नई दिल्ली। यही वजह है कि भारत और नेपाल के इस इलाके में राज्य की सीमाएं बदलती रही हैं। वर्तमान सीमा 1816 की सुगौली संधि के बाद अस्तित्व में आई जो नेपाल और ब्रिटिश इंडिया के बीच हुई थी। लेकिन यहां समाज पहले से मौजूद था जो मैथिली, भोजपुरी और अवधी समाज था। इसके बावजूद नेपाल-भारत के बीच नक्शा विवाद उठ खड़ा हुआ है। नेपाली अधिकारियों का कहना है कि ये तीनों क्षेत्र कुल 370 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हैं। लिपुलेख पास भारतीय राज्य उत्तराखंड को चीन के तिब्बत क्षेत्र से जोड़ता है।
दोनों के बीच इस विवाद का लाभ चीन उठाना चाहता है। यही कारण है कि वो नेपाल को हवा दे रहा है। नेपाल की सत्ताधारी पार्टी अपने राजनीतिक स्वार्थों और सत्ता में बने रहने के लिए चीन की चाल को समझते हुए भी इस विवाद को तूल दे रहा है।
दुनिया की कोई ताकत इसे तोड़ नहीं सकती
इस बची भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रोटी-बेटी वाले रिश्ते का हवाला देते हुए बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि भारत-नेपाल रिश्ते को दुनिया की कोई ताकत तोड़ नहीं सकती। उत्तराखंड में आयोजित जन संवाद रैली में उन्होंने कहा कि लिपुलेख रोड बनाने को लेकर हमारे बीच यदि कोई गलतफहमी है, तो उसे बातचीत के जरिए सुलझाएंगे। दोनों देशों के बीच असाधारण संबंध हैं। हमारे बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है। दुनिया की कोई ताकत इसे तोड़ नहीं सकती है।
हमारे यहां गोरखा रेजिमेंट ने समय समय पर अपने शौर्य का परिचय दिया है। उस रेजिमेंट का उद्घोष जय महाकाली आयो री गोरखाली है। महाकाली तो सब जगह विद्यमान हैं। महाकाली के भक्त तो उत्तराखंड के गांव-गांव में मिल जाते हैं तो कैसे भारत और नेपाल का रिश्ता यह टूट सकता है।
मैं विश्वास के साथ कहना चाहता हूं, भारत में रहने वाले लोगों के मन में कभी भी नेपाल को लेकर कटुता पैदा हो ही नहीं सकती है।
विवादित नक्शा पर ऊपरी सदन में मतदान आज
दूसरी तर। नेपाली संसद के ऊपरी सदन में विवादित नक्शे पर मंजूरी हासिल करने के लिए नेशनल असेंबली सेक्रेटरी राजेंद्र फुयाल ने संविधान संशोधन विधेयक रविवार को पेश किया था। नेशनल असेंबली की दूसरी बैठक में कानून मंत्री शिव माया तुंबहंगफे ने चर्चा के लिए यह प्रस्ताव रखा। चर्चा के बाद इस प्रस्ताव का सर्वसम्मति से समर्थन किया गया। मंगलवार को इस विधेयक पर वोटिंग होगी। तय है कि चीन समर्थित वामपंथी सरकार भारत से पुराने रिश्तों को ताक पर रखकर विवाद को बढ़ाने पर आमदा है।
बता दें कि नेपाल की निचली सदन पहले ही इस विधेयक को बहुमत से पारित कर चुकी है। भारत के साथ सीमा गतिरोध के बीच इस नए नक्शे में नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र में दिखाया है। भारत सरकार ने नेपाल के इस रुख पर पहले ही सख्त ऐतराज जता चुकी है।
खतरनाक मोड़ पर गहरे संबंध
भारत-नेपाल मामलों के रणनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि नेपाल की घरेलू राजनीति में हलचल, चीनी मदद और भारत के साथ उलझी आकांक्षाओं ने दोनों के बीच नए विवाद को जन्म दिया है। इस बीच नेपाल ने जो कदम उठाए हैं वो चौंकाने वाले हैं।
बाहर आना मुश्किल
वर्ष 2008 से 2011 तक नेपाल में भारत के राजदूत रहे राकेश सूद का कहना है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद पहली बार खतरनाक मोड़ पर पहुंचा है। इतिहास में कभी भी इतने बड़े पैमाने पर तनाव का उदाहरण नहीं हैं। भारत को काठमांडू से नवंबर तक का समय मिलना चाहिए। अभी तक हमने कम संवेदनशील होने का परिचय दिया है। अब नेपाल ने इस मसले को वहां तक पहुंचा दिया है जहां से बाहर आना मुश्किल है।
भारत विरोधी नेपाली राष्ट्रवाद
नेपाल में ही भारत के राजदूत रहे पूर्व राजनयिक रंजीत राय का कहना है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने घरेलू मोर्चे पर अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए नए नक्शे पर आगे बढ़ने का फैसला लिया है। भारत विरोधी नेपाली राष्ट्रवाद का कार्ड खेलने से उन्हें आगामी चुनाव जीतने में मदद मिलने की पूरी उम्मीद है। चूंकि घरेलू मोर्चे पर उनकी स्थिति बहुत कमजोर है और कोरोना को निपटने में असफल होने की वजह से उनके प्रति लोगों में असंतोष है। इसलिए वो अपने हित में नेपाली राष्ट्रवाद को भारत के खिलाफ तूल देना चाहते हैं। ताकि चीन का समर्थन हासिल कर सत्ता में दोबारा वापसी सुनिश्चित कर सकें।
पुराने संबंधों की परवाह नहीं
वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के अमेरिटस प्रोफेसर नक्शा विवाद के पीछे चीन का हाथ मानते हैं। उनका मानना है कि इस मुद्दे पर उसने नेपाल को भड़काया है। नेपाल ने भी यह संदेश दिया है कि वह अपने स्टैंड पर कायम रहेगा। फिर यह ओली का नया नेपाल है। इसकी 65 फीसदी आबादी युवा है। उसे पुराने संबंधों की परवाह नहीं है। नेपाल की सरकार से युवाओं की अपनी अपेक्षाएं हैं। इसलिए हमें संवेदनशीलता, चातुर्य और समझदारी का परिचय देना देना चाहिए।