यूपी में बसपा भी खेल रही “हिन्दुत्व” का कार्ड, भाजपा की राह पर मायावती

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अपने समाजिक समीकरण दुरूस्त करने में लगे है। ऐसे में बहुजन समाज पार्टी(बसपा) भी भाजपा की तर्ज पर हिन्दुत्व की राह पर चलती दिखाई दे रही है। इसकी बानगी यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह की श्रद्धांजलि सभा में देखने को मिली है। जिसमें पार्टी के महासचिव सतीष चन्द्र मिश्रा वहां पहुंचे और भाषण में कल्याण सिंह को अपनी बात पर अटल रहने वाला नेता बताया।

यह कोई पहला वकया नहीं है ऐसे कई उदाहरण जिसमें बसपा का झुकाव अब हिन्दुत्व की ओर होता दिखाई दे रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सतीष चन्द्र मिश्रा यूं ही श्रद्धांजलि सभा में नहीं पहुंचे, इसके और भी कई मायने हैं। कल्याण सिंह पिछड़ों के साथ प्रखर हिन्दूवादी नेता माने जाते थे, क्योंकि यह सभा किसी पार्टी और बैनर तले नहीं आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम का आयोजन भाऊराव देवरस न्यास ने किया था, जो संघ देखता है। मिश्रा ने इस मौके पर शामिल होकर एक बड़ा संदेश दिया है।

इसके पहले भी वह प्रबुद्ध सम्मेलन की शुरूआत अयोध्या के रामलला दरबार में बकायदे हाजिरी लगाकर दी है। उनकी सभा में जय श्री राम और जय परशुराम के नारे भी लगाए गये। घंटा घड़ियाल शंखनाद भी हुआ। मंच पर वैदिक मंत्रोच्चार के साथ संत भी नजर आए। अयोध्या, मथुरा, काशी, चित्रकूट जैसी जगहों पर सम्मेलन कराकर इन हिन्दुत्व आस्था वाले केन्द्रों पर एक संदेश दिया गया।

प्रबुद्ध वर्ग सम्मेंलन में संबोधन सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं रहा बल्कि मंच से हिन्दुत्व का झंडा बुलंद करते हुए इन धार्मिक स्थलों की दुर्दषा का बढ़चढ़ कर बयान किया गया। बसपा सरकार आने पर अयोध्या समेत काशी व मथुरा तथा यूपी के सभी धार्मिक स्थलों के समग्र विकास का भरोसा भी दिया गया है।

बसपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बसपा ने यह जो लाइन पकड़ी है। इससे पार्टी के अल्पसंख्यक वोट छिटक सकते है, क्योंकि पार्टी अभी दलित और ब्राम्हणों की एकजुटता की लाइन पकड़ी है, लेकिन धार्मिक स्थलों पर जा कर वहां से सम्मेलनों की शुरूआत या फिर अन्य निर्णयों से इसमें किसी एक धर्म को खुश करने के प्रयास नजर आ रहे हैं।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं “2014 के बाद से भाजपा ने हिन्दुत्व के मुद्दे को धार दी है। डंके चोट इस मुद्दे को लेकर पार्टी कई सालों से लेकर चल रही है। इसी के बलबूते उसने केन्द्र और राज्य पर सरकार भी बनाई है। इससे एक बात साफ हो गयी है हिन्दू को छोड़कर किसी और की राजनीति करने में नुकसान दिख रहा है।

बहुसंख्यक आबादी उसे साथ लेकर चलने सत्ता पाने में आसानी होगी। किसी खास एक वर्ग को साधने पर ज्यादा फायदा नहीं दिखता है। बसपा ने 2007 में जो सत्ता पायी थी, उसमें अपर कास्ट की राजनीति की थी। सत्ता में आने के लिए अन्य वर्ग की बात तो करें लेकिन हिन्दू को इग्नोर करके राजनीति करना मुश्किल है। यह राह 2014 से भाजपा ने सबको दिखाई है।”

एक अन्य विश्लेषक अभिषेक बाजपेई ने बताया, “बसपा को समझ में आ गया है कि सिर्फ दलितों की राजनीति करके पार्टी का भला नहीं हो सकता है। यही वजह है कि पार्टी जानती है ब्राम्हण दलित समीकरण सत्ता में आने की एक कुंजी है, जिससे वह पूर्व में भी जीत का स्वाद चख सरकार बना चुकी है।”

बसपा के प्रदेश प्रवक्ता डा. एमएच खान कहा, “बसपा सर्वजान हिताय सर्वजान सुखाय की बात करता है। हिन्दू कोई समाज से अलग थोड़े है। न हिन्दू अलग न मुस्लिम अलग है। हिन्दू के नाम पर दलितों को मारा जाएगा पीटा जाएगा यह कितना सही है। प्रबुद्ध सम्मेंलन कोई हिन्दू सम्मेलन नहीं है। कल्याण सिह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रहे उनकी सभा में जाना एक अच्छी परंपरा है।”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here