लखनऊ। बीते 5 जनवरी को राजधानी लखनऊ के पॉश इलाके विभूतिखंड में हुए गैंगवार ने पूरे प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए थे। इस दौरान मऊ जिले के पूर्व ब्लॉक प्रमुख व हिस्ट्रीशीटर अजीत सिंह की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। रविवार की रात लखनऊ पुलिस ने इस गैंगवार में शामिल रहे अपराधी गिरधारी उर्फ डॉक्टर को एनकाउंटर में मार गिराया।
गिरधारी 29 साल से जरायम की दुनिया में एक्टिव था। वह दोनों हाथों से असलहा चलाने में माहिर था। उसका नाम डॉक्टर इसलिए पड़ा था, क्योंकि वह शरीर के ऐसे हिस्से में गोली मारता था जहां लगने के बाद तुरंत मौत हो जाती थी।
लखनऊ, वाराणसी, दिल्ली समेत 12 बड़े शहरों की क्राइम डायरी में भले ही उसका असली नाम गिरधारी विश्वकर्मा दर्ज हो। लेकिन अपराध की दुनिया में उसे कई नाम थे। वह गिरधारी लोहार, डॉक्टर, टग्गर, DM, रॉबिनहुड के नाम से जाना जाता था।
‘बाहुबली आका’ के कहने पर दिल्ली में गिरफ्तार हुआ था गिरधारी
शूटर गिरधारी का निशाना अचूक था। वह सुपारी लेकर हत्याकांड को अंजाम देता था। उसकी तलाश वाराणसी पुलिस को भी थी। गिरधारी ने 30 दिसंबर 2019 को वाराणसी के सदर तहसील परिसर में दिनदहाड़े ठेकेदार नीतीश सिंह की हत्या कर दी थी। इसके बाद उसका नाम प्रदेश के बड़े अपराधियों में शुमार हो गया था। अजीत सिंह की हत्या के एक माह से अधिक समय तक UP पुलिस उसकी तलाश करती रही।
लेकिन 11 जनवरी को फिल्मी स्टाइल में दिल्ली पुलिस ने रोहिणी इलाके से गिरफ्तार किया। हालांकि इसे सरेंडर माना गया। चर्चा है कि गिरधारी के ‘बाहुबली आका’ के कहने पर गिरधारी ने खुद को दिल्ली में गिरफ्तार कराया था। शायद उसे मालूम हो गया था कि यदि UP पुलिस की पकड़ में आया तो उसका एनकाउंटर हो जाएगा। आखिरकार पुलिस कस्टडी से भागने की कोशिश में रविवार रात गिरधारी लखनऊ में UP पुलिस के हाथों मारा गया।
16 साल पहले की थी पहली हत्या
वाराणसी के चोलापुर थाने के लखनपुर का मूल निवासी गिरधारी विश्वकर्मा साल 2001 से जरायम जगत में सक्रिय है। वर्ष 2001 में गिरधारी के खिलाफ लूट का पहला मुकदमा दर्ज किया गया था। वर्ष 2000 तक गिरधारी चोलापुर क्षेत्र के ही एक सफेदपोश का शागिर्द था और छोटे-मोटे झगड़ों में उसका नाम सामने आता था।
लोग बताते हैं कि सफेदपोश के संरक्षण में आने से पहले गिरधारी की छोटी सी दुकान भी थी। इसके बाद वह जौनपुर और आजमगढ़ के सफेदपोशों के संपर्क में आया था। वर्ष 2005 में जौनपुर के केराकत क्षेत्र में हत्या के बाद गिरधारी दोनों हाथ से ताबड़तोड़ फायरिंग करने वाले शार्प शूटर के तौर पर जरायम जगत में कुख्यात हो गया। वर्ष 2010 में गिरधारी पर 50 हजार का इनाम घोषित हुआ था। इसके बाद 2019 में नितेश की हत्या हुई तो उस पर एक लाख का इनाम घोषित हुआ था।
सत्ता बदलने के साथ ही ‘माननीय’ से दोस्ती बदल देता था गिरधारी
गिरधारी शक्ल से ही नहीं बल्कि दिमाग से भी बहुत शातिर था। वह पुलिस से बचने का तरीका बखूबी जानता था और जिसकी भी प्रदेश में सरकार रहती है वह उसी दल के नेताओं से दोस्ती गांठ लेता था। 2005 में जौनपुर में चेयरमैन चुनाव की रंजिश में विजय गुप्ता की हत्या करने के बाद उसने तत्कालीन सांसद से दोस्ती बना ली, जो अब तक बराकरार रही।
इसके बाद 2007 में बसपा की सरकार बनने के बाद आजमगढ़ से सत्ताधारी विधायक से रिश्ते मजबूत कर लिया। लेकिन 2012 में सरकार बदलते ही उससे दुश्मनी हो गई थी। फिर आजमगढ़ के सपा विधायक से नजदीकी बढ़ा ली। 2017 में सरकार बदली तो गिरधारी ने भी पाला बदल लिया। अब वह चंदौली के सत्ताधारी विधायक की शरण में रहकर जरायम की दुनिया में आतंक बन चुका था।
राजनीति से जुड़े लोगों को सबसे अधिक अपना शिकार बनाया
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार गिरधारी विश्वकर्मा को जरायम की दुनिया का डाक्टर भी कहा जाता रहा। उसे यह पता था कि शरीर के किस हिस्से में गोली मारने से तुरंत जान चली जाती है। इसलिए राजनीति से जुड़े लोगों को मौत के घाट उतारने के लिए उसे हत्या की सुपारी दी जाती थी।
उसने जौनपुर, आजमगढ़, मऊ, वाराणसी, लखनऊ में अब तक जितने भी मर्डर किया वह सब राजनीति से जुड़े लोग थे। 2005 में गिरधारी लोहार ने जौनपुर में चेयरमैन के भाई विजय गुप्ता की हत्या की थी।
इसके बाद 2008 में मऊ के घोसी में नंदू सिंह की हत्या, 2011 में आजमगढ़ के जीयनपुर में डमरू सिंह की हत्या, 2010 में मऊ के कोतवाली इलाके में सुनील सिंह की हत्या, 2013 में बीएसपी विधायक सर्वेश सिंह उर्फ सीपू की हत्या, 2019 में वाराणसी में नीतेश सिंह की हत्या और 2020 में लखनऊ में पूर्व ब्लाक प्रमुख अजीत सिंह हत्या कर दी थी। एक बात तो यह तय हो गई गिरधारी और कन्हैया के मारे जाने के बाद कई हत्याओं से असली राज खोलना बाकी रह जाएगा।