नई दिल्ली। भारतीय सेना में फिटनेस और बेहतर मेडिकल कैटेगरी की मिसाल हर कोई देता है लेकिन सामने आ रही खबरों के अनुसार वहां पूरी तरह से सब सही नहीं दिख रहा है। उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना इन दिनों ‘लो मेडिकल कैटिगरी’ से जूझ रही है यानी अनफिट जवानों और अधिकारियों की संख्या बढ़ रही है। इस समस्या के निवारण और सैनिकों को ज्यादा चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए सेना के भीतर बड़े स्तर पर चार अध्ययन चल रहे हैं। इनके बाद कई ऐसे फैसले लागू किए जा सकते हैं जिससे सेना का ढांचा ‘फैट फ्री’ बने यानी जिन वजहों से फैसले लेने में देरी होती है और मैनपावर बर्बाद होती है, उनकी पहचान कर उन्हें बदला जा सके। ऐसा करने के पीछे सेना को भविष्य की जरूरतों के हिसाब तैयार करना है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, अध्ययन कर रही सभी टीमों को लेफ्टिनेंट जनरल हेड कर रहे हैं। इनमें वास्तविक ग्राउंड स्थिति का ध्यान रखा जा रहा है।
सूत्रों से न्यूज 7 एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार इन चारों अध्ययन को सेना के वाइस चीफ सितंबर के मध्य में देखेंगे। जिसके बाद दिसंबर के आखिर में अध्ययन से क्या निकल कर आया और क्या बदलाव किए जा सकते हैं इस पर फाइनल प्रजेंटेशन आर्मी चीफ को दिया जाएगा। आर्मी चीफ इस पर अपना फैसला लेंगे और फिर बदलाव का डीटेल प्रपोजल डिफेंस मिनिस्ट्री को भेजा जाएगा। आर्मी के भीतर इस पर स्टडी चल रही है कि कैसे हेडक्वॉर्टर में मैनपावर को कम किया जाए। आर्मी के विस्तार के साथ हेडक्वॉर्टर में तैनात अधिकारियों की संख्या बढ़ती रही है जिससे फ्रंटलाइन पर ट्रेंड और अनुभवी मैनपावर की उपलब्धता कम हुई है। वैसे ही ऑफिसर कैडर की कमी है और फ्रंटलाइन पर इनकी ज्यादा जरूरत महसूस की जाती रही है। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक अभी सेना में कई ब्रांच और निदेशालय ऐसे हैं जो लगभग एक जैसा ही काम करते हैं।
हमारे सूत्रों ने बताया कि इस तरह की ‘डुप्लिसिटी ऑफ टास्क’ को खत्म करने कि लिए अध्ययन कर रही टीम अपनी सिफारिश देगी क्योंकि इससे मैनपावर भी ज्यादा लग रहा है वक्त भी। यह टीम इस पर भी फोकस कर रही है कि क्या कोई ऐसी ब्रांच हैं जिसे रीलोकेट किया जा सकता है यानी आर्मी हेडक्वॉर्टर से बाहर कोई ब्रांच निकाली जा सकती है ताकि ज्यादा ऑफिसर्स को फ्रंटलाइन यूनिट के लिए उपलब्ध कराया जा सके। सेना में सर्विस के नियम और शर्तों का भी रिव्यू किया जा रहा है। अभी तक नियम और शर्तों को लेकर आर्मी रेग्युलेशन-1987 माना जाता है। साथ ही डिफेंस मिनिस्ट्री के 1998 के लेटर के हिसाब से पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस की लिमिट तय होती है। यह स्टडी की जा रही है कि क्या सर्विस के पैरामीटर बदलने की जरूरत है। माना जा रहा है कि पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस की लिमिट बढ़ाई जा सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अभी तक के नियम और शर्त फंक्शनल जरूरतों के हिसाब से हैं लेकिन इन्हें भविष्य की जरूरत के हिसाब से कैसे किया जा सकता है अध्ययन इस पर हो रहा है।
उल्लेखनीय है कि दूसरे देशों की आर्मी और भारत के भीतर सेंट्रल गवर्नमेंट सहित दूसरी सर्विस में जो भी सर्विस रूल स्टैंडर्ड के हैं उन्हें भी देखा जा रहा है। उनकी कुछ अच्छी प्रैक्टिस यहां भी लागू की जा सकती है। आर्मी चीफ कई बार जवानों- अधिकारियों की हेल्थ को लेकर सलाह दे चुके हैं। इसके अलावा कई जवान प्रमोशन कैडर में जाने से मना कर देते हैं। 9 महीने की ट्रेनिंग के बाद 15 साल में जवान पेंशन पर जा सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक जिस तरह हर साल जवान पेंशन पर जा रहे हैं और ट्रेंड लोगों की कमी हो रही है उससे सेना चितिंत है। अध्ययन इस पर भी किया जा रहा है कि क्या पेंशन के लिए मिनिमम सर्विस पीरियड बढ़ाया जा सकता है। सूत्रों के मुताबिक इसे 15 साल से बढ़ाकर 20 साल करने पर विचार चल रहा है। हालांकि इसमें ख्याल रखा जाएगा कि ऑपरेशन डिप्लॉइमेंट के लिए एज प्रोफाइल क्या रखना है, साथ ही जवान की लाइफटाइम कमाई क्या होगी। अब देखना होगा कि सेना इस मसले से किस तरह निपटती है।