नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जाति-आधारित भेदभाव रोकने के लिए दायर जनहित याचिका पर ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जेल नियमावली जाति के आधार पर कामों का बंटवारा करके सीधे भेदभाव करती है। सफाई का काम सिर्फ निचली जाति के कैदियों को देना और खाना बनाने का काम ऊंची जाति वालों को देना आर्टिकल 15 का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जेल मैन्युअल के उन प्रावधानों को बदलने का निर्देश दिया है जो जेलों में जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जाति के आधार पर जेलों में काम का बंटवारा करना गलत है। जाति के आधार पर काम नहीं सौंपा जा सकता। कोर्ट ने कहा कि जेल नियमावली में साफ तौर पर भेदभाव किया गया है। सफाई का काम सिर्फ अनुसूचित जाति के कैदियों को सौंपा जाना चौंकाने वाला है। इसी तरह से खाना बनाने का काम दूसरी जाति के कैदियों को दिया गया है।
जेल मैन्युअल बदलाव का सभी राज्यों का निर्देश
सर्वोच्च कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जेल नियमावली में कैदियों की जाति से जुड़ी डिटेल्स जैसे संदर्भ असंवैधानिक हैं। इसके साथ ही सजायाफ्ता या विचाराधीन कैदियों के रजिस्टर से जाति का कॉलम हटा दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जातीय भेदभाव के मामले को खुद से संज्ञान में लिया। सभी राज्यों को इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट पेश करने को कहा है।
सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा कि जेल में सफाई का काम सिर्फ निचली जाति के कैदियों को ठीक नहीं है। ये आर्टिकल 15 का उल्लंघन है। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश तुरंत जेल मैन्युअल में बदलाव करें। इस फैसले के पालन संबंधी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश भी करें।