स्मृति शेष: पंडित भीम सेन जोशी को नजर आया था पहाड़ का ‘हीरा’

मन में ख्याल उमड़ा…।  कागज पर उकेरा…। और फिर लोगों के बीच आकर उसे उतने ही प्राकृतिक अंदाज में गा दिया। जनकवि हीरा सिंह राणा ऐसा ही किया करते थे। लोककला जितनी प्राकृतिक और पवित्र है, राणा का अंदाज भी वैसा ही रहा है। यही कारण है कि शास्त्रीय संगीत के सशक्त हस्ताक्षर पंडित भीम सेन जोशी ने 1980 के दशक में राणा को बाॅलीवुड में लिखने के लिए प्रेरित किया।
जोशी जैसे बडे़ कलाकार की बात मानते हुए राणा मायानगरी मुंबई पहुंच भी गए, लेकिन वहां रम नहीं पाए। जल्द ही उन्होंने पहाड़ वापसी कर ली और फिर यहीं के होकर रह गए।
कोरोना काल के बीच राणा के न रहने की खबर मायूसी को और भी ज्यादा बढ़ाने वाली है। उनके निधन से न सिर्फ लोक कलाकार बल्कि हर तबका स्तब्ध है। राणा के बेहद करीबी लोकगायक और वरिष्ठ पत्रकार डाॅ. अजय ढौंडियाल के लिए उनकी मौत की खबर पर विश्वास करना मुश्किल रहा। राणा के साथ जुडे़ अनुभव साझा करते हुए वह भावुक हो गए।
बकौल डाॅ. ढौंडियाल-पहाड की, लोककला-संस्कृति का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। वह बताते हैं-भीम सेन जोशी उनके लेखने से बहुत प्रभावित थे और यह संभावना देखते थे कि राणा बाॅलीवुड में सफल हो सकते हैं। मगर वहां की चकाचौंध की दुनिया में फक्कड़ स्वभाव वाले राणा का मन नहीं रमा। उन्हें अपनी तरह सरल पहाड़ में ही रहना था।
डाॅ. ढौंडियाल के अनुसार राणा ने मुद्दत बाद आकाशवाणी का रुख किया। वह न आकाशवाणी में गाना पसंद करते थे और न ही कैसेट अलबम बनाने में उन्हें ज्यादा दिलचस्पी थी। यही वजह रही कि उनके सिर्फ पांच-छह कैसेट अलबम ही लोगों के सामने आए। इसकी जगह वह गीत लिखकर लोगों के बीच गाने से ज्यादा खुशी महसूस करते थे। आकाशवाणी के निदेशक केशव अनुरागी की एक बात ने उन्हें प्रेरित किया कि वह रेडियो पर आकर गाएं।
अनुरागी ने उनसे कहा कि आकाशवाणी के जरिये ही वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। वह भी किसी व्यवसायिक दबाव के बिना। आकाशवाणी में उन्होंने कई कालजयी गीत गाए। लखनऊ में स्वर परीक्षा के निर्णायकों को लोककला पर उनके ज्ञान ने हैरत में डाल दिया था। एक निर्णायक ने उन्हें कुमाऊं की न्योली गाकर सुनाने के लिए कहा।
उन्होंने पलटकर निर्णायक से ही पूछ लिया, कौन सी वाली न्योली। कुमाऊं में 10 तरह से न्योली गाई जाती है। उन्हें आकाशवाणी से तब बी हाई ग्रेड मिला, जो कि पहाड़ के कई लोकप्रिय गायकों को नहीं मिल पाया था। उनके लिखे गीत कई दूसरे लोक कलाकारों ने भी गाए। घुंघरू न बजा छम और कन बजै मुरली… जैसी कर्णप्रिय गीत रचना को कौन भूल सकता है।

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