रायबरेली MLA अदिति सिंह समेत तीन विधायक भाजपा में शामिल

लखनऊ। यूपी में भाजपा के लिए चुनौती बने रायबरेली और आजमगढ़ में बीजेपी ने जबदस्त सेंधमारी की है। रायबरेली से कांग्रेस की विधायक अदिति सिंह और आजमगढ़ की सगड़ी सीट से विधायक वंदना सिंह ने बुधवार को भाजपा का दामन थाम लिया।

अदिति सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली की सदर सीट से विधायक हैं। इन दोनों के अलावा विधायक राकेश प्रताप सिंह ने भी भाजपा की सदस्यता ली। राकेश प्रताप सिंह सोनिया गांधी के खिलाफ लोकसभा चुनाव लड़ने वाले दिनेश प्रताप सिंह के छोटे भाई हैं।

बीजेपी को आजमगढ़ और रायबरेली में लगातार मायूसी हाथ लगी है। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को दोनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। रायबरेली में दोनो बार कांग्रेस से सोनिया गांधी ने जीत हासिल की।

आजमगढ़ में 2014 में मुलायम सिंह यादव और 2019 में अखिलेश यादव ने जीत हासिल की थी। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर के बाद भी आजमगढ़ की दस में से नौ सीटों पर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा था। यहां पांच सीटे सपा और चार बसपा ने जीती थी। इन्हीं में से एक सीट सगड़ी पर बसपा के टिकट पर वंदना सिंह निर्वाचित हुई थीं। बाद में वंदना सिंह को मायावती ने निलंबित कर दिया था।

अदिति सिंह पिछले डेढ़ साल से कांग्रेस में बगावती रुख अख्तियार किया हुआ था। अदिति सिंह पिछले कुछ समय से सीधे प्रियका गांधी के खिलाफ लगातार हमलावर हैं। चाहे वह लखीमपुर खीरी का मामला हो या फिर कृषि कानून वापसी का उन्होंने हमेशा प्रियंका गांधी की राजनीति पर निशाना साधा। कांग्रेस उनके खिलाफ विधानसभा की सदस्यता रद्द करने की अर्जी भी दी थी।

जब तक अखिलश सिंह रायबरेली सदर से विधायक रहे, वह लगातार गांधी परिवार को चुनौती देते रहे। लेकिन तबियत बिगड़ने के बाद उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर अदिति सिंह को 2017 में चुनाव लड़वाया और विधायक बनवाया। बावजूद इसके रायबरेली सदर की सीट कभी भी कांग्रेस की नहीं मानी गयी।

पिता के मौत के बाद अदिति सिंह भी उनकी दबंग छवि के साथ समझौता नहीं कर रही हैं। वे लगातार कांग्रेस की नीतियों को चुनौती दे रही हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी हर मुद्दे का राजनीतिकरण कर देती हैं।

उन्होंने कहा कि लखमीपुर खीरी मामले की सीबीआई जांच कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया है। अगर उनके इन संस्थाओं में ही विश्वास नहीं है तो मुझे समझ में नहीं आता कि उनका किस पर विश्वास है।

पिता की विरासत को बचाए रखने की चुनौती

अगर राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अदिति सिंह अपने पिता के वर्चस्व को बनाये रखते हुए अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहती हैं। कांग्रेस के साथ रहकर यह संभव नहीं था। क्योंकि उनके पिता की गांधी परिवार से अदावत छिपी नहीं है।

अगर पिता के विरासत को आगे बढ़ाना है तो उन्हें अपनी राजनीति की राहें अलग करनी होगी। उनके पिता कांग्रेस का गढ़ होने के बावजूद निर्दलीय चुनाव जीतते रहे हैं। अदिति सिंह यह बात बखूबी जानती हैं कि उन्हें भविष्य में किस राह को पकड़ना है।

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