ये जोड़ी बनाम वो जोड़ी: 2022 में भी फेल हुई दो लड़कों की जोड़ी

लखनऊ। 2017 विधानसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने राहुल के साथ जोड़ी बनाई थी, लेकिन वह फ्लॉप साबित हुई थी। 2022 चुनावों में एक बार फिर अखिलेश ने जयंत चौधरी से हाथ मिलाया, लेकिन भाजपा के आगे यह गठबंधन भी बिखर गया। 2017 में सपा ने कांग्रेस के साथ पश्चिमी UP में 31 सीटों पर गठबंधन किया था, जबकि रालोद के साथ पश्चिमी UP में सिर्फ 33 सीटों पर गठबंधन किया।

2017 में पश्चिमी UP में कांग्रेस सिर्फ 2 सीट ही जीत पाई थी। तब कांग्रेस का सक्सेस रेट 6% ही था, जबकि रालोद-सपा गठबंधन को सिर्फ 8 सीट ही मिलीं। हालांकि, 2017 में रालोद को 1 सीट ही मिली थी। जिसमें इस बार 7 सीटों का इजाफा हुआ है। जयंत का सक्सेस रेट 24% रहा है।

पश्चिमी UP किसी भी दल के लिए क्यों जरूरी है?

  • पश्चिमी UP के लिए कहा जाता है ‘जिसके जाट उसके ठाट’। दरअसल, पश्चिमी UP में जाट-मुस्लिम बाहुल्य है। इसी गठजोड़ की वजह से UP में क्षेत्रीय राजनीतिक दल राष्ट्रीय पार्टियों को आंख दिखाते रहे हैं। 1992 के बाद से भाजपा ने लगातार चुनावों में मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में भी हिन्दू कैंडिडेट ही उतारा। नतीजा यह रहा कि 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से यह गठजोड़ टूट गया।
  • यही नहीं पश्चिमी UP किसान बाहुल्य क्षेत्र है। UP में हर राजनैतिक दल किसानों की राजनीति जरूर करता है। इस लिहाज से भी पश्चिमी UP का महत्व हर राजनैतिक दल के लिए बना हुआ है।

कांग्रेस को पश्चिमी UP में 31 में से 29 सीटों पर मिली थी हार
2017 में अंतिम समय तक मुलायम कांग्रेस के साथ गठबंधन के खिलाफ थे, लेकिन अखिलेश ने राहुल के साथ हाथ मिलाया और UP में 105 सीटों पर गठबंधन कर लिया। पश्चिमी UP में 31 सीटों पर कांग्रेस ने अपने कैंडिडेट उतारे। जिसमेँ से सहारनपुर के नकुड़ और बेहट विधानसभा सीट पर ही कांग्रेस को सफलता मिली। बाकी, 29 सीटों पर कांग्रेस को हार ही मिली। जिसमे कांग्रेस के दिग्गज नेता प्रदीप माथुर और तत्कालीन कांग्रेस नेता जितिन प्रसाद भी तिलहर सीट से हार गए थे।

राहुल-अखिलेश गठबंधन क्यों फेल हुआ था?

  • पश्चिमी UP में सपा बसपा या कांग्रेस को तभी सफलता मिलती है, जब मुस्लिम और जाट का समीकरण बनता है। 2017 चुनावों में यह समीकरण बन नहीं पाया। जिसकी वजह से पश्चिमी UP में सपा और कांग्रेस का गठबंधन सफल नहीं हो सका।
  • इस गठबंधन को भले ही मोदी विरोधी रणनीति का नाम दिया गया हो, लेकिन दोनों का ही मकसद पश्चिमी UP में मुस्लिम वोटों के बंटवारे को रोकना था। हालांकि, तब बसपा ने ज्यादा मुस्लिम कैंडिडेट उतार कर उनकी इस योजना पर पानी फेर दिया। मुस्लिम-जाट एक साथ नहीं आए और मुस्लिम वोट भी बंट गए।
  • 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों की वजह से जो जाट और मुस्लिमों में दूरियां बनी थीं भाजपा ने 2014 के बाद उसे पश्चिमी UP में उसे फिर से भुनाया और 2017 में 123 में से 100 सीटें जीत कर आई। जबकि, कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर ही सिमट गई।
  • 2017 में सपा अपने पारिवारिक विवाद में उलझी रही तो कांग्रेस के पास संगठन की भी कमी रही। सपा से मुलायम सिंह यादव रैलियां करने भी नहीं निकले और सपा के कद्दावर पुराने नेताओं का टिकट कट जाने से पार्टी में जगह जगह भीतरघात भी हार की वजह बनी। सपा जहां जीत के लिए लड़ रही थी तो कांग्रेस UP में अपनी जमीन तलाश रही थी।

जयंत और अखिलेश की जोड़ी क्यों फेल हुई ?

  • भाजपा को हराने के लिए अखिलेश यादव ने पहले भी कांग्रेस और बसपा से गठबंधन किया है, लेकिन इससे पहले भी UP में गठबंधन सफल नहीं हुए हैं। चाहे मुलायम-कांशीराम की जोड़ी हो, या फिर मुलायम-मायावती, या कल्याण सिंह-मायावती की जोड़ी हो। दरअसल, UP में सिंगल नेता के समर्थक ज्यादा हैं। जो गठबंधन के बाद दूसरे दल के साथ एडजस्ट नहीं करते हैं। यही वजह है कि नेताओं की सभाओं में होने वाली भीड़ बूथ पर वोट में कन्वर्ट नहीं हो पाती है। फिलहाल, अखिलेश को 2017 विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा चुनाव में इसका अनुभव हो चुका है।
  • पश्चिमी UP में विपक्ष की थ्योरी थी कि किसान आंदोलन के बाद जाट और मुस्लिम समीकरण एक बार फिर बनेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दरअसल, 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिमी UP में जो जाट-मुस्लिम का ताना बाना टूटा था, वह दोबारा नहीं जुड़ पाया। भाजपा ने भी इसकी पूरी कोशिश की। यही वजह है कि चुनाव के पहले फेज में अमित शाह ने जोर शोर से कैराना का मुद्दा उठाया था।
  • पश्चिमी UP में किसानों का मुद्दा भी खूब असर नहीं दिखा पाया। विपक्ष लगातार आंदोलन के दौरान किसानों की मौत का मुद्दा उठाता रहा, लेकिन भाजपा के वोटों पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ा। इसके पीछे कारण यही है कि किसानों के नेता राकेश टिकैत खुल कर सामने नहीं आए। उन्होंने खुद को किसानों के मुद्दों से भटकने नहीं दिया। टिकैत ने पंजाब में एसकेएम को भी समर्थन नहीं दिया और इसी तरह UP में किसी एक पार्टी को समर्थन नहीं दिया।
पार्टी विधानसभा सीट पोलिंग प्रतिशत नतीजे
रालोद शामली 67.58 जीती
रालोद थाना भवन 67.86 जीती
रालोद बुढ़ाना 67.73 जीती
रालोद खतौली 69.65 हारी
रालोद मुजफ्फरनगर 62.59 हारी
रालोद पुरकाजी 65.20 जीती
रालोद बागपत 67.78 हारी
रालोद बड़ौत 64.53 हारी
रालोद छपरौली 62.56 जीती
रालोद मेरठ कैंट 56.66 हारी
रालोद सिवालखास 68.92 जीती
रालोद लोनी 61.49 हारी
रालोद मोदीनगर 67.26 हारी
रालोद मुरादनगर 59.72 हारी
रालोद जेवर 65.98 हारी
रालोद हापुड़ 66.78 हारी
रालोद बुलंदशहर 64.68 हारी
रालोद शिकारपुर 64.11 हारी
रालोद स्याना 65.44 हारी
रालोद बरौली 64.07 हारी
रालोद इगलास 61.18 हारी
रालोद खैर 61.89 हारी
रालोद बलदेव 65.28 हारी
रालोद गोवर्धन 66.40 हारी
रालोद आगरा ग्रामीण 61.01 हारी
रालोद फतेहपुर सीकरी 67.89 हारी
रालोद खैरागढ़ 62.47 हारी
रालोद रामपुर मनिहारन 71.60 हारी
रालोद बिजनौर 64.20 हारी
रालोद नहटौर 65.53 हारी
रालोद सादाबाद 64.45 जीती
रालोद मीरापुर 68.65 जीती

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