सामाजिक खर्च जैसा है वरिष्ठ नागरिकों की बचत योजनाओं पर मिला ब्याज

नई दिल्ली। छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों को लेकर अलग-अलग राय है। कुछ लोगों का कहना है कि दर बाजार के हिसाब से होनी चाहिए। ऐसा कहने वालों पर इन योजनाओं से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। असल में वरिष्ठ नागरिकों को बाजार आधारित दरों से छूट मिलनी चाहिए। इस वर्ग के पास कमाई का अन्य साधन नहीं होता। इन्हें मिलने वाले रिटर्न को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की तरह सामाजिक खर्च मानना चाहिए।

31 मार्च को वित्त मंत्रालय ने विभिन्न स्माल सेविंग स्कीम के लिए तिमाही ब्याज दरें घोषित कीं। कुछ घंटों बाद ही नई दरें वापस ले ली गई और पुरानी दरें बहाल कर दी गई। घोषित की गई दरों में पहले की तुलना में काफी ज्यादा कटौती की गई थी।

उदाहरण के लिए सीनियर सिटीजंस सेविंग स्कीम (एससीएसएस) में ब्याज दर 7.5 फीसदी से घटाकर 6.4 फीसदी कर दी गई थी। पीपीएफ में ब्याज दर 7.1 फीसद से घटाकर 6.5 फीसद कर दी गई थी। इनकम में कमी के लिहाज से देखें तो एससीएसएस के लिए यह 14.7 फीसद और पीपीएफ के लिए यह 10 फीसद था।

कुछ लोगों का कहना है कि दरों में कटौती का फैसला विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर किया गया है। वहीं प्रोफेशनल्स का कहना है कि ब्याज दरों को बाजार से जोड़ना और गिल्ट रेट के हिसाब से तय करना एक सामान्य बात है और ऐसा करना सही है।

मैं पहले भी कह चुका हूं कि हमें इस बात पर गौर करने की जरूरत है कि स्माल सेविंग है क्या और किस स्कीम का इस्तेमाल किस लिए किया जाना चाहिए। अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो रहीं है। ऐसे में ब्याज दरों में कटौती उन स्कीमों के लिए सही कही जा सकती है, जिनका इस्तेमाल रकम जमा करने के लिए किया जा रहा है। लेकिन सीनियर सिटीजंस सेविंग स्कीम के लिए छूट जरूर मिलनी चाहिए।

एससीएसएस का इस्तेमाल बचत करने वालों की वह पीढ़ी कर रही है जो कमाने और रकम जमा करने के दौर को काफी पहले पीछे छोड़ चुकी है। एससीएसएस का इस्तेमाल कंपाउंडिंग रिटर्न हासिल करने और रकम बनाने के लिए नहीं किया जा रहा है, बल्कि इसका इस्तेमाल इनकम के स्त्रोत के तौर पर किया जा रहा है। स्कीम के तहत रकम जमा करने के लिए 60 साल की उम्र होनी चाहिए और अधिकतम 15 लाख रुपये जमा किए जा सकते हैं। हालांकि, इस स्कीम के तहत ब्याज के तौर पर होने वाली इनकम पूरी तरह से टैक्स के दायरे में है।

मेरा मानना है कि न सिर्फ सीनियर सिटीजंस स्कीम पर अधिक ब्याज मिलना चाहिए, बल्कि इस स्कीम के तहत निवेश की सीमा को भी बढ़ाया जाना चाहिए। उनको मिलने वाले रिटर्न को डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के तहत सामाजिक खर्च के तौर पर लेना चाहिए। एससीएसएस के लिए सीमा बढ़ाकर 50 लाख होनी चाहिए और ब्याज दरों को ऑटोमेटिक रीसेटिंग से अलग करना चाहिए।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि ब्याज दरों को बाजार से जोड़ने की वकालत करने वाले ऐसे क्लास से आते हैं, जो ऐसी डिपॉजिट पर निर्भर नहीं हैं और इसे लागू करने वाले लोग ऐसे क्लास से हैं, जिनकी गारंटीड पेंशन महंगाई के साथ जीवनभर बढ़ती रहती है। अगर फैसला चुनाव के कारण वापस लिया गया है, तब भी अच्छी बात है। चुनाव ऐसे क्लास को खारिज करते हैं, जिनका कुछ भी दांव पर नहीं लगा है और राजनीतिक जमात को जरूरी मुद्दों पर गौर करने के लिए मजबूर करते हैं। सही मायने में चुनाव इसीलिए होते हैं।

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