स्मृति शेषः बदरी विशाल के वस्त्रों में प्रणब दा का भारत रत्न

-बदरीनाथ धाम में अगाथ श्रद्धा, हर बार चढ़ाए वस्त्र
-धर्म के महत्व को समझाने का मौका नहीं चूके
देहरादून। साल 2019 का वाकया बदरी-केदार मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल को अच्छे से याद है। उस वक्त न वह समिति के अध्यक्ष थे और न ही प्रणब मुखर्जी देश के राष्ट्रपति। प्रणब दा के निजी स्टाफ के एक सदस्य का गोदियाल के पास फोन आता है।  वह यही समझ रहा था कि गोदियाल ही मंदिर समिति के अध्यक्ष हैं। वह बदरीनाथ में भगवान की मूर्ति को चढ़ाए जा चुके वस्त्र भिजवाने का अनुरोध करता है, ताकि प्रणब दा उसमें भारत रत्न को संभालकर रख सकें।
गोदियाल इसकी व्यवस्था कराकर प्रणब दा तक बाद में वस्त्र भिजवाते हैं। राष्ट्रपति रहते प्रणब दा कई बार बदरीनाथ धाम आए। 2017 में विधानसभा के सत्र को संबोधित करने का कार्यक्रम बना तो वह माथा टेकने बदरीनाथ धाम पहुंच गए। मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष गणेश गोदियाल ने बदरीनाथ धाम के प्रति दिवंगत प्रणब दा की अटूट आस्था को अपने संस्मरणों के जरिये बताने की कोशिश की।
बकौल गोदियाल-प्रणब मुखर्जी हमेशा बदरीनाथ धाम में भगवान की प्रतिमा को चढ़ाने के लिए अपने स्तर से वस्त्र भेजा करते थे और पहले से प्रतिमा को चढ़ाए जा चुके एक वस्त्र को अपने पास रखने के लिए लेते थे। जब-जब वह आए, तब-तब उन्होंने ऐसा किया। जब नहीं आ पाए तब उन्होंने किसी तरह से इसका प्रबंध करवाया।
वह बताते हैं कि जब प्रणब मुखर्जी को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न मिला तो उनके स्टाफ ने फोन कर वस्त्र भिजवाने का अनुरोध किया। वह गोदियाल को ही अध्यक्ष मानकर चल रहे थे। गोदियाल ने उनकी भावनाओं का सम्मान किया और समिति के स्टाफ से संवाद करके प्रणब दा तक वस्त्र पहुंचवाए। गोदियाल के अनुसार 2017 में बदरीनाथ में उनका सानिध्य मिला। एक घंटे से ज्यादा समय उनके साथ बीता और इस दौरान ये अनुभव हुआ कि दा बेहद धार्मिक व्यक्ति हैं। धर्म को लेकर उनकी अपनी खास सोच थी ।
गोदियाल के अनुसार-प्रणब दा ने उन्हें और बदरीनाथ में मौजूद लोगों को 2017 में बेहद अनौपचारिक तौर पर धर्म की व्याख्या करके बताई। उन्होंने कहा था कि पूजा-पाठ करना ही धर्म नहीं है, बल्कि आपका जो भी कर्म क्षेत्र है, उसमें ईमानदारी से जुड़ना, अच्छी सोच के साथ आगे बढ़ना धर्म है।
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