संभल के खिलाफ चौतरफा जंग, पुलिस-प्रशासन की कार्रवाई दुश्मनी जैसी

हर साल होली के बाद पहले मंगलवार को संभल कोतवाली के सामने एक सुरक्षा कवच लग जाता है। उस दिन शहर में ऐतिहासिक तीन दिवसीय “नेज़ा मेला” लगता है जिसका समापन हसनपुर रोड पर सैयद अब्दुल रहमान की दरगाह के पास होता है। इस मेले में ही संभल के उतार-चढ़ाव का पूरा इतिहास है। इस दौरान, वह अतीत अपनी नाटकीय पुनर्प्रस्तुति के साथ सामने आता है जिसमें ताजा और एकमात्र बदलाव यह है कि उत्तर प्रदेश सरकार अब स्क्रिप्ट में बदलाव चाहती है।

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संभल में हालात युद्धग्रस्त गाजा जैसे गंभीर भले न हों, पुलिसिया कार्रवाई इजरायली सैन्य अभियानों से प्रेरित जरूर लग सकती है। 24 नवंबर की गोलीबारी में चार युवकों की मौत के बाद प्रशासन ने यहां के बाशिंदों से कोई मुरव्वत नहीं बरती है। उत्पीड़न की शिकायतें जिस तरह बढ़ रही हैं, चर्चा है कि सूबे के मुख्यमंत्री संभल का ‘प्राचीन गौरव’ बहाल करने के लिए इतिहास को मिटाकर इसे बहुसंख्यक समुदाय के लिए एक और पवित्र शहर में तब्दील कर देना चाहते हैं। मुसलमानों को पलायन के लिए आतंकित करना शायद उस दिशा में पहला कदम हो।

मस्जिद सर्वे विवाद के बाद से ही पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए घर-घर छापेमारी कर रही है। अतिक्रमण के नाम पर मकान-दुकानें गिराए जा रहे हैं। आवास योजनाओं की पड़ताल हो रही है। लोगों के बिजली कनेक्शन, जमीन की रजिस्ट्रियां, दुकान पंजीकरण, जीएसटी रिटर्न और यहां तक ​​​​कि उनकी पेशेगत और राजनीतिक संबद्धता जांची जा रही है। कुल मिलाकर, लगता है कि सरकार स्थानीय मुस्लिम समुदाय के साथ अपने व्यवहार के जरिये सालार मसूद गाजी द्वारा 11वीं सदी में संभल पर किए गए हमले का बदला ले रही है।

सालार मसूद गाजी का क़िस्सा 

सालार मसूद गाजी को लेकर कई किस्से हैं। एक किस्सा संभल के तत्कालीन राजा जय सिंह द्वारा महमूद गजनवी के एक रिश्तेदार की बेटी के अपहरण का है। बदला लेने को गजनवी ने अपने सत्रह वर्षीय भतीजे सालार मसूद को संभल भेजा। युद्ध हुआ और पहले हमले में राजपूत जीते। संभल कोतवाली के सामने एक ध्वजस्तंभ हर साल इस घटना की याद दिलाता है। हालांकि एक हफ्ते बाद सालार ने दूसरा हमला किया और विजयी हुआ। तीन दिवसीय “नेज़ा मेला” उसी लड़ाई और सालार की जीत की याद में होता है। इन तीन दिनों में शहर की नवविवाहित दुल्हनें सज-धज कर सालार मसूद की स्मृति का सम्मान करती हैं।

संभल ऐतिहासिक शहर है जहां मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी रहती है जिसमें बड़ी संख्या में तुर्क, अफगान और सैय्यद हैं। हालांकि 24 नवंबर को पुलिसिया कार्रवाई में मृत या घायलों में से अधिकांश पसमांदा समुदाय से थे। यह भी आश्चर्य की ही बात है क्योंकि बीजेपी पसमांदा आबादी के लिए चिंता दिखाती है और उन्हें अपने वोट बैंक में बदलना चाहती है। बहरहाल, संभल के जिलाधिकारी, पुलिस कप्तान और डीएसपी का अब तक का रवैया बताता है कि सरकार ने उन्हें सालार मसूद गाजी की 11वीं सदी की उस जीत का बदला लेने की जिम्मेदारी सौंप रखी है। वे खुलेआम जिस भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, लगता है, खुद को कोई जनसेवक नहीं बल्कि धार्मिक योद्धा मान बैठे हैं।

पुलिसिया कार्रवाई

शाहिदा बेगम का आरोप है कि उनके परिवार के सदस्यों को पुलिस ने गलत तरीके से गिरफ्तार किया और उनके साथ धर्म के आधार पर अमानवीय व्यवहार किया। वह पूछती हैं कि पुलिस ने उन्हें इसलिए निशाना बनाया क्योंकि उन्होंने पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी का समर्थन किया था? उनके साथ “बेरहमी से मारपीट की गई और धार्मिक घृणा से भरी भाषा का इस्तेमाल किया गया।

क्या लोकतंत्र ऐसा ही होता है?” मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी की सांसद रुचि वीरा का दावा है कि “प्रशासन लोगों पर अत्याचार कर रहा है और हमें पीड़ितों से मिलने नहीं दे रहा है। यह अमानवीय और अलोकतांत्रिक है।”

24 नवंबर को संभल में हुई हिंसा के बाद पुलिस ने पचास से ज्यादा गिरफ्तारियां की हैं। इनके परिवारों का दावा है कि पुलिस ने न सिर्फ उनके घरों में घुसकर तोड़फोड़ की, उन लोगों को भी निशाना बनाया जिनका घटना से कोई संबंध नहीं था। एसपी और डीएसपी की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। एक महिला ने नाम न बताते हुए कहा कि एसपी-डीएसपी धार्मिक पूर्वाग्रह के आधार पर काम कर रहे हैं- “डीएसपी तो गदा लेकर शहर में घूम रहा है, उनके साथ दिख रहा है जो इन सब में भागीदार हैं और जो भी बोलने की हिम्मत करता है, उसे निशाना बना रहा है।”

पुलिस ने कथित तौर पर पथराव और ऑन-ड्यूटी अधिकारियों को निशाना बनाने के आरोप में लगभग 55 लोग हिरासत में लिए हैं। संभल के पुलिस अधीक्षक कृष्ण कुमार बिश्नोई कहते हैं, “अब तक छह महिलाओं सहित 54 संदिग्ध गिरफ्तार हुए हैं जिन्होंने उस दिन छतों से पुलिस पर पथराव किया था। हिंसा में शामिल 91 और अपराधी संभल पुलिस के रडार पर हैं। वे दूसरे राज्यों में छुपे हैं या आसपास के जिलों में रिश्तेदारों के साथ रह रहे हैं। हम गिरफ्तारी तेज करने को गैर-जमानती वारंट के लिए अदालत जाएंगे, किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा।”

पुलिसिया कार्रवाई ऐसी, मानो कोई दुश्मनी हो। संभल के सांसद जियाउर्रहमान बर्क के खिलाफ कार्रवाई से तो यही लगता है। रहमान का दावा है कि घटना वाले दिन वह बेंगलुरु में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक में थे। संभल में न होते हुए भी उन्हें आरोपी बनाया गया और प्रशासन ने उनका मकान तोड़ने का नोटिस जारी कर दिया। उस अवधि का बिजली बिल और जुर्माना थमाया गया जब शायद संभल में कोई बिजली स्टेशन भी नहीं था। जाहिर है इसके पीछे राजनीतिक कारण हैं।

मंदिर, खुदाई और राजनीति

सुप्रीम कोर्ट ने संभल में जामा मस्जिद सर्वे से जुड़ी कार्रवाई पर अगले आदेश तक रोक लगाई है लेकिन प्रशासन चुप बैठने के मूड में नहीं दिखता। उन घरों में भी मंदिर तलाशे जा रहे जो वर्षों पहले हिन्दू परिवारों ने मुसलमानों को बेच दिए थे। प्रशासन ने खग्गू सराय मोहल्ले में ऐसा मंदिर मिलने का दावा भी किया। दावा है कि जिस घर में मंदिर था, उसके मालिक 46 साल पहले डर से भाग गए थे। इसी तरह, लड़ाई सराय में एक कथित बावड़ी की खुदाई ने खासी हलचल मचा रखी है। मीडिया ने खुदाई की मिनट-दर-मिनट कवरेज परोसी और प्रशासन ने इसे ऐसे प्रस्तुत किया, मानो हड़प्पा युग की कलाकृतियां मिल गई हों।

सुप्रीम कोर्ट से संभल में एक बार फिर हस्तक्षेप की अपील की गई तो 10 जनवरी को शीर्ष अदालत ने कुएं के संबंध में संभल नगरपालिका अधिकारियों द्वारा कथित तौर पर जारी “नोटिस” पर रोक लगा दी। अदालत ने दो सप्ताह में स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा, हालांकि यूपी सरकार के अनुसार कुआं सरकारी भूमि पर था। यह हस्तक्षेप मस्जिद प्रबंधन समिति के दावे पर हुआ कि संभल नगरपालिका के नाम वाले एक पोस्टर/नोटिस में वह कुआं हरि मंदिर के एक कोने में होना बताया गया है।

इससे पूर्व, 12 दिसंबर 2024 को पूजा स्थल अधिनियम 1991 से संबंधित कई याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि संभल मामले सहित लंबित मुकदमों में निचली अदालतें प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित नहीं करेंगी जिसमें सर्वेक्षण का आदेश भी शामिल है। लेकिन लगता नहीं कि पुलिस, प्रशासन और सरकार यथास्थिति बनाए रखने के मूड में है। बुलडोजर खुदाई में बावड़ी मिलने के बाद स्थानीय हिन्दू समुदाय उस स्थान पर पूजा-पाठ की मांग करने लगा जिस पर मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया तो क्षेत्र में तनाव फैल गया। उधर, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने यह दावा करते हुए कि लखनऊ में मुख्यमंत्री के आधिकारिक आवास के नीचे एक शिवलिंग दबा हुआ है, इसकी खुदाई की मांग कर दी है।

अतिक्रमण विरोधी अभियान

संभल जिला प्रशासन ने शहर भर में एक व्यापक अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया है। सदर कोतवाली से महज 250 मीटर पर संभल जामा मस्जिद के पास स्थित “अकर्म मोचन कुएं” के आसपास खुदाई शुरू हुई। 19 दिसंबर को सांसद जियाउर रहमान बर्क के नवनिर्मित घर के बाहर ‘अनधिकृत’ सीढ़ियां बुलडोजर से ध्वस्त कर दी गईं। चौधरी सराय इलाके में सड़क किनारे बनी कई दुकानें भी अवैध अतिक्रमण बताकर तोड़ी गईं।

जनवरी के पहले हफ्ते में सुनहरी मस्जिद को अवैध अतिक्रमण का नोटिस मिला और इसकी देखभाल करने वालों ने ही मस्जिद का वह हिस्सा तोड़ दिया। 11 जनवरी को बुलडोजर लगाकर कुएं का रास्ता साफ करने के लिए एक दुकान गिराई गई और फिर प्रशासन ने मस्जिद के बाहर की 12 दुकानें ढहानी शुरू कर दीं जिनमें 11 से मस्जिद को किराया मिलता था। संभल एसडीएम के सामने प्रस्तुत दस्तावेज अपंजीकृत पाए गए। एसडीएम ने बाजार की सड़क की पैमाइश कर दुकानदारों को अतिक्रमण हटाने के लिए एक दिन का समय दिया।

जुबैद की करीब 30 वर्गमीटर जमीन को अवैध अतिक्रमण बताते हुए चारदीवारी तोड़ी गई। इसकी शिकायत संभल की एसडीएम वंदना मिश्रा से की गई जिन्होंने सदर कोतवाली के नई सराय इलाके में कथित अवैध अतिक्रमण को बुलडोज कराया था। पिछले तीन महीनों में शहर के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों दुकानें और घर ध्वस्त किए जा चुके हैं।

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