लेखक : मोहम्मद अली
आपकी खुशियां उम्र की मोहताज नहीं हैं। बुढ़ापे में बीमारी, अकेलापन और बेबसी क्या होती है, अमेरिका में रहने वाले तमाम भारतीय बुजुर्गों को पता ही नहीं है। क्योंकि, उम्र के इस पड़ाव में वे किसी मजबूरी में वृद्धाश्रम नहीं जाते, बल्कि खुशी से ओल्ड एज क्लब का हिस्सा बनकर पूरी जिंदादिली से जीते हैं।
8 साल की सुल्ताना जब पहली बार बेटी के साथ कोलकाता से अमेरिका आईं तो उन्हें लग रहा था कि पराये देश में पराये लोगों के बीच कैसे रहूंगी? मुझे तो अंग्रेजी भी नहीं आती। इस डर से कई महीनों तक तो वे घर से भी नहीं निकलीं। फिर उन्होंने पति के साथ ‘देसी सीनियर सेंटर’ जाना शुरू किया। यहां उन्हें अपने जैसे कई और बुजुर्ग मिले। इनकी लाइफस्टाइल ने उनकी जिंदगी ही बदल दी।
शाकाहारी भारतीय खाना मिलता है
इस गेटेड कम्युनिटी में हर रोज बुजुर्गों की ध्यान और योगा क्लास होती है। लंच और डिनर में शाकाहारी भारतीय खाना मिलता है। अलग-अलग धर्म के लोगों के लिए अलग-अलग प्रार्थना स्थल हैं। यहां रोज भजन होते हैं। मनोरंजन के लिए 20 भारतीय चैनल और हाई स्पीड इंटरनेट है। बॉलीवुड फिल्में चलाई जाती हैं। बुजुर्गों को कई तरह के गेम्स खिलाए जाते हैं। एक दूसरे के बर्थडे मिलजुलकर मनाते हैं।
इनकी दोस्ती इतनी गहरी है कि किस्से-कहानियों और ठहाकों में वक्त कब निकल जाता है, पता ही नहीं चलता। होली, दीवाली जैसे त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। हर तरह की इमरजेंसी सेवाएं उपलब्ध हैं। यहां बुजुर्गों को भाषा के साथ-साथ कई आधुनिक गैजेट्स के बारे में भी सिखाया जाता है।
कैलिफोर्निया-वॉशिंगटन में सबसे ज्यादा सीनियर होम्स खुले
यह नजारा किसी एक देसी रिटायरमेंट होम का नहीं है, पिछले कुछ वर्षों में यहां ऐसे होम्स की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसकी बड़ी वजह यह है कि अमेरिका की कुल आबादी में भारतीयों की हिस्सेदारी 1.3% तक पहुंच गई है। इसी के साथ बुजुर्गों की भी संख्या बढ़ी है।
कैलिफोर्निया और वाशिंगटन की उन जगहों पर सबसे ज्यादा सीनियर होम्स खुले हैं, जहां सॉफ्टवेयर कंपनियों के हेड क्वार्टर हैं और भारतीय पेशेवरों की बड़ी आबादी रहती है। हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि यहां सिर्फ भारतीय ही रहते हैं। हाल ही में खुले एक नए सेंटर में 150 से ज्यादा बांग्लादेशी बुजुर्ग रह रहे हैं। इनमें से कई कम आय वर्ग वाले हैं।
देसी सीनियर सेंटर के लिए सरकार ने दिया पैसा
2008 में भारतीय-अमेरिकी डॉक्टरों ने अपने बुजुर्ग माता-पिता की देखरेख के लिए न्यूयॉर्क में पहला देसी सीनियर सेंटर खोला था। अब इनकी संख्या 100 से ज्यादा हो चुकी है, जिनमें कई देशों के करीब 20 हजार बुजुर्ग रहते हैं। इनसे कोई चार्ज नहीं लिया जाता यानी सारी सुविधाएं फ्री हैं।
देसी सीनियर सेंटर के इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए न्यूयॉर्क सिटी काउंसिल ने एक लाख डॉलर (करीब 80 लाख रु.) दिए थे। बाकी खर्च की राशि इससे जुड़े सदस्यों व अन्य लोगों से मिलती है। यहां कई रिटायरमेंट होम्स हैं। तमाम प्राइवेट हैं, जहां एक बेडरूम का मासिक किराया 2.5-5 हजार डॉलर (करीब 2-4 लाख रु.) तक है।