नई दिल्ली। पिछले आठ साल से भारत में होने वाली हर इन्वेस्टर समिट में गौतम अडानी दिखाई देते रहे। देश के इस दिग्गज उद्योगपति को ही गांधीनगर में नरेंद्र मोदी के वाइब्रेंट गुजरात समिट का आर्किटेक्ट माना जाता है। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। हालांकि अडानी खुद को लो-प्रोफाइल में ही रखते थे। वह दूसरी पंक्ति में बैठते जबकि मोदी के साथ आगे की पंक्ति में मुकेश अंबानी, रतन टाटा, आदि गोदरेज और डिप्लोमेट बैठे दिखते। दिल्ली आने से पहले वाइब्रेंट गुजरात की सफलता ने मोदी की छवि इंडस्ट्री-फ्रेंडली बनाने में मदद की।
बाद के वर्षों में हर राज्य ने इंडस्ट्री को लुभाने के लिए गुजरात जैसी पहल शुरू की। मोदी को करीब से जानने समझने वाले बहुत से लोग मानते हैं कि वाइब्रेंट गुजरात एक ऐसा कदम था, जिससे उनके गांधीनगर से उड़कर दिल्ली पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हुआ। हमारे सहयोगी अखबार TOI में राधिका रमेशन पूरे घटनाक्रम पर विश्लेषण किया है। उन्होंने पूछा है कि आखिर हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर विपक्ष शासित राज्य चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?
इन्वेस्टर इवेंट्स में अडानी रॉक स्टार बन चुके थे लेकिन 2014 के बाद मोदी से निकटता दिखाई देने लगी। राजनीति और बिजनस के रिलेशन को अब तक छिपाया जाता था या बात नहीं होती थी। उन्होंने सभी दलों में दोस्त बनाए जिससे केवल मोदी के साथ जोड़कर उनकी पहचान न बने।
अडानी ने कांग्रेस के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और विलासराव देशमुख के कार्यकाल में भी काम किया। कुछ लोग उन्हें करीबी भी मानते। हालांकि तमाम विवादों के बावजूद एक भी गैर-भाजपा शासित राज्य के मुख्यमंत्री ने हिंडनबर्ग धमाके के बाद चल रहे प्रोजेक्ट को रोकने की बात नहीं कही, जहां अडानी ने निवेश कर रखा है।
ध्यान रखना चाहिए कि ममता बनर्जी और पिनराई विजयन खामोश हैं। केवल छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि अगर विकास का पैमाना केवल अडानी हैं तो इस तरह का विकास नहीं चाहिए। सीएम ने कहा कि ऐसा विकास चाहिए जिसमें देश के किसान, मजदूर, महिलाएं, युवा, आदिवासी का विकास हो। केवल मुट्ठीभर लोगों का विकास नहीं चाहिए।
हाल में लखनऊ में 10 से 12 फरवरी तक हुई ग्लोबल इन्वेस्टर समिट से अडानी दूर रहे। हालांकि इसकी उसकी चर्चा नहीं हुआ। जबकि योगी सरकार ने निवेशकों को लुभाने के लिए 22 मंत्रियों और अधिकारियों को यूरोप भेजा था। RIL ने 75,000 करोड़ मुख्य रूप में 5जी सर्विस में निवेश की बात कही है। एन चंद्रशेखरन (टाटा ग्रुप) ने दावा किया यूपी 1 ट्रिलियन डॉलर की इकॉनमी बनने की ओर अग्रसर है।
आदित्य बिरला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिरला ने 25,000 करोड़ के निवेश की बात कही है। लेकिन लखनऊ में लोग हैरान रह गए कि अडानी को क्या हुआ और क्या उन्हें लखनऊ से दूर रहने को कहा गया था। मिस्टर-A की चर्चा खूब हुई।
2022 में जब अडानी एशिया के सबसे अमीर शख्स थे, यूपी में 70,000 करोड़ के निवेश से 30,000 नौकरियों के सृजन की बात कही गई थी। तब अडानी ने यूपी में 24,000 करोड़ के निवेश की घोषणा की थी, जो मुकेश अंबानी से एक तिहाई से भी कम थी। इस बार अडानी के मौजूद न होने से बातें होने लगीं जैसे उनके बुरे दिन आ गए। हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने के बाद 4 फरवरी को योगी सरकार ने मध्यांचल विद्युत वितरण निगम को स्मार्ट पावर मीटर सप्लाई करने का ग्रुप का 5,400 करोड़ का टेंडर रद्द कर दिया।
पावर कॉरपोरेशन का कर्मचारी संघ मांग कर रहा था कि अडानी ग्रुप का टेंडर निरस्त किया जाए क्योंकि 6,000 रुपये का बेंचमार्क तय किया गया था और उनका कोटेशन 10,000 प्रति पावर मीटर काफी ज्यादा है।
सीएम योगी आदित्यनाथ के केंद्र के साथ कभी अच्छे संबंध नहीं रहे। मंत्रियों को शामिल करने का मामला हो या ब्यूरोक्रेट की नियुक्ति आदित्यनाथ खुद एक पावर सेंटर बनकर उभरे। दिल्ली-लखनऊ समीकरण की हमेशा बात की जाती रहती। ऐसे में यह सवाल उठा कि क्या अडानी का न होना योगी आदित्यनाथ का एक तरह का सिग्नल था? या क्या अडानी से खुद दूर रहने को कहा गया था? अटकलों पर अटकलें लगाई जा रही हैं।
यूपी के एक पूर्व अधिकारी ने कहा कि अडानी का होना शायद एक मुद्दा बन सकता था। उद्योग के बड़े प्रतिनिधि आगे की पंक्ति में बैठे थे लेकिन क्या अडानी उनके साथ बैठते या क्या वे अपने बीच उन्हें पसंद करते?
फरवरी 2018 में लखनऊ में इन्वेस्टर समिट में मुलायम सिहं यादव, अमिताभ बच्चन और अनिल अंबानी के करीबी अमर सिंह वीवीआईपी के बीच जगह बनाने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन मौका नहीं मिला था। इसे योगी की तरफ से सिंह के लिए एक संदेश के तौर पर देखा गया।
हालांकि एक अधिकारी का कहना है कि अडानी का होना जरूरी नहीं था क्योंकि वह कुछ दिन पहले ही सीएम से मिले थे और उन्होंने बता दिया था कि वह क्या करेंगे।
2022 में अडानी को पीपीपी पार्टनरशिप के तहत छह लेना वाला गंगा एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट मिला था। इसके लिए उन्हें एसबीआई से 10,238 करोड़ भी मिल गया। यह भारत का सबसे लंबा एक्सप्रेसवे होगा जो पश्चिम में मेरठ को अवध में प्रयागराज को जोड़ेगा।
पिछले साल अडानी ने कांग्रेस शासित राजस्थान में 65,000 करोड़ रुपये के निवेश की घोषणा की थी। ग्रुप ने 2015 में छत्तीसगढ़ में रिफाइनरी और कई प्लांट शुरू किए, जब वहां भाजपा सरकार थी। कांग्रेस राज में भूपेश बघेल के कार्यकाल में राज्य सरकार की बिजली कंपनी ने कोरबा जिले में दो कोल ब्लॉकों को विकसित और संचालित करने के लिए अडानी ग्रुप को सिलेक्ट किया।
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने जुलाई 2022 में बिजनस कॉन्क्लेव में अडानी का सम्मान किया। उन्होंने कहा, ‘राजनीति अलग है और इंडस्ट्री बिल्कुल अलग है।’ इधर, केरल सीएम ने विपक्ष के तीखे विरोध और दबाव के बावजूद विझिंगम पोर्ट के विकास का जिम्मा अडानी को दे दिया। अडानी उत्तर प्रदेश समिट से दूर क्यों रहे, यह रहस्य का विषय बन गया जबकि विपक्ष शासित राज्य लगातार उन पर भरोसा कर रहे हैं।