लखनऊ। राजस्थान में खराब सियासी माहौल के बीच कांग्रेस ने सचिन पायलट से किनारा कर लिया है। उन्हें जहां प्रदेशाध्यक्ष पद से हटा दिया गया है। डिप्टी सीएम के पद से भी बर्खास्त कर दिया गया है। मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे जितिन प्रसाद राजस्थान के डिप्टी सीएम तथा प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए गए सचिन पायलट के साथ खड़े हैं। जितिन प्रसाद ने इस सियासी घटनाकम के बीच सचिन पायलट का समर्थन किया है।
जितिन ने ट्वीट किया- “सचिन पायलट सिर्फ मेरे साथ काम करने वाले नहीं बल्कि मेरे दोस्त भी हैं। इस बात को कोई नकार नहीं सकता कि उन्होंने पूरे समर्पण के साथ पार्टी के लिए काम किया है। उम्मीद करता हूं कि ये स्थिति जल्द सही हो जाएगी। ऐसी नौबत आई इससे दुखी भी हूं।”
लोकसभा चुनावों में उडी थी भाजपा में जाने की अफवाह
2019 लोकसभा चुनावों में के दौरान मार्च में बहुत तेजी से अफवाह उडी की जितिन प्रसाद भाजपा में शामिल होने वाले हैं। अफवाह इतनी बड़ी थी कि कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला को सामने आकर सफाई देनी पड़ी थी। हालांकि, जितिन प्रसाद उसके बाद भी सामने नहीं आए थे।
यूपी में प्रियंका के आने के बाद से है साइड लाइन हैं
सियासी हलकों में चर्चाएं हैं कि जितिन प्रसाद यूपी के कद्दावर नेता है, लेकिन जब से यूपी में प्रियंका गांधी का दखल बढ़ा है तब से ही वह साइड लाइन हो गए हैं। ऐसा उन्होंने कभी खुलकर जाहिर नहीं किया है। हालांकि, जानकारों का मानना है कि भाजपा इसका फायदा उठा सकती है।
कांग्रेस कद्दावर युवा नेता हैं जितिन
यूपीए 2 में जिस तरह से सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया की तूती बोलती थी उसी तरह यूपी में जितिन प्रसाद की भी तूती बोलती थी। केन्द्रीय मंत्री थे और राहुल गांधी के करीबी माने जाते रहे हैं। अब जब 5 महीने में ज्योतिरादित्य सिंधिया से लेकर सचिन पायलट ने पार्टी से बगावत कर दी है तो सचिन के समर्थन में जितिन प्रसाद के ट्वीट से अब सबकी निगाहें जितिन प्रसाद की ओर लग गई हैं। सब जानना चाहते हैं कि जितिन प्रसाद का आखिर अगला कदम क्या होगा।
लगातार तीन चुनाव हारे हैं जितिन प्रसाद
2004 में शाहजहांपुर से पहला लोकसभा चुनाव लड़ा। जीत कर मंत्री भी बने फिर 2009 में धौरहरा सीट बनी जिस पर जितिन प्रसाद चुनाव जीते और यूपीए 2 में मंत्री भी बने। फिर जितिन 2014 में लोकसभा चुनाव हार गए। 2017 में तिलहर विधानसभा से चुनाव लड़े, लेकिन यह चुनाव भी नहीं जीते। 2019 में धौरहरा से फिर लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार गए।