अधिक आबादी को हरेक महीने मुफ्त अनाज दिया जा रहा है और वर्ष 2028 तक यह सिलसिला चलता रहेगा। इन आंकड़ों से तो यही स्पष्ट होता है कि गरीबों की संख्या कम करने के दावों से सत्ता स्वयं आश्वस्त नहीं है। प्रधानमंत्री ने जनवरी 2024 में लोकसभा में वक्तव्य दिया था कि 25 करोड़ लोग पिछले 9 वर्षों में गरीबी रेखा से बाहर आकर मध्यम वर्ग में पहुँच गए हैं, पर उन्हें पहले जैसा ही सरकार द्वारा मुफ्त अनाज मिलता रहेगा। इससे इतना तो स्पष्ट है कि मध्यम वर्ग भी गरीब है और उसे भी हरेक महीने 5 किलो मुफ्त अनाज देकर जिन्दा रखने की जरूरत है।

मोदी जी द्वारा 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर करने का आधार जनवरी 2024 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005-06 में देश की 55.34 प्रतिशत आबादी गरीब थी, पर वर्ष 2013-14 तक यह संख्या 29.17 प्रतिशत ही रह गयी। इस पूरे दौर में डॉ मनमोहन सिंह की सरकार रही और इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2005 से 2014 के बीच 26.17 प्रतिशत आबादी गरीबी से बाहर आ गयी। इसके बाद 2022-23 में गरीबों की आबादी 11.28 प्रतिशत ही रह गयी। जाहिर है वर्ष 2014 से 2023 के बीच महज 17.89 प्रतिशत आबादी, यानि 24.82 करोड़ आबादी, ही गरीबी रेखा को लांघ पाई। यह पूरा दौर नरेंद्र मोदी का रहा, जिसमें आजाद भारत के किसी भी दौर से अधिक तेजी से गरीबी कम करने के लगातार दावे किये जाते रहे। पर, नीति आयोग की ही रिपोर्ट इस दावे को झूठा करार देती है।

आईएमएफ ने तमाम देशों की सूची प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर तैयार की है। इस सूची में मोदी जी का विकसित और बड़ी अर्थव्यवस्था के संदर्भ में पांचवें स्थान पर काबिज भारत 124 वें स्थान पर है। सूची में पहले स्थान पर लक्ज़मबर्ग है, इसके बाद के देश क्रम से हैं – सिंगापूर, मकाउ, आयरलैंड, कतार, नॉर्वे, स्विट्ज़रलैंड, ब्रुनेई, गुयाना और अमेरिका। हाल में ही 16 वें वित्त आयोग के अध्यक्ष अरविन्द पनगरिया ने कहा है कि यदि भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाना है तो अगले 24 वर्षों में प्रतिव्यक्ति आय को 14000 डॉलर तक पहुंचाना होगा। इसके लिए प्रति व्यक्ति आय में प्रतिवर्ष 7.3 प्रतिशत और जीडीपी में 7.9 प्रतिशत के सतत वृद्धि की जरूरत है। देश की अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात में ऐसी वृद्धि असंभव नजर आती है।

मोदी सरकार में तथ्यों और वास्तविक आंकड़ों को जान पाना कठिन है क्योंकि कोई भी विभाग या मंत्रालय विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित ही नहीं करता। नीति आयोग जैसी संस्थाएं कुछ रिपोर्ट प्रकाशित भी करती हैं, तो सत्ता इसके आकड़ों को अपने तरीके से प्रस्तुत करती है। मोदी सरकार में जनता से जुडी आंकड़े प्रधानमंत्री और दूसरे बड़बोले मंत्री समय और परिस्थिति के अनुसार गढ़ते हैं, इसीलिए हरेक भाषण में एक ही विषय पर आंकड़े अलग-अलग रहते हैं। सरकार द्वारा प्रस्तुत आंकड़ों और तथ्यों को परखने की जिम्मेदारी मीडिया की होती है, पर हमारे देश का मेनस्ट्रीम मीडिया ही सत्ता भक्ति में लीन होकर झूठ और जुमलों के प्रचार की फैक्ट्री बन चुका है।  

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