केंद्र सरकार इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है कि इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में राफेल डील, नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दे प्रभावी सिद्ध नहीं हो पाएंगे, इसलिए उसने इस ओर से अपना ध्यान पूरी तरह से हटाया हुआ है। इसके विपरीत मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अधिंकाश चुनावी सभाओं और रैलियों में राफेल को प्रमुखता से उठाते दिखते हैं। बात-बात पर नोटबंदी से हुए आमजन को नुक्सान और परेशानियों का जिक्र भी हो ही जाता है और रही बात जीएसटी की तो बताने से कोई कतराता नहीं है कि यदि सही ढंग से इसे लागू किया जाता तो देश के आमजन को इस कदर परेशानी उठाना नहीं पड़ती। बहरहाल यहां बात हम राफेल मामले की कर रहे हैं, जिसे लेकर मोदी सरकार ने आंखें मूंद ली हैं। वहीं दूसरी तरफ विपक्ष राफेल को चुनावी मुद्दा बनाने पर बल इसलिए भी दे रहा है क्योंकि सु्प्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को लेकर गंभीरता दिखाई और संपूर्ण जानकारी पेश करने को सरकार से कहा।
राफेल पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जहां डील पर सभी से राय मांगी वहीं विशेषज्ञों से विमानों की उपयोगिता जांचने जैसी बात भी कही। इससे सरकार खुद को बैकफुट पर पाती है, लेकिन उसके बाद भी मोदी सरकार का मानना है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह कोई प्रभावी मुद्दा बनने वाला नहीं है, इसके बाद जब तक आम चुनाव की तारीखें आएंगी तब तक कुछ न कुछ हल निकल ही आएगा। फिलहाल विधानसभा चुनावों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पार्टी उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते दिख रहे हैं। चुनावी सभाएं और रैलियां हो रही हैं, जहां उपस्थित लोगों में जोश भरने और पार्टी को समर्थन करने के लिए लोगों को तैयार करने का काम बहुतायत में हो रहा है। इसे देखते हुए ही सूत्रों ने कहना शुरु कर दिया है कि चूंकि आम चुनाव अभी दूर हैं, इसलिए सरकार ने विशेष सतर्कता बरतते हुए इस मामले को जल्द से जल्द प्रत्येक स्तर पर निपटाने का मन भी बना रखा है।
वैसे सरकार के पास जो फीडबैक आया है उससे तो यही लगता है कि आम लोगों को राफेल से कोई लेना-देना नहीं है, उन्हें तो बस अपनी रोजी-रोटी, स्वास्थ्य सुविधाएं, सड़कें और बच्चों की पढ़ाई के साथ ही साथ उनके शादी-विवाह की ही चिंता होती है। इस कारण जो नेता या राजनीतिज्ञ यह कहते हैं कि राफेल चुनावों को प्रभावित करने वाला है, वो सिरे से गलत साबित होने वाले हैं। इस संबंध में यदि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर नजर दौड़ाई जाए तो मालूम चलता है कि यह वाकई प्रभावी सिद्ध नहीं होता है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में मौजूदा सरकार के खिलाफ लामबंद होते पार्टी के ही लोग सबसे बड़ी परेशानी का कारण बनते दिखे हैं। जहां तक राजस्थान विधानसभा चुनाव का मामला है तो यहां स्थानीय मुद्दों पर ही ज्यादातर प्रत्याशियों ने ध्यान केंद्रित किया हुआ है। यहां आमजन भी अपनी ही समस्याओं की बात करती दिखती है।
इसी तरह छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या से लेकर रोजाना आने वाली समस्याओं से जूझते प्रदेशवासी अन्य जगहों की समस्याओं पर विचार क्या करें वो तो इन पर सरसरी नजर भी नहीं दौड़ा पाते हैं। इसलिए यहां पर भी राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों की कोई बात नहीं की जा सकती है। रही बात मध्य प्रदेश की तो यहां चूंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तीन पारियां खेल चुके हैं और भाजपा के शासनकाल को लगातार 15 साल होने को आए हैं इसलिए जनता उनसे पिछले सालों का हिसाब भी मांग रही है। खासतौर पर ग्रामीण अंचलों के मतदाता किसानों की बदहाली से लेकर सड़क, बिजली और पानी को चुनाव का मुख्य मुद्दा बताते हैं।
इन्हीं मामलों को लेकर वो अब सार्वजनिक तौर पर भाजपा नेताओं और प्रत्याशियों को घेरते दिख रहे हैं। यही वजह है कि यहां कांग्रेस ने एक बार फिर किसानों के कर्जमाफी और विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा के साथ ही रोजगार मुहैया कराने पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है। महिलाओं और बच्चियों पर हो रहे अत्याचार को प्रदेश की बिगड़ी कानून व्यवस्था से जोड़कर देखा जा रहा है और इसे कांग्रेस ने चुनावी मुद्दा बनाने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी है।
यही हाल अन्य दो राज्यों का भी है। इसलिए कहा जा रहा है कि राज्यों के चुनावों में आमतौर पर स्थानीय मुद्दे ही हावी रहते हैं इसलिए इन पांच राज्यों के चुनावों में भी ऐसा ही हो रहा है। इस मायने में कहना गलत नहीं होगा कि कांग्रेस की तरफ से राफेल मुद्दे को उठाया जाना फिलहाल परिणाममूलक सिद्ध नहीं हो सकता है। बावजूद इसके यदि कहीं किसी तरह से राफेल चुनावी मुद्दा बन भी जाता है तो फिर मोदी सरकार के पास इससे निपटने की आपात रणनीति भी तैयार है, जिसके तहत वो लगातार आगे बढ़ रही है। सरकार मानकर चल रही है कि राफेल के प्रभाव का असर आम लोगों पर कतई नहीं होने वाला, इसलिए अन्य मुद्दों को भुलाने के लिए विशेष कार्ययोजना पर कार्य प्रारंभ कर दिया है। अब विपक्ष को चाहिए कि वो इससे कहीं ज्यादा प्रभावी मुद्दों को लेकर आए क्योंकि इसका असर तो दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता है।