नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित पांच राज्यों के चुनाव में करारी हार मिलने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) ने चिंतन शिविर लगाने का फैसला किया है। ऐसा पहली बार नहीं है कि शर्मनाक हार मिलने के बाद कांग्रेस चिंतन शिविर लगाने जा रही है।
इससे पहले भी सोनिया गांधी के ही अध्यक्ष रहते हुए कांग्रेस तीन बार ‘चिंतन शिविर’ लगा चुकी है, लेकिन एक बार भी परिणाम उसके अनुकूल नहीं आए हैं। कांग्रेस ने आखिरी चिंतन शिविर 2013 में जयपुर में लगाया था, लेकिन इसके बाद से पार्टी की परफॉर्मेंस लगातार गिरती ही जा रही है यानी ये शिविर काम नहीं आया है।
आइए आपको बताते हैं, कांग्रेस में जान फूंकने के लिए कब-कब लगाए गए चिंतन शिविर और क्या रहा उसका रिजल्ट….
1998 में पचमढ़ी का चिंतन शिविर
राजीव गांधी की हत्या के 7 साल बाद कांग्रेस संगठन में गांधी परिवार की वापसी हुई और सीताराम केसरी को हटाकर सोनिया गांधी ने पार्टी की कमान संभाली। सोनिया ने मध्यप्रदेश के पचमढ़ी में कांग्रेस नेताओं को एकजुट कर चिंतन शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में गठबंधन से त्रस्त कांग्रेस ने एकला चलो की नीति तय की। हालांकि, 1999 के आम चुनाव में कांग्रेस को सफलता नहीं मिली और पार्टी सिर्फ 114 सीट ही जीत सकी। वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 24 दलों के गठबंधन की केंद्र में सरकार बनी।
2003 में शिमला का चिंतन शिविर
2003 में UP, गुजरात सहित कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार मिलने के बाद कांग्रेस ने फिर एक बार चिंतन शिविर लगाने का फैसला किया। पार्टी ने 2003 में हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में चिंतन शिविर आयोजित किया। इस शिविर में कांग्रेस ने पचमढ़ी में तय नीति को पलटकर सामान्य विचारधारा के दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने का फैसला किया। कांग्रेस को इस निर्णय का फायदा मिला और 2004 के लोकसभा चुनाव में पार्टी शाइनिंग इंडिया के रथ पर सवार अटल-आडवाणी की जोड़ी को पछाड़कर केंद्र में सरकार बनाने में सफल रही। कांग्रेस के मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने।
2013 में जयपुर का चिंतन शिविर
अन्ना आंदोलन, UP, गुजरात, पंजाब सहित कई राज्यों में करारी हार के बाद कांग्रेस ने गुलाबी नगरी जयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया। कांग्रेस का यह शिविर पार्टी में राहुल गांधी के प्रमोशन के इर्द-गिर्द ही रहा। शिविर में महासचिव पद पर काम कर रहे राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया गया। वहीं, कांग्रेस ने इस शिविर में फैसला किया कि प्रदेश अध्यक्ष और जिलाध्यक्ष लोकसभा या विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। चुनाव लड़ने के लिए उन्हें अपना पद छोड़ना होगा।
इस चिंतन शिविर के बाद पार्टी का परफॉर्मेंस सबसे नीचे चला गया। साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई। इतना ही नहीं, कांग्रेस अब तक दर्जनों विधानसभा चुनाव हार चुकी है। वहीं लोकसभा 2019 के चुनाव में भी कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली।
CWC में स्वीकार नहीं होता गांधी परिवार का इस्तीफा
एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी सत्ता में वापसी करने को संघर्ष कर रही है, वहीं हर हार के बाद गांधी परिवार की ओर से इस्तीफा देने का दांव चला जाता है। हालांकि, CWC में इसे कभी स्वीकार नहीं किया जाता है। 2014 में हार के बाद सोनिया गांधी ने अध्यक्ष और राहुल गांधी ने उपाध्यक्ष पद से इस्तीफे का ऑफर किया था, लेकिन मनमोहन सिंह ने हार की जिम्मेदारी ले ली। इसके बाद CWC ने इस्तीफा अस्वीकार कर दिया था। इस बार भी यही हुआ है।
इतना ही नहीं, 2019 में भी राहुल के इस्तीफे को CWC स्वीकार नहीं कर रही थी। हालांकि, राहुल ने इस्तीफा वापस लेने से इंकार कर दिया और उसे सोशल मीडिया पर शेयर कर दिया। वर्तमान में गांधी परिवार के तीन सदस्य सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी CWC मेंबर हैं।
कब-कब गांधी परिवार ने CWC में की इस्तीफे की पेशकश
- 13 मार्च 2022 को सोनिया-राहुल-प्रियंका तीनों ने इस्तीफा देने की पेशकश की
- 24 अगस्त 2021 को G-23 नेताओं से नाराज सोनिया गांधी ने अंतरिम अध्यक्ष पद छोड़ने की बात कही।
- 15 जून 2019 को लोकसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल ने इस्तीफा दिया।
- 25 मई 2019 को आम चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की।
- 19 मई 2014 को केंद्र में सत्ता जाने के बाद सोनिया-राहुल ने एक साथ इस्तीफे की पेशकश की।
- मार्च 1998 को अध्यक्ष बनने के बाद हुए हंगामे की वजह से सोनिया गांधी ने इस्तीफे की पेशकश की।
9 साल में 11 बार राहुल कह चुके हैं हार से सीख लेने की बात
राहुल गांधी लोकसभा और विधानसभा में हार मिलने के बाद पिछले 9 सालों में 11वीं बार सीख लेने की बात कह चुके हैं। हाल ही में राहुल गांधी UP, पंजाब सहित पांच राज्यों में हार स्वीकार करने के साथ ही हार से सीख लेने की बात कही। इससे पहले बंगाल चुनाव (2021), लोकसभा चुनाव (2019), मेघालय-त्रिपुरा-नगालैंड (2018), UP-पंजाब-गोवा-उत्तराखंड (2017), गुजरात (2017), बंगाल-असम (2016), दिल्ली (2015) हरियाणा-महाराष्ट्र (2014), लोकसभा चुनाव (2014), दिल्ली (2013) और राजस्थान (2013) चुनाव में ट्वीट कर हार स्वीकार कर सीख लेने की बात कह चुके हैं।
सुधार और समीक्षा के लिए 2 कमेटी बनीं, रिपोर्ट पर अमल नहीं
1999 और 2014 में कांग्रेस की हार की समीक्षा के लिए वरिष्ठ नेता एके एंटनी की अध्यक्षता में कमेटी बनाई गई थी। दोनों बार एंटनी ने अपनी रिपोर्ट हाईकमान को सौंपी, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। 2014 के चुनाव के बाद एंटनी कमेटी ने सिफारिश की थी कि संगठन में बड़े पैमाने पर फेरबदल की आवश्यकता है, लेकिन कांग्रेस में अब तक इस पर अमल नहीं हुआ।