नई दिल्ली। देश में सोमवार से तालाबंदी का पांचवां चरण शुरु हो गया। सरकार द्वारा चौथे चरण में ढील दिए जाने के बाद से हर दिन भारी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामलों आ रहे हैं। अब तो विशेषज्ञों ने कोरोना वायरस के कम्युनिटी ट्रांसमिशन का खतरा भी जाहिर कर दिया है। हालांकि भारत सरकार महामारी के कम्युनिटी ट्रांसमिशन के स्टेज पर पहुंचने की बात से इनकार करती रही है, जबकि भारत में कम्युनिटी ट्रांसमिशन के संभावित सबूत पहले भी मिले थे। अप्रैल महीने में भारत की मेडिकल रिसर्च संस्था आईसीएमआर ने इस ओर इशारा किया था, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने तब इसे नजरअंदाज कर दिया था।
अब कोरोना संक्रमण रोकने के लिए बने नेशनल टास्क फोर्स के विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि भारत के कई जोन में अब कोरोना का सामुदायिक संक्रमण हो रहा है, इसलिए ये मानना गलत होगा कि मौजूदा हाल में कोरोना पर काबू कर पाना संभव होगा।
इतना ही नहीं नेशनल टास्क फोर्स के सदस्यों ने कोरोना संक्रमण से निपटने में सरकार के रवैये की आलोचना की भी है। उन्होंने कहा है कि बिना सोची-समझी लागू की कई नीतियों के कारण देश मानवीय त्रासदी और महामारी के फैलाव के मामले में भारी कीमत अदा कर रहा है।
चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों की देश की तीन जानी-मानी संस्थाओं एम्स, बीएचयू और जेएनयू ने कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए सरकार के कदमों की कड़ी आलोचना की है।
संस्थाओं ने कहा है कि बेहद सख्त तालाबंदी के बावजूद न सिर्फ कोरोना के मामले दो महीने में 606 से बढ़कर एक लाख अड़तीस हजार से अधिक (मई 24 तक) हो गए हैं बल्कि अब ये ‘कम्युनिटी ट्रांसमिशन’ के स्टेज पर है।
प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखने वालों में स्वास्थ्य मंत्रालय के पूर्व सलाहकार, एम्स, बीएचयू, जेएनयू के पूर्व और मौजूदा प्रोफेसर शामिल हैं। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में डॉ डीसीएस रेड्डी भी शामिल हैं। डॉ रेड्डी कोरोना पर अध्ययन के लिए गठित कमेटी के प्रमुख हैं। अप्रैल महीने में कोरोना महामारी पर निगरानी के लिए नेशनल टास्क फोर्स ने एक कमेटी गठित की थी।
इसके अलावा एम्स, बीएचयू और चंडीगढ़ स्थित पीजीआईएमईआर के कई पूर्व और वर्तमान प्रोफेसर और स्वास्थ्य के क्षेत्र की जानी मानी हस्तियों ने भी इस बयान पर अपनी मुहर लगाई है।
केंद्र सरकार ने जिस तरह चार घंटे की नोटिस पर पहले लॉकडाउन की घोषणा की थी, उसकी आलोचना होती रही है। इसकी भी आलोचना होती रही है कि इस कारण प्रवासी मजदूरों और गरीबों को काफी तकलीफ उठानी पड़ी। इस बयान में कहा गया है कि लॉकडाउन ने कम से कम 90 लाख दिहाड़ी मजदूरों के पेट पर लात मारी है।
पीएम को लिखे पत्र में कहा गया है कि यदि इस महामारी की शुरुआत में ही, जब संक्रमण की रफ्तार कम थी, मजदूरों को घर जाने की अनुमति दे दी गई होती तो मौजूदा हालत से बचा जा सकता था। शहरों से लौट रहे मजदूर अब देश के कोने-कोने में संक्रमण ले जा रहे हैं, इससे ग्रामीण और कस्बाई इलाके प्रभावित होंगे, ज्यादा स्वास्थ्य व्यवस्थाएं उतनी मुकम्मल नहीं हैं। इस बयान में कहा गया है कि अगर भारत सरकार शुरुआत में संक्रमण विशेषज्ञों की राय ली होती तो हालात पर ज्यादा प्रभावी तरीके से काबू पाया जा सकता था।
दिल्ली स्थित एम्स में कम्युनिटी मेडिसिन के प्रमुख और रिसर्च ग्रुप के सदस्य डॉ शशिकांत ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किया है। उन्होंने कहा कि “यह पत्र तीन मेडिकल संस्थाओं द्वारा जारी किया गया एक संयुक्त बयान है, ये कोई निजी राय नहीं है। ”
वहीं भोजन के अधिकारों के लिए काम करनेवाली संस्था – राइट टू फूड के मुताबिक तालाबंदी के चलते 22 मई तक देश भर में भूख, दुर्घटना और इस तरह के कई कारणों से 667 मौतें (कोरोना बीमारी से अलग) हो चुकी हैं।
राइट टू फूड ने गरीबों पर आई आपदा और सरकार के कथित ‘संवेदनाहीन’ रवैए के विरोध में एक जून यानी सोमवार को शोक दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया है।
इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन के अलावा इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिंस और इंडिन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमिओलॉजिस्ट के इस बयान को प्रधानमंत्री नेरंद्र मोदी, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डाक्टर हर्षवर्धन के साथ-साथ तमाम राज्य सरकारों को भेजा गया है।
इन स्वास्थ्य संस्थाओं ने सरकार को कई सुझाव दिए हैं, जिनमें केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों की टीम का गठन करने, कोविड से जुड़े डेटा तक आसानी से पहुंच, लाकडाउन खत्म करने और क्लस्टर बंदी लागू किए जाने और अस्पतालों को आम लोगों के लिए खोले जाने जैसी बातें शामिल हैं।