नई दिल्ली। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) सुप्रीमो शरद पवार ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति की जाति उसके जन्म से ही होती है, और उसे बदला नहीं जा सकता। उन्होंने कहा है कि, “मेरी जाति पूरी दुनिया जानती है…मैंने (वायरल हो रहे) सर्टिफिकेट्स को देखा है, एक मेरा स्कूल छोड़ने वाला प्रमाण पत्र है और यह महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी के हाई स्कूल से जुड़ा है। यह सर्टिफिकेट असली है। उस पर लिखी हुई बातें सही हैं। इसके अलावा एक अंग्रेजी में लिखा हुआ डॉक्यूमेंट जारी हुआ है जिसमें मेरी जाति को ओबीसी बताया गया है।“ उन्होंने कहा कि, “मैं ओबीसी का पूरा सम्मान करता हूं लेकिन मैं अपनी जाति छिपा नहीं सकता जो मुझे जन्म से मिली है।”
शरद पवार ने यह बातें सोशल मीडिया पर वायरल हुए उन दो दस्तावेजों के सिलसिले में कही हैं, जिनमें शरद पवार को ओबीसी बताया गया है। शरद पवार ने कहा कि वह जाति का इस्तेमाल राजनीति के लिए नहीं करते हैं और ऐसा कभी नहीं करेंगे, लेकिन वह मराठा समुदाय के मुद्दों को हल करने में पूरा प्रयास करते रहेंगे। इस सवाल पर कि क्या आरक्षण को लेकर ओबीसी और मराठा समुदाय के बीच दुश्मनी बढ़ रही है, शरद पवार ने कहा कि “दोनों समुदायों के बीच ऐसा कोई मुद्दा नहीं है।” उन्होंने कहा कि, “मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि ओबीसी और मराठों के बीच कोई विवाद नहीं है। हालांकि कुछ लोग ऐसा माहौल जरूर बनाना चाहते हैं।
वायरल हो रहे दस्तावेजों को लेकर शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने भी कहा है कि यह राजनीतिक षडयंत्र है। बारामती से एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने कहा कि जाति प्रमाण पत्र के दावे गलत हैं और सर्टिफिकेट्स फर्जी हैं। उन्होंने कहा कि, “ये शरद पवार को बदनाम करने की साजिश है, यह किसी की बचकानी हरकत है..यह सोचना चाहिए कि जब शरद पवार 10वीं कक्षा में पढ़ते थे तब क्या इंग्लिश मीडियम स्कूल थे?”
गौरतलब है कि शरद पवार का जन्म 1942 में हुआ था और उन्होंने बारामती में मराठी भाषी स्कूल से स्कूली शिक्षा ली थी। बाद में पुणे के अंग्रेजी माध्यम कॉलेज में गए थे। वे 1955-57 के बीच स्कूल से पास आउट हुए होंगे। यहां रोचक है कि उस समय ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) अस्तित्व में ही नहीं था। संविधान में सिर्फ अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को मान्यता दी गई थी। ओबीसी का जिक्र तो विश्वनाथ प्रताप सिंह के शासन में 80 के दशक में पहली बार मंडल आयोग की रिपोर्ट से सामने आया था।
तार्किक तौर पर देखें तो इस तरह शरद पवार की जाति को ओबीसी बताना हास्यास्पद लगता है। इसके अलावा शरद पवार तो खुद को गर्व के साथ ‘मी मर्द मराठा’ (मैं एक मराठा पुरुष हूं) कहते रहे हैं। ऐसे में शरद पवार खुद को ओबीसी के तौर पर कैसे स्कूल में रजिस्टर करा सकते हैं।
तो सवाल है कि आखिर शरद पवार का फर्जी सर्टिफिकेट क्यों वायरल हो रहा है? मोटे तौर पर देखें तो इसकी जड़े महाराष्ट्र में चल रहे मराठा आरक्षण आंदोलन से जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं। इस आंदोलन को संभालने में मौजूदा शिंदे सरकार ने आग पर चलने जैसा काम किया है। शिंदे सरकार ने आंदोलनरत मराठों को कुनबी जाति के प्रमाणपत्र देने का वायदा किया है।
कुनबी दरअसल मराठों की ही एक उपजाति है, जो परंपरागत तौर पर खेती-किसानी से जुड़े होते हैं। लेकिन मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में वे मराठा दिखते हुए भी ओबीसी आरक्षण का लाभ लेना चाहते हैं। संभवत: इसी की तरफ इशारा करते हुए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा था, “वे अपनी बेटी की शादी के वक्त तो मराठा हो जाते हैं, लेकिन नौकरियों में फायदे के लिए ओबीसी बनने से परहेज नहीं करते।”
शरद पवार को ओबीसी बनाने के पीछे एक अन्य राजनीतिक कारण भी माना जा सकता है। 80 के दशक के मंडल आंदोलन के दौरान मराठों ने पहली बार ओबीसी श्रेणी में आरक्षण की मांग की थी, तो उस समय शरद पवार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने इस मांग को खारिज कर दिया था। अलबत्ता, उन्होंने 52 छोटी और महत्वहीन जातियों को ओबीसी में शामिल कर लिया था। इसीलिए जहां ओबीसी इसके लिए उन्हें सबसे महान ओबीसी नेता के रूप में तारीफें कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग इसी तथ्य को राजनीतिक शरारत करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
महाराष्ट्र के मतदाताओं में मराठों की आबादी करीब 33 फीसदी है। लेकिन सारे मराठा एक जैसे नहीं हैं। मराठों के करीब 96 कुल हैं। इनमें से 6 को राजशाही कुल माना जाता है, जैसे बड़ौदा के गायकवाड, ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, भोसले, देशमुख और जाधव। लेकिन ऐसे भी कुल हैं, जिनकी वंशावली राजस्थान के चौहान और सिसोदिया से मिलती है। रोचक तथ्य यह है कि वर्तमान समय के महाराष्ट्र में सबसे मजबूत नेता माने जाने वाले शरद पवार इनमें से किसी भी वंश से नहीं हैं। वे एक मामूली मराठा किसान परिवार से आते हैं और शायद इसीलिए वे खुद को किसान ही कहते रहे हैं।
संभवत: यही कारण हो सकता है कि एस वी चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण और विलासराव देशमुख सरीखे अन्य मराठा नेताओँ से उनकी ज्यादा बनती नहीं है। शरद पवार की राजनीति हमेशा कुलीन मराठा को राजनीति में या सरकारी स्तर पर उच्च पद पर आसीन होने से रोकने वाली रही है। लेकिन वे इसमें हमेशा कामयाब भी नहीं हुए हैं।
शरद पवार को ओबीसी स्थापित करने की शरारत के पीछे वह राजनीतिक बहस भी हो सकती है जिसमें देश की आबादी में हिस्सेदारी के मुताबिक हक देने का तर्क दिया जा रहा है और जातीय जनगणना को बड़े राजनीतिक मुद्दे के तौर पर सामने रखा जा रहा है।