लखनऊ। कानफोड़ू आवाज वाले वीआईपी गाड़ियों के हूटर, प्रेशर हॉर्न से परेशान वृद्ध ने विरोध का अनूठा तरीका निकाला। पर्यावरण के लिए अकेले कई मुद्दे उठाने वाले बुजुर्ग ने अपनी गाड़ी पर ही बड़ा सा स्टिकर चिपकवा दिया है। इसमें ऊपर मोटे अक्षरों में लिखा है, ‘पीड़ित बुजुर्ग’। अयोध्या रोड के निकट रहने वाले कौशलेन्द्र सिंह की उम्र 73 वर्ष है। उनका अपना पेट्रोल पम्प है। काम से इतर थोड़ा समय भी मिलता है तो सामाजिक विसंगतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करते हैं।
कौशलेन्द्र सिंह के कार की फोटो मौजूदा ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर वायरल हो रही है। स्टिकर पर ऊपर मोटे अक्षरों में लिखा कि पीड़ित हैं तो उसके नीचे छोटे अक्षरों में इसके कारण भी गिनाए हैं। लिखा है,..पीड़ा पहुंचाने वाले, हूटर बजाकर निकलने वाले काफिले, अनावश्यक प्रेशर हॉर्न बजाने वाले ट्रक, कूड़ा जलाने वाले, प्लास्टिक-पॉलीथीन प्रयोग कर फेंकने वाले। कौशलेन्द्र इसके पूर्व पेड़ों और वन क्षेत्रों के संरक्षण के लिए जनहित याचिका दायर कर चर्चा में आ चुके हैं।
अफसरों में पर्यावरण के लिए संवेदनशीलता कम
कौशलेंद्र सिंह ने बताया कि अब पुलिस प्रशासन प्रदूषण के जिम्मेदारों पर कार्रवाई नहीं करते। 30 साल पहले के डीएम अभियान चलाकर वाहनों से कानफोड़ू प्रेशर हॉर्न निकलवाते थे। शहर की सिंगल लेन जहां पहले से स्ट्रीट लाइट लगी हैं, वहां लोग आंखें चुंधिया देने वाली हाईबीम पर चलते हैं। उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। इससे दुर्घटनाएं होती हैं। पहले पुलिस प्रशासन वाहनों की आधी लाइटें पेंट कर देते या स्टिकर लगा देते थे।
ऐसे शोर बना रहा बीमार
ध्वनि की तीव्रता 80 से 90 डेसीबल तक सामान्य मानी जाती है। सामान्य बातचीत 50 से 60 डेसीबल होती है। हार्न या हूटर की ध्वनि तीव्रता 120 से 150 डीबी तक होती है। यह कान के लिए नुकसानदेह है।
न्यूरोऑटोलॉजी विभाग पीजीआई, डॉ. अमित केसरी ने कहा कि तेज हॉर्न-हूटर का ध्वनि प्रदूषण बीमार बना रहा है, सुनने की क्षमता घट रही है। हृदय रोग बढ़ने लगे हैं। घबराहट की दिक्कत बढ़ी है। पीजीआई, कार्डियोलॉजिस्ट, डॉ. नवीन गर्ग ने कहा कि प्रेशर हॉर्न-हूटर की अचानक तेज आवाज से दिल के दौरे का खतरा बढ़ा है। तनाव बढ़ जाता है। हृदय रोगियों के लिए यह जानलेवा हो सकता है।