सैन्‍य अभ्‍यास के बाद अपने ही गढ़ में अलग-थलग पड़ा चीन, आसियान ने खोला मोर्चा

अमेरिकी सीनेट की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद चीन की काफ‍ी किरकिरी हुई है। चीन ने अपनी भड़ास निकालने के लिए ताइवान द्वीप के समीप सैन्‍य अभ्‍यास किया है। इस सैन्‍य अभ्‍यास का असर न केवल ताइवान और जापान पर पड़ा है, बल्कि आस‍ियान देशों ने भी चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। अगर आसियान देश चीन के खिलाफ खड़े होते हैं तो हिंद प्रशांत क्षेत्र में ड्रैगन एकदम अलग-थलग पड़ जाएगा। आइए जानते हैं कि चीन के सैन्‍य अभ्‍यास के बाद आसियान मुल्‍कों पर क्‍या असर पड़ रहा है। इन सब मसलों पर विशेषज्ञों की क्‍या राय है।

विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत ने कहा कि चीन की सेना ने ताइवान से महज सौ किलोमीटर दूर सैन्‍य अभ्‍यास किया। जापान के बाहरी दक्षिणी द्वीपों के समीप चीन का सैन्‍य अभ्‍यास जापान के लिए भी च‍िंता का सबब बन गया है। उन्‍होंने कहा कि चीन की सेना जापान के जिन द्वीपों के निकट सैन्य अभ्यास कर रहा है, उनमें योनागुनी, जो ताइवान से सिर्फ 100 किमी की दूरी पर है, और सेनकाकस शामिल है।

उन्‍होंने कहा कि सेनकाकस एक ऐसा द्वीप है जो जापान द्वारा शासित होता है। हालांकि, इस द्वीप पर ताइवान और चीन दोनों ही दावा करते रहे हैं। जापान के रक्षा मंत्री नोबुओ किशी ने देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र में गिरी चीनी मिसाइलों की कठोर शब्‍दों में निंदा की है। उन्‍होंने कहा कि यह जापान की राष्ट्रीय सुरक्षा और जापानी लोगों के जीवन के लिए खतरा है।

उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी सीनेट की अध्‍यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा पर जिस तरह की प्रतिक्रिया चीन ने दी है, वह आस‍ियान देशों के लिए खतरे की घंटी है। प्रो पंत ने कहा कि इससे आसियान देशों में असुरक्षा की भावना बढ़ी है। आसियान देशों के विदेश मंत्रियों ने भी अमेरिकी नेता नैंसी पेलोसी की यात्रा के बाद ताइवान द्वीप के समीप चीनी सैन्‍य अभ्‍यास की कड़ी निंदा की है। आसियान देशों ने कहा कि नैंसी की यात्रा शांतिपूर्ण था।

ऐसे में चीनी सेना द्वारा सैन्‍य अभ्‍यास कतई जायज नहीं था। यही कारण है कि जापान के समीप चीन की मिसाइल गिरने के बाद अमेरिका ने कहा है कि वह जापान के साथ मजबूती से खड़ा है। उन्‍होंने कहा कि चीन के इस कदम से आसियान देशों में नाराजगी बढ़ी है, यह चीन के लिए शुभ संकेत नहीं है।

चीन के इस सैन्‍य अभ्‍यास के बाद जापान ने इसकी कड़ी निंदा की है और कहा है कि अब वक्‍त आ गया है कि चीनी धमकियों के खिलाफ मजबूती से खड़ा हुआ जाए। उन्‍होंने कहा कि ताइवान को लेकर अब चीन से पीड़‍ित राष्‍ट्र तेजी से एकजुट होंगे। यह चीन के लिए खतरनाक है। खासकर तब जब चीन हिंद प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में अपने वर्चस्‍व को बढ़ाना चाहता है। उन्‍होंने कहा कि भविष्‍य में चीन के खिलाफ मोर्चेबंदी तेज हो सकती है। ऐसी स्थिति में वह पूरे क्षेत्र में अलग-थलग पड़ सकता है।

उन्‍होंने कहा कि दूसरे विश्व युद्ध में पराजय के बाद, अमेरिका की सलाह पर जापान ने शांतिवादी संविधान अपनाया और बदले में अमेरिका ने जापान की सुरक्षा की जिम्मेदारी का वचन दिया था। जापान के संविधान के अनुच्छेद 9 के तहत वह कभी भी किसी देश के साथ अपने विवाद को सुलझाने के लिए सैन्य शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकता।

इसके साथ ही जापान न तो कोई सेना रख सकता है और न ही सेना से जुड़े सामान तैयार कर सकता है, लेकिन यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से ताइवान और जापान में चीनी सैन्य गतिविधियों को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं। उन्‍होंने कहा कि एक सवाल यह भी है कि अगर चीन और जापान के बीच टकराव की स्थिति पैदा होती है तो अमेरिका किस हद तक उनकी मदद करेगा। इसी के मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों में जापान के रक्षा बजट में वृद्धि हुई है।

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