लखनऊ। यूपी के सभी प्राइवेट स्कूल भी सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे में आएंगे और वे अधिनियम के तहत मांगी गयी सूचना देने को बाध्य होंगे। यह व्यवस्था राज्य सूचना आयुक्त प्रमोद कुमार तिवारी ने एक मामले की सुनवाई के दौरान दी है।
संजय शर्मा बनाम जन सूचना अधिकारी/मुख्य सचिव उ.प्र.शासन के इस मामले में दायर की गयी अपील की सुनवाई के दौरान राज्य सूचना आयुक्त ने नि:शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 और इस बारे में बनी नियमावली के प्रपत्र एक और दो का सहारा लिया।
इस अधिनियम व नियमावली में यह प्रावधान है कि हर प्राइवेट विद्यालय को अपने यहां गरीब और आसपास के 25 प्रतिशत बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देनी होगी जिनके शिक्षण शुल्क की भरपाई राज्य सरकार करेगी। इस लिहाज से ये सभी प्राइवेट विद्यालय सरकार द्वारा वित्त पोषित माने जाने चाहिए।
इसके अलावा इन प्राइवेट विद्यालयों को सरकार की ओर से सस्ती जमीन, विधायक या सांसद निधि से भवन निर्माण के लिए फंडिंग भी की जाती है इस लिहाज से भी यह सरकारी वित्त पोषण का लाभ लेते हैं इसलिए ये प्राइवेट विद्यालय अपने को सूचना के अधिकार अधिनियम के दायरे से बाहर नहीं कह सकते।
राज्य सूचना आयुक्त द्वारा दी गयी व्यवस्था में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि प्राइवेट विद्यालयों को विद्यालय की स्थापना के लिए रियायती दरों पर विकास प्राधिकरण द्वारा भूमि उपलब्ध करायी गयी है तो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा डीएवी कालेज ट्रस्ट एण्ड मैनेजमेंट सोसायटी एवं अन्य बनाम डायरेक्टर ऑफ पब्लिक इंन्सट्रक्शन एवं अदर्स में दी गयी व्यवस्था के अनुसार ऐसे विद्यालय राज्य द्वारा पर्याप्त रूप से वित्त पोषित समझे जायेंगे।
प्राइवेट विद्यालय सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 के तहत इस आधार पर सूचना नहीं देते थे कि वे राज्य द्वारा वित्त पोषित नहीं है एवं वे अधिनियम की परिधि से बाहर हैं। राज्य सूचना आयुक्त ने ‘हिन्दुस्तान’ से बातचीत में बताया कि इस व्यवस्था के साथ ही उन्होंने मुख्य सचिव को एक पत्र भी लिखा है जिसमें उनसे अनुरोध किया गया है कि वह प्रमुख सचिव बेसिक शिक्षा को यह निर्देश दें कि वह ऐसे सभी प्राइवेट विद्यालयों के प्रबंधन में एक जनसूचना अधिकारी तैनात कराएं अपीलार्थी संजय शर्मा ने जन सूचना अधिकारी/मुख्य सचिव उ.प्र.शासन से लखनऊ के दो प्रतिष्ठित प्राइवेट विद्यालयों में सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गयी जानकारी न दिये जाने पर राज्य सूचना आयोग में अपील दायर की थी।
आयोग ने इस वाद में यह भी प्रतिपादित किया कि वर्ष 2009 में निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम के पारित होने के बाद ऐसे समस्त विद्यालय जो इस अधिनियम के दायरे में आते हैं, उनसे अपेक्षा है कि वे अधिनियम एवं उप्र निःशुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार नियमावली-2011 के प्रपत्र-1 एवं 2 में वर्णित कुछ सूचनाएं जिला शिक्षाधिकारी को दें। ऐसी स्थिति में जिला शिक्षाधिकारी उक्त प्रपत्रों में वर्णित समस्त सूचनाओं को आरटीआई एक्ट की धारा-6(1) के तहत मांगे जाने पर याची को देने के लिए बाध्य हैं।