भारत में “वन नेशन, वन इलेक्शन” की अवधारणा पर मंगलवार को लोकसभा में एक विधेयक प्रस्तुत किया गया। इस विधेयक का उद्देश्य देश में संसदीय और विधानसभा चुनावों को एक साथ करवाना है। यह विचार लंबे समय से चर्चा में है और इसे भारत की चुनावी प्रक्रिया को सुधारने के लिए एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। लेकिन, हर भारतीय को यह समझना जरूरी है कि इस व्यवस्था के फायदे और नुकसान क्या होंगे। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए कितना प्रासंगिक और व्यावहारिक है।
भारत में स्वतंत्रता के बाद 1952 से लेकर 1967 तक संसदीय और विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित किए जाते थे। लेकिन 1967 में, कुछ राज्यों की विधानसभाएं भंग हो गईं और अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे। इसके बाद, राज्यों और केंद्र में चुनावों का चक्र अलग हो गया। वन नेशन, वन इलेक्शन की अवधारणा को फिर से लागू करने का उद्देश्य चुनावों की बार-बार होने वाली प्रक्रिया को सरल बनाना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मंचों पर इस विचार को समर्थन दिया है। उनका तर्क है कि बार-बार चुनाव कराने से देश का आर्थिक, सामाजिक और प्रशासनिक संसाधन बर्बाद होता है। यह प्रस्ताव न केवल समय और धन बचाने का वादा करता है, बल्कि सरकारों को अपने कार्यकाल के दौरान नीतिगत फैसलों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
सत्तारूढ़ दल भाजपा का तर्क है कि भारत में बार-बार चुनाव कराने पर भारी खर्च होता है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग ₹60,000 करोड़ खर्च हुए थे। यदि चुनाव एक साथ कराए जाते हैं, तो प्रशासन, सुरक्षा और अन्य संसाधनों पर खर्च में काफी कमी आएगी। चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र का बड़ा हिस्सा चुनावी ड्यूटी में लग जाता है, जिससे विकास कार्य बाधित होते हैं। एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक तंत्र पर दबाव कम होगा और विकास योजनाओं का कार्यान्वयन सुचारु रहेगा।
बार-बार चुनाव होने से राजनीतिक पार्टियां लगातार चुनावी रणनीतियों में व्यस्त रहती हैं। इससे दीर्घकालिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित नहीं हो पाता। “वन नेशन, वन इलेक्शन” से पार्टियां अपने पूरे कार्यकाल में विकास और शासन पर ध्यान दे सकेंगी। हर चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता लागू होने से सरकारें विकास कार्यों को रोकने के लिए बाध्य होती हैं। यदि चुनाव एक साथ होते हैं, तो यह समस्या सालों में सिर्फ एक बार उत्पन्न होगी। बार-बार चुनाव होने से जनता को वोट देने के लिए कई बार समय निकालना पड़ता है। एक साथ चुनाव होने से जनता को बार-बार मतदान के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा।
यह प्रस्ताव भारतीय चुनावी प्रणाली को अधिक सुदृढ़ और संगठित बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण सुधार बताया जा रहा है। लेकिन, सवाल यह है कि संविधान में संसदीय और विधानसभा चुनावों के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं। इन दोनों को एक साथ करने के लिए संविधान में बड़े पैमाने पर संशोधन करना होगा। राज्यों की स्वायत्तता पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है, क्योंकि यह व्यवस्था संघीय ढांचे के विपरीत हो सकती है। इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए पर्याप्त ईवीएम और वीवीपीएटी मशीनें नहीं हैं। इनका प्रबंधन और रखरखाव एक बड़ी चुनौती होगी।
एक साथ चुनाव कराने के लिए पूरे देश में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होगी। यह सुरक्षा बलों और अन्य प्रशासनिक एजेंसियों के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। आलोचकों का कहना है कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों के सामने दब सकते हैं। यह छोटे और क्षेत्रीय दलों के लिए नुकसानदायक हो सकता है। यदि किसी राज्य की सरकार चुनाव के बीच में गिर जाती है, तो उसकी भरपाई कैसे की जाएगी? क्या जनता को नई सरकार के लिए इंतजार करना होगा? यह स्थिति राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है।
चुनाव आयोग के पास इतने बड़े पैमाने पर चुनाव कराने के लिए पर्याप्त मानव संसाधन और प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। इतने बड़े पैमाने पर चुनाव होने पर मतदाता अपने निर्णय लेने में भ्रमित हो सकते हैं, जिससे मतदान प्रतिशत प्रभावित हो सकता है। दुनिया के कई देशों में एक साथ चुनाव कराने की प्रथा है। अमेरिका में राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनाव एक साथ होते हैं। दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन और इंडोनेशिया में भी एक साथ चुनाव की परंपरा है। लेकिन इन देशों में भारत के मुकाबले जनसंख्या और विविधता का स्तर कम है, जिससे उनकी चुनावी प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है।
मेरा मानना है कि शुरुआत में कुछ राज्यों में वन नेशन, वन इलेक्शन का प्रयोग किया जा सकता है। इससे इस प्रक्रिया की व्यवहारिकता को परखा जा सकता है। जनता और राजनीतिक दलों के बीच इस विषय पर जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि सभी पक्ष इस बदलाव के लिए सहमत हों। यदि यह विचार व्यापक समर्थन पाता है, तो संविधान में आवश्यक संशोधन किए जाने चाहिए। पर्याप्त ईवीएम, वीवीपीएटी और अन्य संसाधनों का प्रबंध किया जाना चाहिए। चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों की कमी न हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर “वन नेशन, वन इलेक्शन” एक ऐसा विचार है जो भारतीय चुनाव प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। इसके फायदे स्पष्ट हैं–समय और धन की बचत, प्रशासनिक दक्षता और राजनीतिक स्थिरता। लेकिन इसे लागू करने के लिए संवैधानिक, तकनीकी और प्रशासनिक चुनौतियों को सुलझाना अनिवार्य है। यह आवश्यक है कि इस प्रस्ताव को व्यापक चर्चा और सभी हितधारकों की सहमति के बाद ही लागू किया जाए। भारतीय लोकतंत्र में सुधार की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, बशर्ते इसे सावधानीपूर्वक और समग्र दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाए।