बुज़ुर्गों ने कहा है कि अगर किसी के बारे में जानना हो तो यह देखो कि उसका स्टाफ कितना पुराना है और उसके दोस्त कितने पुराने हैं। फिल्म इंडस्ट्री में मैंने दोस्ती की मिसाल अगर देखी है तो वह है ऋषि कपूर और राहुल रवैल की दोस्ती। हालांकि ऋषि कपूर अब इस दुनिया में नहीं हैं, मगर इन दोनों की दोस्ती को आज तक याद किया जाता है। राहुल जी और ऋषि कपूर पिछले 33 सालों से मेरे भी बेहद करीबी दोस्त रहे।
राहुल और ऋषि कपूर का पूरी ज़िंदगी भर यही रुटीन रहा कि सुबह उठते ही सबसे पहले वो एक-दूसरे को फ़ोन करते थे। हालांकि उनके मिज़ाज में ज़मीन-आसमान का फ़र्क़ था। दोनों ज़्यादातर एक-दूसरे की किसी भी बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखते थे, दोनों में ज़्यादातर इतनी बहस होती थी कि कई बार दोनों में से एक फ़ोन रख देता था। विपरीत विचार होने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कभी फ़र्क़ नहीं आया।
राहुल जी ने जब डायरेक्शन भी शुरू किया तो अपनी पहली फिल्म ‘गुनेहगार’ ऋषि कपूर के साथ ही बनाई। यह फिल्म हालांकि चली नहीं, पर दोनों की दोस्ती चलती रही। इनकी दोस्ती के बहुत किस्से हैं। राहुल जी के बेटे भरत की सगाई थी, लेकिन ऋषि कपूर नहीं आ पाए। वो गोवा में डेविड धवन की फिल्म ‘चश्मे बद्दूर’ की शूटिंग में व्यस्त थे। बस, इससे राहुल जी नाराज़ हो गए और ऋषि कपूर से बात करना बंद कर दिया। ऋषि कपूर ने बहुत कोशिश की। बहुत से दोस्तों ने भी राहुल जी को समझाया, पर वे नहीं माने।
हम सब करीबी लोग ऋषि कपूर को चिंटू जी के नाम से बुलाते थे। चिंटू जी का मुझे फ़ोन आया और बोले कि रूमी, तू अपने घर पर डिनर पार्टी रख। सब दोस्तों को बुला, राहुल को बुला और मुझे भी बुला, मगर अगर राहुल पूछें कि चिंटू आ रहा है तो बोलना कि उसने मना कर दिया है। इसकी वजह पूछने पर उन्होंने बताया, यार वो मुझसे नाराज़ हैं। जब तेरे घर पर हमारा आमना-सामना होगा तो मैं उससे वहीं माफ़ी मांग लूंगा और हमारा पैचअप हो जाएगा।
बहुत मिस कर रहा हूं मैं उसको। मैंने डिनर रखा। मुझे याद है कि सबसे पहले ऋषि कपूरजी आए थे। वो राहुल जी से फिर से दोस्ती करने के लिए बहुत बेचैन थे। उसके बाद बोनी कपूर साहब, टूटू शर्मा, डेविड धवन, साजिद नाडियाडवाला, श्रीदेवीजी सहित मेरे बीस-पच्चीस दोस्त आ गए थे। मेरे हॉल के बाहर टेरेस पर हम सब गप्पे लगाने लगे। जैसे ही मेरे घर की घंटी बजती तो चिंटू जी सबसे पहले मुड़कर मेन डोर की ओर देखते थे कि राहुल आया या नहीं। आखिरकार राहुल जी आए। वे जैसे ही आए, चिंटू जी उनको रिसीव करने गए।
चिंटू जी को देखकर वे गुस्से में मेरे राइटिंग रूम में चले गए। चिंटू जी राइटिंग रूम में आए तो वो दूसरे दरवाज़े से निकल गए। फिर बेडरूम में चले गए। फिर वहां चिंटू जी गए तो वहां से राहुल जी घर की टेरेस पर आ गए। पार्टी में मौजूद सभी लोग हैरान होकर देख रहे थे कि चिंटू जी, राहुल जी के पीछे-पीछे घूम रहे हैं और राहुल जी उनसे बात ही करना नहीं चाह रहे। थोड़ी देर बाद राहुल जी मुझसे बोले कि तुमने मुझे बताया नहीं कि चिंटू भी आ रहा है, मैं तुमसे नाराज़ हूं। मैंने भी कहा कि अब जाने भी दीजिए राहुल जी तो वो गुस्से में आकर हॉल में चले गए और वहां जाकर मेरी छोटी बेटी से बात करने लगे। चिंटू जी भी हॉल में गए, मैं भी गया और मेरी वाइफ भी गई।
जिस सोफे पर राहुल जी बैठे थे, वो काफी नीचा था तो राहुल जी उठ नहीं पाए। चिंटू जी भी तेज़ी से आए और उनके पास में बैठ गए और उनको उठने नहीं दिया। मैं भी सामने आकर बैठ गया। चिंटू जी ने कहा कि यार रूमी, समझा राहुल को। पूरी ज़िंदगी साथ में गुज़ारी है। अब ये बुढ़ापे में आकर एक-दूसरे से क्या रूठना? किसी का भी बुलावा आ सकता है और जो भी पहले मर गया, उसे ये ग़म रहेगा कि बुढ़ापे में जाकर दोस्ती तोड़ी थी। इस पर राहुल जी ने मुझसे कहा कि ये देखो, इमोशनल कर रहा है मुझे। इस पर मैंने भी उनसे कह दिया कि- हां, ये आपसे मोहब्बत करते हैं, इसीलिए इमोशनल कर रहे हैं। फिर वहां पर ऋषि कपूर और राहुल रवैल में पैचअप हो गया।
ऋषि कपूर जैसा इतना बड़ा स्टार, एक स्टार का पिता, स्टार का बेटा, लेकिन दोस्ती को कितनी अहमियत दी। इसी बात पर वसीम बरेलवी का शेर है- “शर्तें लगाई नहीं जातीं, दोस्ती के साथ कीजिए मुझे क़ुबूल, मेरी हर कमी के साथ।’ और यही चीज़ राहुल जी के पिता एचएस रवैल के साथ भी हुई थी, जब वो लाहौर से आए थे। वो भी तीन दोस्त थे। एक सुंदर जी थे कॉमेडियन, एक रिड़कू जी और एक स्वयं एचएस रवैल जी।
रिड़कू जी का कद ढाई-तीन फ़ीट था। वे बौने थे और उनका दुनिया में कोई नहीं था। तो सगे भाई की तरह रवैल साहब के घर में ही रहे। राहुल जी और उनके सभी परिजन उनसे बेहद प्यार करते थे। राहुल जी उनको चाचाजी बुलाते थे। रिड़कू जी एचएस रवैल जी की फिल्मों में एक्टिंग भी करते थे।
राहुल जी ने मुझे बताया था कि उनको एक बीमारी थी कि किसी दिन सुबह उठते थे तो उन्हें दिखना बंद हो जाता था, किसी दिन सुबह उठते थे तो उनकी बोलती बंद हो जाती थी, किसी दिन उन्हें सुनाई देना बंद हो जाता था। मैंने राहुल जी से कहा कि राहुल जी ये तो बड़ा मजेदार कैरेक्टर है। इनको तो फिल्म में यूज़ करना चाहिए। जब मैं ‘मुझसे शादी करोगी’ का स्क्रीनप्ले लिखने बैठा तो मैंने ये कैरेक्टर उसमें लिख दिया। साजिद और डेविड साहब को भी पसंद आ गया।
कादर खान को सुनाया वो भी खुश हो गए। पर एक दिन मेरा छोटा भाई अमान जाफरी जो राहुल रवैल की ‘जो बोले सो निहाल’ लिख रहा था, ने कहा कि यही कैरेक्टर तो राहुल जी ने भी अपनी फिल्म ‘जो बोले सो निहाल’ में रख दिया है। जब मैंने इस बारे में साजिद और डेविड साहब को बताया तो उन्होंने कहा कि रिड़कू अंकल तो राहुल जी के हैं। पहला हक़ तो उनका ही है, पर तुम एक बार बात करके देख लो।
मैंने राहुल जी को फ़ोन किया और उनसे पूछा कि मुझे अमान ने बताया कि रिड़कू अंकल का कैरेक्टर आपने भी अपनी फिल्म में लिखा है और मैंने भी ‘मुझसे शादी करोगी’ में लिख दिया है। देखो, इतने साल तक न आपने लिखा और न मैंने। अब दोनों ने लिख दिया। अब क्या करें राहुल जी। मैंने यह भी कह दिया कि आप जैसा बोलेंगे, मैं वैसा ही करूंगा। राहुल जी ने पूछा कि तुम्हारी फिल्म में ये कैरेक्टर कहानी में मदद कर रहा है और स्क्रीनप्ले को आगे बढ़ा रहा है या नहीं? मैंने इस पर सहमति जताई तो वो बोले कि मैंने तो सिर्फ कॉमेडी ट्रैक डाला है।
इसलिए मैं अपनी मूवी से निकाल देता हूं। और इस तरह इतना बड़ा काम उन्होंने फ़ोन पर ही कर दिया। ये होती है दोस्ती और रिश्ते निभाने वाली बात। फिर ‘मुझसे शादी करोगी’ रिलीज़ हुई और पूरी दुनिया को पता है कि दुग्गल साहब का कैरेक्टर जो कादर खान जी ने निभाया था, वो सुपरहिट हुआ, मगर इसका क्रेडिट राहुल जी की भलमनसाहत को जाता है, मेरी और राहुल जी की दोस्ती को जाता है। इसी बात पर राहुल जी की निर्देशित और मेरे द्वारा लिखी ‘अंजाम’ फिल्म का ये गाना सुनिए – ‘बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है… कोई उसे ढूंढ़ के लाए ना।’ अपना ध्यान रखिए, खुश रहिए।