कोलंबो। दुनिया महामारी से जूझ रही है और चीन अपनी विस्तारवादी सोच को नए आयाम दे रहा है। भारत के पूर्व में चीन की मौजूदगी थी ही, अब वो दक्षिण में भी प्रभाव बढ़ा रहा है। चीन श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में एक नई पोर्ट सिटी बनाने जा रहा है। इसके कंस्ट्रक्शन का ठेका भी एक चीन कंपनी को मिल चुका है। श्रीलंका की संसद ने इससे जुड़े बिल को संशोधन के बाद मंजूरी दे दी है।
इस बिल का श्रीलंकाई विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट ने तो जनमत संग्रह कराने का भी सुझाव दिया, लेकिन दो भाईयों की सरकार का रसूख और बहुमत इतना है कि किसी की आवाज नहीं सुनी गई। इस बीच, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि कोलंबो पोर्ट सिटी के लिए एक अलग पासपोर्ट होगा। हालांकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है।
कोलंबो पोर्ट सिटी : अब तक क्या हुआ
श्रीलंका में गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति और महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री हैं। दोनों सगे भाई हैं और देश में इस वक्त इनकी ही पूर्ण बहुमत वाली सरकार है। 2014 में भी इनकी ही पार्टी सत्ता में थी। उसी दौरान कोलंबो पोर्ट सिटी के लिए चीन से समझौता हुआ था। बाद की सरकार ने भी इसका समर्थन किया।
सरकार ने इस पोर्ट सिटी को बनाने के लिए संसद में बिल पेश किया। इसमें कई बातें या शर्तें ऐसी थीं जो सीधे तौर पर श्रीलंका को चीन का भावी उपनिवेश या गुलाम बनाने वाली थीं। लिहाजा विपक्ष ने इसका विरोध किया। सुप्रीम कोर्ट में 24 याचिकाओं के जरिए इसे चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने जनमत संग्रह और बिल में संशोधन का सुझाव दिया।
सरकार का शातिर खेल
‘राजपक्षे ब्रदर्स’ के पास संसद में बहुमत था, लिहाजा बिल को पास होने में भी देर नहीं लगी। पक्ष में 149 और विरोध में 58 वोट पड़े। राजपक्षे सरकार इतनी शातिर निकली कि उसने जनमत संग्रह कराने की मांग पर विचार करने के बजाय, बिल में मामूली संशोधन कर दिए। फिर संसद में अपने बहुमत के बल पर इसे पास करा लिया। जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा था कि इन दोनों ही मांगों पर विपक्ष का भी समर्थन लिया जाए। यानी संशोधन और जनमत संग्रह दोनों पर, लेकिन ये हो न सका।
स्पेशल इकोनॉमिक जोन का जाल
प्रस्ताव के मुताबिक, कोलंबो पोर्ट सिटी 269 हेक्टेयर में बनाई जाएगी। इसके लिए पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमीशन बिल को मंजूरी दी जा चुकी है। चीन ने श्रीलंका सरकार के सामने लालच का जाल फेंका और राजपक्षे सरकार फंस गई। दरअसल, चीन ने कहा है कि वो कोलंबो पोर्ट सिटी में श्रीलंका का पहला ‘स्पेशल इकोनॉमिक जोन’ यानी SEZ बनाएगा। यहां हर देश की करंसी में बिजनेस किया जा सकेगा।
पिछले हफ्ते, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने संसद में कहा था- कोलंबो पोर्ट सिटी से 5 साल में 2 लाख जॉब्स निकलेंगे। यह हमारे नौजवानों को मिलेंगे। इससे डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट बढ़ेगा और उसका सीधा फायदा हमारे देश को होगा। दूसरी तरफ, कोलंबो पोर्ट सिटी के डायरेक्टर यामुन जयरत्ने ने कहा- हम भी दुबई और हॉन्गकॉन्ग की तरह बेहतरीन और मैच्योर सर्विस दे सकेंगे। यह साउथ एशिया का फाइनेंशियल हब बनेगा।
अलग पासपोर्ट का माजरा क्या है?
seatrade-maritime.com की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीन अब श्रीलंका के जिस क्षेत्र में जड़ें जमाने जा रहा है, वो भारत के कन्याकुमारी से महज 290 किलोमीटर दूर है। हम्बनटोटा पर पहले ही उसका कब्जा है। कोलंबो पोर्ट सिटी और हम्बनटोटा के लिए चीन एक अलग पासपोर्ट भी तैयार कर रहा है। हालांकि, श्रीलंकाई सरकार या मीडिया ने अब तक अलग पासपोर्ट के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी है।
चीन के इरादे क्या हैं?
पूर्वी अफ्रीका हो या पाकिस्तान, चीन हमेशा से ही कर्ज देकर अपना विस्तार करता आया है। श्रीलंका पर तो उसकी पैनी नजर है। इसके जरिए वो भारत के लिए नए खतरे पैदा कर सकता है। हम्बनटोटा को वो पहले ही 99 साल की लीज पर ले चुका है। कोलंबो पोर्ट सिटी के साथ भी 99 साल की लीज की शर्त है। कर्ज के मकड़जाल में श्रीलंका उलझ जाएगा और जैसे हम्बनटोटा को खोया, वैसा ही कोलंबो पोर्ट सिटी के साथ भी होगा। पिछले साल, BBC ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था- श्रीलंका ने इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में सुधार के लिए चीन से अरबों डॉलर का कर्ज लिया है।
भारत के लिए तीन तरफा मुसीबत
अगर आप टाइमिंग पर गौर करें तो चीन की हरकत बहुत हद तक साफ हो जाती है। दरअसल, मार्च के आखिर में भारत में महामारी की दूसरी लहर ने जोर पकड़ा। भारत सरकार के हाथ-पैर फूल गए। इसी वक्त चीन ने श्रीलंका में कोलंबो पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट हथियाने के लिए तेजी से चालें चलीं। अप्रैल में बिल तैयार हुआ। मई में विरोध और संशोधन के बाद यह पास भी हो गया। फरवरी में इसी राजपक्षे सरकार ने 2019 में तय हुए भारत-जापान और श्रीलंका के ट्रांसशिपमेंट प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। इसमें 51% शेयर श्रीलंका, जबकि 49% भारत और जापान के थे।
याद कीजिए, पिछले साल जब अमेरिका में कोविड की पहली लहर के दौरान हर रोज हजारों लोग मारे जा रहे थे, तभी चीन ने हॉन्गकॉन्ग सिक्योरिटी बिल और साउथ चाइना सी में बेहद तेजी से सैन्य दबदबा बढ़ाना शुरू किया था, लेकिन अमेरिका ने उसकी चाल नाकाम कर दी थी। भारत को भी अब चीन की नई चाल से निपटने के रास्ते बहुत तेजी से खोजने होंगे, क्योंकि पाकिस्तान और चीन के साथ दो मोर्चों पर खतरा पहले से ही था, अब श्रीलंका के रास्ते तीसरा खतरा भी सामने आ रहा है।