लेखक- डॉक्टर अरविन्द जैन
वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती
हम आह भी भरते तो हो जाते बदनाम !
तत्काल में यह घटना भी आत्मसात करने योग्य नहीं हैं जिसमे अटल जी की शवयात्रा या शोकसभा में जितने भी धुर विरोधी रहे या उनके साथी सबने उनको श्रन्धांजलि दी और गुणगान गाये। किसी का जन्म, मृत्यु निश्चित नहीं होती और पूर्व निर्धारित कार्यक्रम किसी भी का यही निश्चित होता हैं वह किन्ही अपरिहार्य कारणों से परिवर्तनशील हो जाता हैं वरन संसार का कार्यक्रम अनवरत चलता हैं। किसी के यहाँ दुःख और किसी के यहाँ सुख होता रहता हैं।
राजा राणा छत्रपति हाथिन के असवार,
मरना सबकोएक दिन अपनी अपनी वार !
मृत्यु निश्चित हैं पर कब कहना कैसे होना। अटल जी वर्षों से बीमार होने के नाते शैय्या पर पड़े थे और उनके बारे में अनेकों भ्रांतियां थी। और दूसरे शब्दों में उन्हें कष्टों से मुक्ति मिल गयी और उनका यशस्वी जीवन का अंत बहुत आत्मीयता के साथ हुआ। जितनी प्रतिष्ठा, यश उनको मिला व बहुत बिरले लोगों को मिलता। वह भी जब वो सक्रीय राजनीती से सन्यास ले चुके थे और अचेत अवस्था में होने से निर्विवाद रहे और उनको मान अपमान का दंश नहीं झेलना पड़ा जैसे आडवाणी, जोशी जैसा।
खैर मृत्यु अटल हैं और उनकी क्या सबकी निश्चित हैं। जो जन्मा हैं उसकी मृत्यु निश्चित। दूसरी तरफ पाकिस्तान के नवनियुक्त प्रधान मंत्री इमरान खान द्वारा आयोजित कार्यक्रम में पंजाब के मंत्री, पूर्व क्रिकेटर, मित्र का प्रक्रिया के अंतरगत उनके कार्यक्रम में उपस्थित होकर और सेना प्रमुख से गले मिलना इतनी सामान्य प्रक्रिया को सागर बून्द समय जैसा देश में भूचाल आ गया और देश द्रोही और उनका शिर कलम करने का एलान और उनपर मुकदमा चलानाऔर भारतीय जनता पार्टी द्वारा तिल का ताड़ बना देना उनकी संकीर्ण मानसिकता का घोतक हैं।
किसी एक तर्क की यहाँ अटल जी मृत्यु वहां उनका जाना, एक बात बताये की क्या अब वो मानसिकता हमारे समाज में रह गयी हैं की यदि कभी मोहल्ले में किसी की मर्त्यु होती थी तो पूरा मोहल्ला शोक ग्रस्त होता था, आज तो मृत्यु वाले घर में भी म्यूट पर टी वी चलती हैं। अब वो संवेदना किसके पास रही। कौन भूखा रहता हैं, कौन दुखी होता हैं मात्र श्मशान वैराग्य रह गया हैं। कौन को किससे से कितनी हमदर्दी। परिवार में नहीं रही फिर दोस्त, रिश्तेदारों से आज के समय यह अपेक्षा करना बेमानी हैं।
यदि पूर्व इतिहास देखे तो आज भी करोड़ों पाकिस्तान के निवासियों की हिंदुस्तान में नाते रिश्तेदारियां हैं और वे सम्बन्ध कोई नहीं तोड़ सकता। जिनका खुनी रिश्ता हैं, रिश्तेदारी हैं, और एक बात ध्यान रखना योग्य होगा की चिकित्सा /सांस्कृतिक समारोह /खेल आदि ऐसी व्यवस्था हैं जिसे आप सीमा में नहीं बांध सकते। हां सिद्धू नियमानुसार उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए उस कार्यक्रम में गए और वहां जो तात्कालिक स्थिति थी उसके अनुसार जो भी अवसर मिला उसका उपयोग किया। और उन्होंने एक प्रकार से आपसी संबंधों में कटुता कम कर आपसी प्रेम चारा बढ़ाने का प्रयास किया। यदि मान लीजिये हमारे देश में अटल जी का देहावसान न होता तो क्या भारत सरकार कोई ऐसा निर्यण ले सकता था की वह अपना प्रतिनिधि भी भेज सकता था, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
एक बार दो भिखक्षु जिसमे एक वृद्ध और एक युवा था, अपने गुरु के पास जा रहे थे, वे नदी के किनारे से जा रहे थे की एक युवती नदी में डूबने लगी इस समय वृद्ध ने सोचा की यदि मैंने इसे बचाया तो मेरा धरम भ्र्ष्ट हो जायेगा और इतने में युवने नदी में डुबकी लगाई और उस युवती बचाया और किनारे बैठाया और फिर दोनों चल पड़े। रिश्ते भर वृद्ध युवा को कोसता रहा और कथा रहा की तुम्हारा धरम भ्रष्ट हो गया। दोनों बुद्धके पास पहुंचे और वृद्ध ने पूरी बात बताई और कहा युवा का धरम भ्रष्ट हो गया। इस पर बुद्ध ने वृद्ध से कहा की युवा ने तो अपना काम करके भूल गया और तुम अभी तक उससे चिपटे हुए हो। इस प्रकार सिद्धू पाकिस्तान से वापिस आ गए पर धुआँ अभी भी धूंधा रहा हैं !
भारतीय राजनीती का चिंतन सदैव नैतिक मूलयपरक व दूसरों को प्रेरणा प्रदान करने के साथ स्वयं अनुशासन में बध्ध होने का रहा हैं। भवभूति ने कहा हैं —
स्नेहम दयाम चासौख्यं च यदि व जानकीमपि !
आराधनाया लोकस्य मुंचते नास्ति में व्यथा !
अर्थात लोक की आराधना के लिए मुझे स्नेह, दया, सुख और जानकी को भी छोड़ना पड़े तो मुझे व्यथा नहीं होगी। अटल जी ने भी कहा था की दुशमन बदल सकते हैं पर पडोसी नहीं। क्या आज हमारा लक्ष्य शांति स्थापित करने का नहीं हैं ?क्या शांति प्रधानसेवक या उनके मंत्री, सचिव से ही आएँगी ?क्या शांति स्थापित करने का ठेका सरकार ने ही लिया हैं ?क्या सिद्धू भारतीय जनता पार्टी में रहकर जाते तो इतनी आलोचना होती ?या की जाती। भारतीय जनता पार्टी और उनके समर्थक इतना दुःसाहस कर रहे हैं जो प्रामाणिक हैं की उनका गला काट कर लाने वाले को पांच लाख रुपये दिए जायेंगे क्या यह अपराध की श्रेणी में नहीं आता?
हर सिक्के को दो पहलु हैं। पर इतनी सी बात का इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा करना कहाँ की नीति या मानसिकता हैं। बात आयी और गयी। अब क्या कर सकते हैं। क्या वह बिना वीसा के गया ?क्या किसी दोस्त की ख़ुशी में भाग लेना अपराध हैं? आज दुश्मनी हैं कल दोस्ती होने की भी संभावना हैं। दुनिया संभावना पर ही चलती हैं। आशा से आसमान टिका हैं।