राज्यों में जातीय जनगणना से लेकर द केरला स्टोरी और कानून मंत्रालय तक

नई दिल्ली। जातीय जनगणना पर विपक्ष शासित हर राज्य की नज़र है। ख़ासकर, ज्यादातर ग़ैर भाजपा शासित राज्य अब अपने यहाँ जातीय जनगणना करवाना चाहते हैं। दरअसल, जातीय जनगणना में उन्हें अपने थोक वोट नज़र आ रहे हैं। जिस कर्नाटक को कांग्रेस ने हाल ही में जीता है, वहाँ तो राहुल गांधी ने जातीय जनगणना का वादा किया था।

कांग्रेस इस वादे को कैसे निभाएगी, यह कहा नहीं जा सकता, क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने जो जातीय जनगणना करवाई थी उसके आँकड़े जारी करने पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुँचा तो वहाँ भी हाईकोर्ट के आदेश को सही ठहरा दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जनगणना या जातीय जनगणना तो केंद्र सरकार का विषय है, इसे राज्य अपनी तरफ़ से नहीं करवा सकता।

उल्लेखनीय है कि ओडिशा में भी इस तरह की जनगणना शुरू होने वाली थी, बिहार इसे पूरी कर चुका है और कर्नाटक में कांग्रेस ने इस आशय का वादा किया था। अब इन सब पर रोक लग चुकी है। राहुल गांधी पहले कह चुके हैं कि जनसंख्या में जिसका, जितना हिस्सा हो, उसे आरक्षण का लाभ उसी रेश्यो में मिलना चाहिए, लेकिन जातीय जनगणना पर रोक के बाद इस योजना के अमल पर संशय पैदा हो गया है।

दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने फ़िल्म “द केरला स्टोरी” पर भी कुछ आदेश दिए हैं। दरअसल, कई राज्यों ने तो इसे टैक्स फ़्री कर दिया था, लेकिन पश्चिम बंगाल ने इस फ़िल्म पर ही प्रतिबंध लगा दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बंगाल सरकार से कहा है कि फ़िल्म पर से प्रतिबंध तुरंत हटाया जाए और अगर आपको किसी झगड़े या दंगे की आशंका है तो फ़िल्म देखने वालों की सुरक्षा का इंतज़ाम किया जाए, लेकिन इस तरह आप प्रतिबंध नहीं लगा सकते।

वास्तव में फ़िल्म “द केरला स्टोरी” बत्तीस हज़ार महिलाओं के धर्म परिवर्तन की कहानी है। कई लोग कह चुके हैं कि यह एक-दो महिलाओं की कहानी हो सकती है। बत्तीस हज़ार महिलाओं का आँकड़ा कहाँ से आया, इसका कोई सबूत नहीं है। फ़िल्म प्रोड्यूसर के वकील ने भी कोर्ट में माना कि हाँ, इस आँकड़े का कोई सबूत नहीं है। इस पर कोर्ट ने बत्तीस हज़ार के धर्म परिवर्तन (इस्लाम क़बूल करने) पर 20 मई की शाम तक डिस्क्लेमर लगाने को कहा है। बिना डिस्क्लेमर के यह फ़िल्म न चलाई जाए।

उधर केंद्र सरकार के क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू से यह मंत्रालय छीनकर अर्जुन राम मेघवाल को दे दिया गया है। सब जानते हैं कि न्यायपालिका और जजों को लेकर रिजिजू के तल्ख़ बयानों से काफ़ी परेशानी हो रही थी। यही वजह है कि उनसे क़ानून मंत्रालय छीन लिया गया है। जहां तक अर्जुन राम मेघवाल को यह मंत्रालय देने का सवाल है, तो ऐसा करने से भाजपा राजस्थान के चुनावों में कुछ फ़ायदा कमाना चाह रही है।

दूसरे, मेघवाल गंभीर और समझदार नेता माने जाते हैं। वे रिजिजू जैसी उग्र बयानबाज़ी कभी नहीं करेंगे। पोर्टफ़ोलियो में परिवर्तन का कारण भी यही है ताकि भविष्य में न्यायपालिका और सरकार के बीच किसी तनाव की नौबत न आए।

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