नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य चिंताओं के साथ- साथ अन्य कई तरह की मुश्किलें आई हैं। इसमें सबसे बड़ी समस्या भोजन की है। हंगर वॉच सर्वे के मुताबिक सितंबर और अक्टूबर के बीच 20 में से एक घर ऐसा रहा जो एक वक्त का ही खाना खा पाया और रात को बिना कुछ खाए सोया।
ऐसे में विशेषज्ञों ने दुनिया के प्रमुख देशों को सावधान करते हुए कहा है कि अगर वे समय से भुखमरी पर ध्यान नहीं दिए तो यह एक भयानक संकट रूप में सामने आने वाला मुसीबत बन सकता है।
सर्वे में देश के 11 राज्यों में चार हजार लोगों की प्रतिक्रियांओं के मुताबिक सितंबर और अक्टूबर के बीच खपत में गिरावट रही। सर्वे में 56% घरों ने कहा कि उनका इनकम भी न के बराबर रहा। यह अप्रैल और मई के दौरान भी शून्य ही रहा था।
सर्वे की कुछ महत्वपूर्ण बातें –
- करीब 53% लोगों ने कहा कि चावल या गेहूं की खपत घटी,
- इसी तरह 64% लोगों में दाल की खपत घटी,
- 73% लोगों में हरी सब्जियों की खपत में गिरावट दर्ज की गई,
- 54% आदिवासियों में भोजन की खपत में गिरावट दर्ज की गई,
- 71% लोगों ने कहा कि गुणवत्ता वाला भोजन भी घटा,
खाने के लिए पैसे उधार लिए
विशेषज्ञों ने कहा कि कोरोना के प्रसार रोकथाम के लिए लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत में भी गरीब तबके के लोग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। सितंबर और अक्टूबर के बीच किए गए सर्वे में पाया गया कि लॉकडाउन की वजह से 11 राज्यों के लगभग 45% लोग आर्थिक रूप से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें खाने के लिए पैसे उधार लेने पड़े। रिपोर्ट में कहा गया है कि दलितों द्वारा पैसे उधार लेने की जरूरत सामान्य श्रेणी की तुलना में 23% अधिक रही।
लॉकडाउन के दौरान निचले तबके के लोगों की स्थिति
हंगर वॉच के तहत यह भी पाया कि लगभग 74% दलितों के भोजन की खपत में कमी आई है। सर्वे में करीब 56% लोगों ने कहा कि लॉकडाउन से पहले उन्हें कभी भोजन छोड़ना नहीं पड़ा। लेकिन लॉकडाउन के बाद सितंबर-अक्टूबर की अवधि में खाने के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। बता दें कि हंगर वॉच ने सितंबर महीने में अन्य नेटवर्क के साथ मिलकर भोजन का अधिकार नाम का एक कैंपेन लॉन्च किया था।
सर्वे का उद्देश्य
कैंपेन का उद्देश्य देश के विभिन्न क्षेत्रों में कमजोर और हाशिए पर रहने वाले समुदायों में भोजन की वास्तविक स्थिति पर परखना था। हंगर वॉच सर्वे को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखंड, दिल्ली, तेलंगाना, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल के कमजोर और हाशिए पर पड़े समुदायों से लगभग चार हजार लोगों से प्राप्त प्रतिक्रिया के आधार पर तैयार किया गया है।