हत्यारिन शबनम की कहानी, उस समय डीआईजी रहे बद्री प्रसाद सिंह की जुबानी

जौनपुर। नारी ईश्वर रचित संसार की सबसे अनुपम रचना है।यह मां,बहन,बेटी ,मित्र के रूप में सर्वत्र पूजनीय एवं सम्माननीय है।अपने अन्तस्थल में ममता,करुणा,प्रेम,वात्सल्य, सहानुभूति,वेदना आदि मनोभावों को समाहित किए हुए नारी पुरुष समाज के लिए सदैव कल्याणकारी एवं प्रेरणास्रोत रही है। लेकिन आज मैं जिस नारी की चर्चा कर रहा हूं वह उपरोक्त से अलग है।

१५ अप्रैल २००८ को चार बजे सुबह पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि अमरोहा जिले के हसनपुर थाने के बावनखेड़ी गांव में एक मुस्लिम परिवार के सात लोगों की हत्या हो गई है । मैं तत्काल भागा और वहां पहुंच कर पाया कि पति-पत्नी,उनके दोनों बेटों,एक बहू तथा एक रिश्ते की एक लड़की एवं उनके दस माह के पौत्र की हत्या की गई है और परिवार में उनकी २५ वर्षीय पुत्री शबनम ही बची है।

बच्चे की गला दबा कर शेष की गला काट कर हत्या की गई है।उनके घर के सामने हजारों की आक्रामक भीड़ थी जो पुलिस के विरुद्ध नारेबाजी तथा भाषण कर रही थी। मैं तब डीआईजी मुरादाबाद परिक्षेत्र था और अमरोहा मुरादाबाद परिक्षेत्र का एक जनपद था।

वह मकान पक्की सड़क के किनारे दो मंजिला था भूतल पर दूकान तथा प्रथम तल रिहायशी था। शबनम ने बताया कि रात ८ बजे वह पूरे परिवार को खाना खिलाकर चाय पिलाकर ऊपर छत पर सोने अकेले गई थी दो बजे बूंदाबांदी होने पर नीचे आकर यह हाल देखकर शोर मचाई तो लोग आए और वह नीचे का लोहे का दरवाजा खोला तब लोग सीढ़ी से ऊपर आए।

मकान के सारे बाहरी दरवाजे तथा खिड़कियां बंद एवं ऊपर चढ़ने का कोई निशान न था।लड़की शबनम का व्यवहार कुछ संदिग्ध लगा। वरिष्ठ अधिकारियों को घटना बताकर अपने संदेह से अवगत कराया।शबनम ने अपने चचेरे भाई पर शक किया जिसे उठा लिया गया।लाश उठाने में पसीने छूट रहे थे।

सामने अस्थाई मंच पर हजारों की भीड़ तथा भाषण जारी था।मैंने पूर्व संबंधों का उपयोग कर सांसद तथा विधायक को समझाकर मंच से निरीक्षक हसनपुर के निलंबन एवं २४ घंटे में केस के अनावरण का आश्वासन देकर भीड़ शांत कर मुकदमा लिखवाकर पोस्ट मार्टम हेतु सातों शव भिजवाए।

मृतकों के शव की दशा ऐसी थी जैसे किसी ने बड़े आराम से उनके गले काटे हों,सभी लेटे हुए थे ,खून की छींटे फर्श या दीवार पर नहीं थी। मृतकों के संघर्ष का कोई चिन्ह नहीं था जैसे उन्हें नशीला पदार्थ देकर हत्या की गई हो। मैंने मृतकों का विसरा सुरक्षित रखने हेतु रिपोर्ट भिजवा दी और एक सीओ की ड्युटी पोस्ट मार्टम हेतु लगा दी।

पोस्ट मार्टम के समय डाक्टर ने विसरा सुरक्षित रखने से मना कर दिया। सीओ ने डाक्टर से फोन पर मेरी बात कराई मैंने डाक्टर को समझाया कि यद्यपि मृत्यु गला काटने से हुई है लेकिन मेरा संदेह है कि नशीला पदार्थ देकर हत्या की गई है।यदि विसरा सुरक्षित न हुआ तो नशे की बात हम साबित नहीं कर सकेंगे। डाक्टर मेरी बात मान गए।

शबनम के चचेरे भाई ने हत्या करना स्वीकार कर इस घटना में अपने १४ साथियों के नाम बताए जिनमें से आठ मिले जिन्होंने घटना में सम्मिलित होने से इनकार किया,फिर उसने सात दूसरे नाम बताए वे भी इनकार कर गए।इन सभी का कोई अपराधिक इतिहास नहीं था और उनके चाल-चलन भी सही मिले।

अंत में उसने कहा कि पुलिस के डर से वह झूठ बोला था।वह इस संबंध में कुछ नहीं जानता।उसने लड़की के चार प्रेमियों के नाम बताकर कहा कि शबनम ने ही हत्या कराई है।सभी संदिग्धों को छोड़ दिया गया।

चारों प्रेमी भी लाए गए,सभी ने स्वयं को निर्दोष बताया,उनके विरुद्ध कोई साक्ष्य नही था,सब छोड़ दिए गए।शबनम का मोबाइल १५दिन से बन्द मिला। मुझे केस के अनावरण एवं मुलजिम के गिरफ्तारी तक वहीं कैंप करने का निर्देश था। दिन-रात लखनऊ के फोन काल से त्रस्त था कि मुख्यमंत्री सुश्री मायावती जी भी पांचवें दिन आ धमकी। आते ही उन्होंने मुझसे पूरी प्रगति जानी और घर जाकर शबनम से मेरी शंकाओं पर बात की।

जाते समय मुझे अकेले में बुलाकर निर्देश दी कि केस सही खुले समय चाहे जितना लगे, गिरफ्तारी से पूर्व उन्हें मैं स्वयं सूचित करूं ,लड़की की थाने पर अकेले पूंछताछ न हो, मुस्लिम समुदाय नाराज न होने पाएं। मुख्यमंत्री जी के अकेले बुलाने पर मैं डर गया था कि कहीं यह निलंबन की भूमिका तो नहीं है, लेकिन निर्देश सुनकर शांति मिली।

शबनम MA थी तथा पास के विद्यालय में शिक्षामित्र थी। उसके विद्यालय के एक अध्यापक ने उसका दूसरा मोबाइल नंबर दिया। जब उस नंबर की काल डिटेल देखी गई तो उस नंबर पर घटना की रात ८.३० बजे से २बजे रात तक एक नंबर पर ५६ बार वार्ता हुई थी। दोनों नंबर सलीम के नाम पर थे।

सलीम उसका प्रेमी था जिससे हम पूछताछ कर चुके थे। हमने सलीम को फिर उठा कर पूछताछ की। पहले वह मना किया लेकिन जब घटना की रात शबनम से ५६ बार बात करना तथा उसकी रिकार्डिंग अपने पास होना बताया (जोकि झूठ था) तो वह टूट गया और शबनम से प्रेम संबंध होना और उसके कहने पर उसके साथ हत्या करना स्वीकारा।

फिर हमने उसे शबनम के घर ले जाकर उसके सामने शबनम से पूछताछ की तो शबनम भी टूट गई और सब स्वीकार लिया।फिर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी तथा प्रयोग किया सिम भी बरामद किया गया। हत्या के पहले शबनम ने नींद वाली दवा चाय में सभी को दी थी और सब गहरी नींद में थे ,सबनम ने हमें उस दवा का खाली पत्ता भी दिया।

विसरा रिपोर्ट से नींद की दवा का मिलान हो गया। शबनम गर्भवती थी और घर वाले जाहिल, गरीब सलीम से उसकी शादी के लिए तैयार नहीं थे, यही हत्या का मुख्य कारण बना। इस के अनावरण में सलीम को एक तमाचा भी नहीं मारा गया था।

शबनम लम्बी, पतली, पढ़ी-लिखी, सुंदर और अच्छे परिवार से थी जबकि सलीम जाहिल, लकड़ी काटने वाला,काला बदसूरत था। लेकिन प्यार अंधा होता है। घटना के समय शबनम मृतकों का सर पकड़ कर टार्च दिखाती और सलीम कुल्हाड़ी से उनका गला काटता था।

सलीम ने दुधमुंहे बालक को नहीं मारा था और अपने घर चला गया था, लगभग एक बजे बच्चा रोने लगा तो शबनम ने सलीम को मारने के लिए बुलाया लेकिन उसने मना किया तो शबनम ने स्वयं उसका गला घोंट कर मार डाला। २.१५ पर बरसात होने पर वह छत से नीचे आई नहीं तो दिन निकलने पर शोर करने की योजना थी।

मुकदमा चला, जिला जज ने दोनों को फांसी की सजा दी और निर्णय में लिखा कि उन्होने अपने ३२ वर्ष के न्यायिक जीवन में इससे बेहतर पुलिस विवेचना नहीं देखी। हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट में भी फांसी की सजा कायम रही यद्यपि शबनम का १२ वर्ष का लड़का ताज है।

राष्ट्रपति ने भी उसकी दया याचिका अस्वीकार कर दी है। अब वह फांसी को आजीवन कारावास में बदलने की याचिका राज्यपाल को भेजी है। यदि शबनम को फांसी हुई तो आजादी के बाद किसी महिला को पहली बार फांसी होगी और यदि न हुई तो फिर कितनी हत्या करने के बाद महिला की फांसी होगी?

नारी का यह विकृत,वीभत्स रूप है जिस पर सहज यकीन नहीं होता। जिस मां बाप ने पैदा किया, पाला- पोसा,पढ़ाया उसे परिवार समेत समाप्त कर दिया, अबला से सबला बनी भी तो पिशाचनी बनी। ईश्वर ऐसी बेटी, बहन किसी को न दें।

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