नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट लव जिहाद या धर्म परिवर्तन से जुड़े कानूनों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लव जिहाद कानून से जुड़े मसले पर सुनवाई हुई। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस अध्यादेश पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के साथ उत्तराखंड सरकार को भी लव जिहाद से जुड़े कानूनों को लेकर नोटिस जारी किया है।
शादी का मकसद साबित करना उचित नहीं
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट सीयू सिंह ने कोर्ट में कहा कि शादीशुदा कपल पर इस तरह का दबाव डालना ठीक नहीं है। यह बिल्कुल भी सही नहीं, जिसमें यह साबित करना पड़े कि उनकी शादी का मकसद धर्म-परिवर्तन नहीं है।
उन्होंने कहा कि ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें भीड़ ने इंटर-रिलीजन (अंतर-धार्मिक) मैरिज में बाधा पहुंचाई है। उन्होंने इस कानून के तहत सख्त सजा का हवाला भी दिया। एक अन्य वकील ने कोर्ट को बताया कि ऐसे ही कानून मध्य प्रदेश और हरियाणा में भी बनाए जाने की तैयारी है।
पिटीशनर ने पूछा- क्या संसद को मलभूत अधिकारों में परिवर्तन करने का अधिकार
कुछ याचिकाएं एडवोकेट विशाल ठाकुर, अभय सिंह यादव और लॉ रिसर्चर प्रनवेश की ओर से भी दायर की गई हैं। याचिका में कहा गया कि अध्यादेश से संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर प्रभावित हुआ है। मुख्य मुद्दा यह है कि क्या संसद को संविधान के पार्ट-3 के तहत दिए गए मूलभूत अधिकारों में परिवर्तन करने का अधिकार है।
पिटीशनर ने यह भी कहा कि अगर यह अध्यादेश लागू होता है, तो इससे लोगों को नुकसान पहुंच सकता है और समाज में अफरा-तफरी का माहौल भी बन सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने गैर-कानूनी धर्मपरिवर्तन कानून(Unlawful Religious Conversions Law) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उतर प्रदेश और उत्तराखंड को नोटिस जारी किया है। इन याचिकाओं में दोनों राज्यों के कानून को सम्मान से जीवन जीने और धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन बताते हुए चुनौती दी गई है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट अब इन अध्यादेशों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने का काम करेगा और यही कारण है कि राज्य सरकारों(यूपी और उत्तराखंड) को नोटिस जारी कर उनका पक्ष मांगा गया है। आज सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को कहा कि पहले से ही इस मामलों में हाइकोर्ट सुनवाई कर रहा है, जिस पर अदालत ने हाइकोर्ट ना जाकर सीधे सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाने का कारण पूछा।
याचिकाकर्ता की ओर से हाइकोर्ट जाने की बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका देने पर अदालत ने आपत्ति जताई। याचिकाकर्ता की ओर से याचिका में कहा गया है कि इस अध्यादेश पर तुरंत रोक लगा दी जाए, इसकी आड़ में अंतरधार्मिक विवाह करने वाले लोगों को परेशान किया जा रहा है। याचिका में यह भी कहा गया कि लोगों को शादियों से ही उठा लिया जा रहा है।