लखनऊ। विधान परिषद चुनाव में 36 में से 33 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उच्च सदन में पहली बार बहुमत हासिल कर लिया है। वहीं, शून्य पर सिमट गई समाजवादी पार्टी (सपा) के लिए संकट यहीं खत्म नहीं होने वाला है। मुख्य विपक्षी दल की दिक्कत अगले 2-3 महीनों में और भी बढ़ने वाली है। मौजूदा समीकरणों के मुताबिक सपा से आने वाले दिनों में विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष का दर्जा छिन सकता है। ऐसे में सपा को कुछ वैसी ही स्थिति का सामना करना पडे़गा जैसा 2014 के बाद कांग्रेस पार्टी को लोकसभा में करना पड़ा।
33 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद विधान परिषद में भाजपा के पास अब 100 में से 68 सीटें हो गई हैं। वहीं, सपा के पास 17 सीटें हैं। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पास चार और कांग्रेस के एक एमएलसी हैं। अपना दल के पास एक सदस्य है तो 2 शिक्षक एमएलसी हैं। निर्दलीय समूह का एक, एक निर्दलीय और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) का एक सदस्य है।
जुलाई तक सपा के 12 सदस्यों का कार्यकाल खत्म हो रहा है। तब सपा के 5 सदस्य होंगे। जुलाई में होने वाले विधान परिषद चुनाव में एक सदस्य के लिए 11 विधायकों की जरूरत होगी। विधानसभा में मौजूदा स्थिति के मुताबिक, सपा चार सीटों को जीतने की स्थिति में होगी। ऐसे में सपा के सदस्यों की कुल संख्या घटकर 10 से नीचे आ सकती है। यदि ऐसा होता है तो सपा को नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना होगा। नियम के मुताबिक, इस पद के लिए विपक्षी दल के पास न्यूनतम 10 फीसदी यानी 10 सीटों की आवश्यकता है।
संजय लाठर हैं नेता प्रतिपक्ष
हाल ही में सपा ने डॉ. संजय लाठर को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष नामित किया है। जाट समुदाय से आने वाले लाठर का कार्यकाल 26 मई, 2022 तक है। विधान परिषद में 2017 से नेता प्रतिपक्ष रहे सपा के वरिष्ठ नेता अहमद हसन का निधन हो जाने की वजह से यह पद रिक्त था। विधानसभा में अखिलेश यादव नेता प्रतिपक्ष हैं।